एकादशाह – देह त्याग से 11 वाँ दिन


मैं यहां हिन्दू कर्मकांड का विश्लेषण नहीं कर रहा. जो जैसा घटित हुआ, वैसा बता रहा हूँ.

“मेरे पिताजी का देहावसान 11 अक्तूबर 2019 को हुआ”. यह इतनी बार लिख चुका हूं कि एंड्रॉयड फोन का की बोर्ड अपने आप यह वाक्य सुझा दे रहा है. उसके पहले दो महीने दारुण व्यथा से अस्पतालों के चक्कर और वहां समय व्यतीत करते निकले. देहांत के बाद अछूत की तरह 11 दिन व्यतीत किए. अब कल वह पीरियड खत्म हो गया है. आज मैं परिवार और कुटुंब के लिए स्वीकार्य शुद्ध हो गया हूँ. गौरी गणेश पूजन के बाद समाज भी शुद्ध स्वीकार कर लेगा और उसकी कृतज्ञता (?) के लिए होगा तेरही का भोज.

एक नॉन ट्रेडिशनल पक्ष है मेरे व्यक्तित्व का. वह यह सब नकारता है. वह केवल व्यक्तिगत दुःख और आत्मा के शरीर त्याग कर नया चोला तलाशने की यात्रा को “सत्य” मानता है. पर वह व्यक्तित्व पक्ष भी शुद्ध तर्क पर नहीं, श्रद्धा पर अवलंबित है.

वह पक्ष इस समय उम्र के उतार, थकान, व्यथा और अकेलेपन के कारण अलग थलग पड़ गया है. मैं केवल समाज के साथ बह रहा हूँ. 🙁


पिताजी के एकादशाह के दिन के 9 ट्वीट हैं जो उस दिन का मोटा मोटा विवरण देते हैं.

कल एकादशाह के दिन सवेरे उठा तो मन में विचार था – पिताजी मानो कह रहे थे – सब कुछ प्रसन्नता से निपटाओ. वह भाव लाना कठिन था, पर अपने मन को साधा मैंने. यह पत्नीजी से भी शेयर किया.

नौ बजे कार्यक्रम स्थल पर पंहुचा तो देखा महापात्र राजेश आ चुके थे.

नन्दन नाऊ चबूतरे पर बैठा व्यापक पिण्ड दान की तैयारी कर रहा था.

रसूलाबाद घाट की व्यवस्था सुस्पष्ट है. वहां लकड़ी, डोम, महापात्र और शव को नहलाने जलाने के कार्यक्रम में वैसे ही व्यथित परिजनों को लुच्चई का सामना नहीं करना पड़ता. उसी प्रकार वहां के महापात्र एकमुश्त पैसे ले कर स्वयं दान की सामग्री घण्ट/पिंडदान स्थल पर लाने और स्वीकार करने का इंतजाम कर देते हैं. हमने भी वहीं विकल्प चुना था.

इसको बताती हुई ट्वीट –

नन्दन नाऊ और महापात्र जी एकादशवें दिन के पिंडदान और शैय्या दान की तैयारी कर रहे थे तो मुझे अवसर मिल गया आसपास के दृश्य के अवलोकन का.

यह स्थान गंगा किनारे है. नदी के दृश्य पर लिखा था –

तैयारी के बाद मुझे व्यापक पिंडदान के लिए बुलाया गया.

कुल 38 पिंडों की स्थापना, पूजा और उसके साथ पिताजी के पिंड को तीन भागों में विभक्त कर उसे तीन पीढ़ी के पितरों के पिंड में मिलाने का कर्मकांड था. पूरी प्रक्रिया में चार से छ घंटे लगते हैं. मेरी घुटने की कमजोर दशा के कारण यह कार्यक्रम सवा घंटे में समेट दिया गया.

पिंडदान की प्रक्रिया संपन्न कर मुझे महापात्र जी को शैय्या दान करना था. उसके लिए महराजिन बुआ के बेटे जगदीश आए. जगदीश सभ्य और सरल लगे. मैं और वे परस्पर इज़्ज़त से बातचीत किए. सामन्यत लोग महापात्र जी के साथ बेरुखी से पेश आते हैं, यहां वैसा नहीं था. दान की सामग्री उनकी थी. मेरा कमिटमेंट पैसा देने का था. उनकी मांग के अनुसार हमने धन दिया था. अतः कोई विवाद नहीं था. मन में भी कोई फांस नहीं थी.

जगदीश जी ने बताया कि श्मशान घाट पर उन्हें बहुत चौकसी रखनी होती है अन्यथा अपराधी किस्म के लोग (विशेषत: रात में) व्यवस्था का गलत प्रयोग कर सकते हैं. वे दशकों से दिन में एक बार भोजन कर रहे हैं. उनके कृश काय शरीर से लगता भी था कि संयमित जीवन है उनका.

एकादशाह स्थल से घर वापस आने पर परिवार के लोगों के साथ मिलना और सामुहिक भोजन था. मुझे कुटुंब में शुद्ध मान लिया गया.

कल मैंने देखा था कि दशवें दिन के कर्म कांड के बाद घण्ट तोड़ दिए गए थे. पिताजी की देहावसान के बाद की यात्रा का वह पड़ाव खत्म हो चुका था. सूक्ष्म लोक में कहाँ कहाँ की यात्रा करता है व्यक्ति (या आत्मा)? सभी धर्मों में अपनी अपनी थ्योरी हैं.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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