महीने में एक आध बार आ ही जाते हैं कड़े प्रसाद। तुलापुर में सड़क पर शीतला माता का नया मंदिर है। वहीं है इनकी रिहायश। उनका और उनके भाई माताप्रसाद का नमकीन मिठाई, चाय आदि का धंधा है। माताप्रसाद तो वहीं दुकान खोले हैं। चाय के साथ नमकीन मिठाई बेचते हैं। कड़े प्रसाद का बिजनेस मॉडल अलग है। वे दो दिन नमकीन, पेड़ा, बरफी आदि बनाते हैं और दो दिन अपने मॉपेड पर लाद कर गांव गांव बेचते हैं। सन 2018 के उत्तरार्द्ध में उनसे मुलाकात हुई थी, उसके बाद मेरे भी घर नियमित आते हैं।

लॉकडाउन के समय पुलीस वालों से कहा सुनी हो गयी थी। शायद उन्होने इनसे जोर जबरदस्ती भी की थी। उस दौरान कई महीने तक दिखे नहीं। पता चला कि थोड़ा बहुत बना कर सड़क से अलग थलग दूर दराज के गांवों में बेचते थे, जहां पुलीस तंग न करे। बहरहाल, अब उनका कारोबार सामान्य चल रहा है। अब उनके आने की आवृति भी बढ़ गयी है।
कल आये थे वे। बोले – बाहर ग रहे साहेब। अमरावती अउर दिल्ली। दिल्ली में हमार लड़िका और दमाद हयेन। हाई कोर्ट क जज्ज के बंगला में ड्यूटी बा ओन्हन क। रहई क घर भी मिला बा ओनके बंगला में। पांच बिगहा क बंगला बा। (बाहर गया था साहेब। अमरावती और दिल्ली। दिल्ली में मेरा लड़का और दामाद हैं। हाईकोर्ट के जज साहब के बंगले में उनकी नौकरी है। वहीं क्वार्टर भी मिला है उन्हे रहने को। पांच बीघे में बना है उनका बंगला।”

“एक रोज तो मोदी जा रहे थे। सब रोक दिया गया था सड़क पर। ढेरों नई नई चाल की बंदूक लिये थे आदमी। हम लोग तो क्वार्टर से ताक झांक कर देख रहे थे। आदमी तो क्या, कोई बिलार तक नहीं जा सकता था सड़क पर।”
कड़े प्रसाद मुझे तीन पैकेट नमकीन बेच चुके थे। अब वे पूर्णत: सुनाने के मूड में थे। मैंने खड़े खड़े ही उनको सुना। बैठने को कहता तो और देर तक सुनाते और शायद एक कप चाय पीने के बाद ही जाते। चाय बनाने वाला कोई नहीं था, अन्यथा उन्हें ज्यादा सुनता।
“बड़े जज और नेताओं के बंगले हैं वहां। सब साफ सुथरा है। एक भी कागज, कूड़ा, गर्दा नहीं है। सब ऊंचे लोग रहते हैं वहां। मोदी भी वहीं रहते हैं।”
“उंही इलाके में, मोदी के बगलइ में ही रहत रहे हम”
“एक रोज तो मोदी जा रहे थे। सब रोक दिया गया था सड़क पर। ढेरों नई नई चाल की बंदूक लिये थे आदमी। हम लोग तो क्वार्टर से ताक झांक कर देख रहे थे। आदमी तो क्या, कोई बिलार तक नहीं जा सकता था सड़क पर।”
“हम तो सोचे कि यहां भी नमकीन मिठाई बना कर बेचें, पर सामान ले कर ही नहीं गये थे। कड़ाहा, गैस, झारा का इंतजाम करना पड़ता। फिर जिस इलाके में थे वहां कोई दुकान भी नहीं लगाने देता। वैसे हमें दुकान लगाने का शौक नहीं है। बंगले बंगले जा कर बेच आते। पच्चीस पैकेट नमकीन यहां से ले कर गये थे। उसमें से दस पैकेट बेचा मैंने। सौ रुपया पैकेट (कड़े प्रसाद यहां सत्तर रुपया पैकेट बेचते हैं) हाथो हाथ लिया लोगों ने। बाकी नमकीन और मिठाई बेची नहीं, दामाद और लड़के को दे दी। अबकी जाब त बनाई क जरूर बेचब उहाँ। तैयारी से जाब।”
कड़े प्रसाद दिल्ली और दिल्ली के सीट-ऑफ-पावर के इलाके में भी चकाचौंध से आतंकित नहीं थे। गांव तुलापुर, तहसील औराई, जिला भदोही में काम करने का जितना आत्मविश्वास उनमें है, उतना ही दिल्ली में रहेगा, यह मुझको यकीन है।
कड़े प्रसाद जैसा हुनरमंद आदमी कहीं भी रहे, अपने लिये काम और रोजगार तलाश ही लेगा। पूंजी भी ज्यादा नहीं चाहिये – कुछ बर्तन, गैस-चूल्हा और नमकीन के पैकेट बनाने के लिये पॉलीथीन की पन्नियां। बस। “वहां देख लिया था कि बेसन और दाल कहां से मिलेगी। घूम घूम कर बंगलों में बेचने में ज्यादा दिक्कत नहीं है। जैसे यहां बेचते हैं; वैसे वहां!”
कड़े प्रसाद दिल्ली और दिल्ली के सीट-ऑफ-पावर के इलाके में भी चकाचौंध से आतंकित नहीं थे। गांव तुलापुर, तहसील औराई, जिला भदोही में काम करने का जितना आत्मविश्वास उनमें है, उतना ही दिल्ली में रहेगा, यह मुझको यकीन है।

वे कड़े प्रसाद विश्वकर्मा हैं। सोते जागते मिठाई नमकीन बनाने और फेरी से बेचने की सोचते हैं। खांटी हलवाई का शरीर – मोटा पेट, कपड़े जिन्हे साफ नहीं कहा जा सकता। एक जैकेट, कमीज के नीचे एक दो स्वेटर और सिर पर ठण्ड से बचने के लिये लपेटा गमछा। उम्र मुझसे कुछ कम होगी। पचास-साठ के बीच। मोटापे के कारण पैरों में दर्द रहता है पर उसका रोना रोते कभी नहीं पाया उनको। उनके घर की जमीन में जो मंदिर बना है और हर साल जो हजारों लोगों के भोजन का भण्डारा होता है; उसके लिये अपना योगदान देना, घर घर जा कर उसके लिये दान इकठ्ठा करना – यह सब आसान काम नहीं है। एक आम दुकानदार इतना नहीं कर पाता। कड़े प्रसाद में कुछ न कुछ तो विलक्षण है, जरूर।

चलते चलते, मॉपेड स्टार्ट करते समय भी कड़े प्रसाद बोले – गुरूजी, मसूर के दाल क नमकिनिया बहुत महीन बा। एक पैकेट ओहू क ट्राइ करतें…
हलवाई तो अच्छे हैं ही, सेल्समैन पार एक्सिलेंस हैं कड़े प्रसाद!
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