कसवारू गोंण का मछली मारने का जुनून

नदी किनारे मिले कसवारू गोंण। किसी नाव पर नहीं थे। मॉपेड से आये थे। मुझे लगा कि सवेरे सवेरे मल्लाहों से मछली खरीदने वाले होंगे, जो यहां से मछली खरीद कर चौरी/महराजगंज बाजार में बेचते हैं।

पर कसवारू ने जो बताया वह आश्चर्य में डालने वाला था। वे धौकलगंज (यहां से करीब 35 किलोमीटर दूर) से आये हैं। मछली पकड़ने। सवेरे का समय था। साढ़े पांच बजे।


(जून 10. 2017 को फेसबुक-नोट्स पर पब्लिश की गयी पोस्ट)



दूर से कसवारू गोंण और उनकी मॉपेड का चित्र

इस जगह पर नदी (गंगा माई) के समीप मैं आता हूं। पांच बजे भोर में घर से निकल लेता हूं। नदी की बहती धारा देखने और कुछ चित्र लेने का मोह सवेरे उठाता है और बटोही/राजन भाई के साथ इस जगह के लिये रवाना कर देता है। मैं 3.5 किलोमीटर दूर से आ रहा हूं पर यह बन्दा 35 किलोमीटर दूर से आ रहा है। कुछ मछलियां पकड़ने।

मुझसे दस गुना जुनूनी निकले कसवारू गोंण।

राजन भाई ने पूछा – “कितनी उम्र होगी? पचपन?”

देखने में वह व्यक्ति 60 के आसपास लगते थे।

कसवारू का उत्तर फिर आश्चर्य में डालने वाला था – छिहत्तर चलत बा हमार। सन बयालीस क पैदाईस बा। (छिहत्तर। सन 1942 की पैदाइश है मेरी।)।

मछली पकड़ते कसवारू गोंण

75+ साल (देखने में 55-65 के बीच), 35 किमी मॉपेड चला कर बंसीं से मछली पकड़ने के लिये गंगा किनारे आना! और एक दिन नहीं; नित्यप्रति! अत्यन्त विस्मयादिबोधक! जुनूनी होने के लिये किसी बड़ी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई या 6 अंकों की सेलरी वाली नौकरी करना जरूरी नहीं जीडी! केवल तुम ही नहीं हो उलट खोपड़ी के जीव पण्डित ज्ञानदत्त!

कसवारू गोंण ने बताया कि सवेरे जब पहली अजान होती है मस्जिद में, तब वे निकल लेते हैं। किसी दिन 2 किलो, किसी-किसी दिन 15-20 किलो तक मिल जाती है मछली। आजकल ठीक ठाक मिल जा रही है। अभी दो दिन पहले सात किलो की पहिना पकड़ी थी।

“पहिना क्या?”

मछरी। कतउं बरारी कहत हयें ओके। (मछली। कहीं कहीं बरारी भी कहते हैं उसे। )

कसवारू जिस तरह से बात कर रहे थे, वह प्रभावित करने वाला था। शरीर में भी कहीं बुढ़ापे की लाचारी नहीं थी। छरहरा कसा शरीर। वैसी ही आवाज और वैसा ही आत्मविश्वास। साफ कपड़े और सिर पर सुगढ़ता से बांधी पगड़ी। क्लीन शेव और अपने गंवई वेश में भी टिप-टॉप!

बिना समय गंवाये कसवारू अपनी जगह तलाशने और कांटा लगाने में जुट गये। अपनी धोती भगई की तरह बांध ली थी उन्होने। काम के लिये तैयार।

हमारे पास आज समय कम था। सो लौट चले। वर्ना उनसे और बातचीत करने का मन था। वापसी में कसवारू की तंदुरुस्ती के राज पर कयास लगाया – रोज मछली खाता है, शायद इस कारण से!

देखें, फिर कभी मिलते हैं कसवारू या नहीं!

——–

गोंण जाति के बारे में राजन भाई ने बताया कि कंहार होते हैं वे। खानदानी पेशा कुंये से पानी भरने और पालकी ले कर चलने का था। जमींदारों के भृत्य। अब तो अनेकानेक काम करते हैं।


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

One thought on “कसवारू गोंण का मछली मारने का जुनून

  1. उम्र के बारे मे सटीक जानकारी से अपनी उम्र ज्यादा होने का कोई अफसोस नही रह जाता है।

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