शिवकुटी घाट पर अमौसा के दिन

मैं नहीं हूं शिवकुटी, प्रयागराज में। पर मेरे बहू-बेटा-पोती अब वहां रहने चले गये हैं। उनके माध्यम से शिवकुटी घाट का गंगा भ्रमण हो जाया करेगा; यदा कदा।

शिवकुटी और वहां के गंगा तट ने मेरे ब्लॉग को बहुत समृद्ध किया है। बहू-बेटा-पोती के वहां रहने के कारण आगे भी शिवकुटी की पोस्टें आती रहेंगी। आप शिवकुटी पर क्लिक कर पुरानी सभी पोस्टें देख सकते हैं।

कल मौनी अमावस्या थी। प्रयाग में बड़ा मेला। मेरे बहू-बेटा-पोती वहां होने के कारण शिवकुटी के गंगा तट पर गये। यह पोस्ट उन्ही के भ्रमण का विवरण है। कथ्य और चित्र बहू बबिता पाण्डेय के हैं –


दिन माघ की अमावस्या का था, और यह माघ मेले का सबसे महत्वपूर्ण दिन था। पर हम लोग देर से गये। दिन के दो बजे थे। शिवकुटी के घाट पर गंगा बहुत पीछे चली गयी थीं। कुछ लोग जाल डाल कर मछली पकड़ने में लगे थे। उनके अलावा कुछ ही लोग थे। भीड़ नहीं थी। शायद सवेरे नहा कर जा चुकी थी।

हमने (चीनी/पद्मजा, भैया जी और मैंने) गंगा जी में हाथ पैर धोया। सिर पर जल छिड़का। वापस लौटने लगे तो लगा कि फोटो तो लिये ही नहीं! वापस तट पर गये।

दो उम्रदराज महिलायें वहां पूजन कर रही थीं। आपस में बात कर रही थींं- हमने पूजा तो ठीक से कर ली। अब गंगा मईया में फूल कैसे विसर्जित करें?

मेरे (बबिता के) हाथ में फूल दोनो ने एक साथ रखे, मेरा हाथ थामे थामे पांच बार गंगा माई का जयकारा किया। चित्र पद्मजा द्वारा।

गंगा किनारे फिसलन थी। उन महिलाओं को उसी का भय था। मैंने उन्हें कहा कि अगर आपको आपत्ति न हो तो मैं गंगाजी को आपके फूल चढ़ा सकती हूं। यह सुन दोनो महिलायें बहुत प्रसन्न हुईं। मेरे हाथ में फूल दोनो ने एक साथ रखे, मेरा हाथ थामे थामे पांच बार गंगा माई का जयकारा किया। उसके बाद मैंने विसर्जन किया। महिलाओं ने स्वत: कहा कि वे गोविंदपुर चौराहे से आयी हैं। उनका हमारी सहायता से सारा पूजन विधिवत हो गया।

महिलायें मेरी दादी सास के उम्र की थीं। हम सब ने उनके चरण स्पर्श किये। उनका आशीर्वाद और प्रसाद के लड्डू हमें मिले। बहुत आनंद आया इस अनुभव से।

वापसी में घाट के पण्डाजी से भैया जी ने तिलक लगवाया।

वापसी में घाट के पण्डाजी से भैया जी ने तिलक लगवाया। दक्षिणा दी। पिताजी (ज्ञानदत्त पाण्डेय) का हालचाल पूछा पण्डाजी ने। हमने बताया कि हम अब चीनी की पढ़ाई के लिये शिवकुटी में रहने आ गये हैं।

कोटेश्वर महादेव और हनूमान जी के दर्शन के बाद हम घर वापस आये। उन दो वृद्ध महिलाओं की सहायता से मन प्रसन्न था।

चीनी (पद्मजा) भैया जी (ज्ञानेंद्र पाण्डेय) और बबिता। गंगा तट पर।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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