स्टेटस – नूरेशाँ मनिहारिन

वह अपनी दऊरी में औरतों का सामान लिये उमरहां गांव में दिख गयी। चूड़ी, बिंदी, झुमका, टिकुली, अण्डरगार्मेण्ट्स आदि लिये। मुंह में पान या सुपारी था।

“अफगान स्नो और पाउडर अब भी आता है?” – मैंने अपने बचपन की मनिहारिन याद कर पूछा।

वह बोली – नहीं, अब वह सब नहीं होता।

नूरेशाँ मनिहारिन

नाम बताया नूरेशाँ। बारह बरस पहले आदमी मर गया तो अपने तीन बच्चे पालने को उसने दऊरी उठा ली। लड़की शादी की उम्र की हो गयी है। उसे इस काम में नहीं लगा सकती। वह आसपड़ोस में बर्तन मांजती है। दो लड़के अभी छोटे हैं। महराजगंज के हुसैनीपुर इलाके की है नूरेशाँ। साल दो साल में लड़की की शादी की फिक्र है उसे।

घर आ कर अपनी पत्नीजी को बताया तो उन्होने आश्चर्य व्यक्त नहीं किया। “औरतों की जरूरतें अभी भी पूरी करने के लिये मनिहारिन प्रासंगिक है। गांव की औरतें आज भी बाजार नहीं के बराबर निकलती हैं।”

मेरे लिये तो मनिहारिन मिलना अजूबा था। पर अभी भी मनिहारिनें हैं और ग्रामीण समाज में उनका स्थान है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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