बरसात में सुग्गी की सुबह

Suggi, Gobar

सुग्गी हमारी अधियरा है। और मेरे ब्लॉग का एक प्रमुख पात्र। उसके माध्यम से गांवदेहात को समझता हूं मैं। गांव को समझने की खिड़की। लोग कहते हैं कि अपना अधियरा बदलते रहना चाहिये, पर हमें (निर्णय मेरी पत्नीजी करती हैं) उससे कोई शिकायत नहीं तो बदलने की बात भी नहीं उठती। वह हमारे विस्तृत परिवार की तरह हो गयी है।

बरसात के मौसम में गोबर पाथ कर उपले बनाये नहीं जा सकते। गोबर इकठ्ठा करने की जगह भी सुग्गी के घर के पास नहीं है। इसलिये आजकल वह मेरे घर में ला कर पीछे जमा कर देती है। गोबर सड़ कर अच्छी खाद बन जायेगा। तब उसका प्रयोग वह खेत में करेगी और मेरी पत्नीजी अपनी बगिया में। हम दोनों का लाभ है इसमें।

आज रात भर से बारिश हो रही है। कभी तेज और कभी धीमी। पर रुक नहीं रही। जब बारिश होती है तो बिजली नहीं आती गांव में। आज भी रात भर से नहीं है। मेरे घर का सोलर बैक-अप भी बहुत कम काम कर रहा है। पूरा आसमान मेघाच्छादित है। हमारा एक इंवर्टर बैठ चुका है। दूसरे के बल पर काम चल रहा है। बिजली का मितव्ययता से प्रयोग हो रहा है। पर चूंकि गांव में हमारे यहां ही बिजली होती है, आसपास के लोग यहीं आते हैं अपना मोबाइल चार्ज करने। सुग्गी का लड़का भी लगा गया है अपना स्मार्टफोन (उसके जीजा ने अपना पुराना उसे दे दिया है)।

सुग्गी गोबर ले कर आती है। हम पोर्टिको में चाय पी रहे हैं और मेरे पास मोबाइल फोन रखा है। मैं सुग्गी के चित्र लेता हूं। सुग्गी गोबर पीछे डाल कर आती है। घर में काम करने में और खुले में निकलने में पूरी तरह भीग गयी है। पर वह तुरंत वापस लौटने की बजाय मेरी पत्नीजी से बातचीत करने लगती है।

सुग्गी कहती है, बहुत काम है, पर बतियाने को रुकी रहती है।

सुग्गी बहुत वाचाल है। कहती जाती है – “जीजी, बहुत काम है। मरने की फुर्सत नहीं है।” पर फिर भी रुक कर बातें खूब करती है। कई बार तो बातें खत्म कर जाने लगती है तब कुछ और याद आ जाने पर वापस लौट कर बताने-बतियाने लगती है।

आज तो उसके पास कहने को बहुत कुछ है। रात भर बारिश होती रही। उसके घर में दो मड़ई हैं। एक में पूरा परिवार रहता है और दूसरे में उसकी भैंस, बकरियां, तोता, खरगोश और मुर्गियाँ। जानवरों वाली मड़ई धसक रही है। छप्पर पर इतना अटाला पड़ा रहता है और बारिश में छप्पर भीग कर इतना वजनी हो जाता है कि उसका धसकना लाजमी है। कल उसकी एक बल्ली टूट गयी थी तो हमारे घर से एक बांस मांग कर ले गयी थी। आज पूरी मड़ई ही लटकी जा रही है। रात किसी तरह काटी है। अब दिन में उसकी मरम्मत भी करनी है।

सुग्गी का आदमी – राजू – सब्जी का ठेला लगाता है। सब्जी लेने भोर में ही कछंवा सब्जीमण्डी जाता है। आज बारिश के कारण निकल ही नहीं पाया। अब दिन में कभी जायेगा। वैसे भी, राजू मेरी तरह लद्धड़ है और सुग्गी मेरी पत्नीजी तरह स्मार्ट। गृहस्ती तभी चल पा रही है – उसकी भी और हमारी भी।

वह अपनी धान की नर्सरी की बात करने लगती है। इस साल मेरी पत्नीजी की फरमाइश पर बासमती धान के बीज ले आई थी। उसकी नर्सरी बनाई पर उसके बाद पानी बरसे चले जा रहा है। पता नहीं बीज अंकुरित भी होंगे या नहीं। अगर नहीं हुये तो एक बार फिर नर्सरी बनानी होगी। बीज का खर्चा डबल होगा। एक और खेत में उड़द बोनी है। पर बारिश रुके तभी वह हो सकेगा। ज्यादा बारिश में तो उड़द की पौध गल जायेगी। बारिश ज्यादा होने से काम रुक भी गया है और काम बढ़ भी गया है।

बातचीत बारिश से हट कर परनिंदा पर खिसक आयी है। पड़ोसियों से कष्ट है सुग्गी को। उन्होने अपने घर ऊंचे कर लिये हैं। अपनी बाउण्ड्री भी बनवा ली है। उसके यहां बारिश का पानी ज्यादा इकठ्ठा होने लगा है। पचीस पचास ट्रॉली मिट्टी गिरे तो जा कर उसका घर सूखा रह पाये। औरों के पास तो पैसे हैं; उसके पास नहीं; और इसका दर्द झलक जाता है। स्वसुर ने भी राजू के छोटे भाई को दे दिया, उसको नहीं। छोटे भाई ने पक्का कमरा बनवा लिया है। उसकी भी कसक सुग्गी को है। … पर इस परनिंदा के बावजूद सुग्गी बहुत नहीं कोसती। हंसती रहती है।

घर में काम का अकाज हो रहा है, यह वह कई बार बताती है पर फिर भी बातचीत के लिये खड़ी रहती है। मुझे लगता है कि उसे एक कप चाय ऑफर कर दी जाये, पर वह पीती नहीं – “अभी मुखारी नहीं किया है जिज्जी।” दातुन करने के बाद ही कुछ मुंंहमें डालने की परम्परा है। सवेरे उठते ही भैस की सेवा का काम सामने होता है तो मुखारी करना रह ही जाता है।

सुग्गी जिस तसले में वह गोबर ले कर आयी थी, उसको सिर के ऊपर छाते की तरह ओढ़ लेती है।

आखिर में वह वापस लौटती है। बारिश हुये जा रही है। जिस तसले में वह गोबर ले कर आयी थी, उसको सिर के ऊपर छाते की तरह ओढ़ लेती है। और मैं एक और चित्र खींच लेता हूं उसके जाते हुये का!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “बरसात में सुग्गी की सुबह

  1. यदि इसको ही पाडकास्ट बना कर डाल दिया जाये तो लोग और सुनेंगे। सुग्गी के पति राजू से तुलना न करें, राजू को न जाने क्या क्या सिखायेंगी सुग्गी अभी।

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