अपना खुद का पॉडकास्ट करने के लिये अपनी आवाज सुनने की मनस्थिति बन रही है। अपने उच्चारण में खामियाँ नजर आने लगी हैं। मोबाइल से या माइक से मुंह की कितनी दूरी होनी चाहिये, उसकी तमीज बन रही है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
अपना खुद का पॉडकास्ट करने के लिये अपनी आवाज सुनने की मनस्थिति बन रही है। अपने उच्चारण में खामियाँ नजर आने लगी हैं। मोबाइल से या माइक से मुंह की कितनी दूरी होनी चाहिये, उसकी तमीज बन रही है।