पॉडकास्टिकी और बदलती मनस्थिति


अपना खुद का पॉडकास्ट करने के लिये अपनी आवाज सुनने की मनस्थिति बन रही है। अपने उच्चारण में खामियाँ नजर आने लगी हैं। मोबाइल से या माइक से मुंह की कितनी दूरी होनी चाहिये, उसकी तमीज बन रही है।

सामग्री (Content) तो राजा कतई नहीं है!


नेट पर हमारी उपस्थिति तो बनी। ब्लॉग के क्लिक्स बढ़ते गये। रोज आंकड़े देख कर हम प्रमुदित होते थे, पर उससे पैसा कमाने का मॉडल गूगल का बन रहा था!