घर परिसर में वनस्पति और जीव, रंग और गंध, समय के साथ उनकी वृद्धि और बदलाव – कितना कुछ है जिसे देखा-महसूसा जा सकता है। उसके लिये इन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं कि यह हिंदू जीवन धारा है या बौद्ध-जेन।
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पॉडकास्टिकी और बदलती मनस्थिति
अपना खुद का पॉडकास्ट करने के लिये अपनी आवाज सुनने की मनस्थिति बन रही है। अपने उच्चारण में खामियाँ नजर आने लगी हैं। मोबाइल से या माइक से मुंह की कितनी दूरी होनी चाहिये, उसकी तमीज बन रही है।