भोलेनाथ फूड प्लाजा को आते जाते देखता था। आज करीने से कुल्हड़ जमाते एक कर्मचारी को देख कर मन हो आया कि चाय के बारे में पूछा जाये। कुल्हड़ का साइज ठीक लगा। यह तो था कि वह “चुकुई” जैसे कुल्हड़ में दो घूंट वाली चाय तो नहीं ही देगा। उस माईक्रो-कुल्हड़ में तो चाय पीने का कभी मन नहीं होता।
मुझे कर्मचारी ने बताया कि दस रुपये की चाय है।
बिना चीनी वाली मिलेगी?
बगल में मालिक जैसे कोई व्यक्ति बैठे थे। बोले – जरूर। आप आईये, बैठिये।
मैं साइकिल पर बैठे बैठे चाय पीने के मूड में था, पर उनके आग्रह पर उतरा। उन्होने मुझे अपने काउण्टर के पीछे कुर्सी दे कर बैठने के लिये आमंत्रित किया। चाय आयी। मैंने उसके साथ एक समोसा भी लिया। समोसे का साइज भी आम गुमटियों पर मिलने वाले “समोसी” के साइज से बड़ा था और उसके अंदर मसाला भी कम तीखा। कुछ मूंगफली के दाने भी उसमें लगे। कुल मिला कर चाय और समोसे की क्वालिटी स्तरीय कही जा सकती है। मनमाफिक।

मालिक थे राघवेंद्र मिश्र। वे अपना परिचय वे देने लगे। यहीं महराजगंज कस्बे के पास गांव अदनपुर के रहने वाले हैं। पहले प्रयागराज में थे। उनकी बसें चलती थीं। अब भी चलती हैं। बसें चलाने से उन्हें रोड ट्रांसपोर्ट महकमे के लोगों से परिचय था। एक समय आया जब उन्होने अपना वह कारोबार होल्ड पर रख कर हाईवे पर फूड प्लाजा खोलने की सोची। उस समय यह परिचय उनके काम का साबित हुआ।
सन 2018 में अक्तूबर महीने में नवरात्रि के दौरान इस “भोलानाथ फूड प्लाजा” का उद्घाटन हुआ। पूजा पाठ के साथ शुभ समय में। तब का हाल राघवेंद्र बताते हैं कि उस समय प्रयाग में उन्ही के प्रबंधन में बारह बसें थीं, जो यहां चाय-नाश्ते के लिये रुकने लगीं। सवेरे पांच बजे वे यह आउटलेट खोलते थे और रात 10-11 बजे तक भी प्रतीक्षा करते कि ऐसा न हो कोई बस आ कर रुके और वे उसको सर्विस न दे पायें।
यह फूड प्लाजा खुलने के बाद ठीकठाक प्रगति हुई; पर दो बार (2020 और 2021) के लॉकडाउन में इसे बंद रखना पड़ा। उससे व्यवसाय को बहुत धक्का लगा। अब सब पटरी पर आ गया है।

एक बस सामने आ कर रुकी और यात्री उतर उतर कर काउण्टर पर भोज्य पदार्थों का कूपन पैसा भुगतान कर लेने लगे थे। राघवेंद्र मुझे अपने कामधाम के बारे में बताते भी जा रहे थे और ग्राहकों से पैसा ले कर कूपन भी देते जा रहे थे। यह कूपन सिस्टम पूरी व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिये अच्छा ‘टूल’ लगा मुझे। एक साथ ढेर सारे ग्राहकों को टेकल करना इस कूपन से सरल होता प्रतीत हो रहा था। अन्यथा काउण्टर पर पैसा लेने और उसका ऑर्डर कर्मचारी तक रिले करने की ऊर्जा व्यथ खर्च होती। इसके अलावा, कूपन शायद खाद्य सामग्री का सही सही हिसाब रखने और बिक्री का आकलन करने में भी सहायक होता हो।
इस समय कितनी बसें यहां रुकती होंगी?
राघवेंद्र ने बताया कि करीब 60-70 रुकती हैं। सवेरे छ बजे से शाम 6-7 बजे तक वे यह प्लाजा खोल कर रखते हैं। परिवार के दो-तीन लोग लगे हैं इसके प्रबंधन में। आजकल उन्हे ही अधिकांश काम देखना होता है। वे ही मुख्य कर्ताधर्ता हैं; इसलिये और ज्यादा देर तक खोल कर बैठना सम्भव नहीं हो पाता।
साठ सत्तर बसों के यात्रियों का ट्रेफिक बारह घण्टे में डील करना – यह बड़ा हेक्टिक काम है। दिन भर कैश काउण्टर, फूड प्रेपरेशन और सर्विस का कुशल प्रबंधन करना सरसरी निगाह से देखने वाले को सरल लग सकता है; पर एक जटिल प्रक्रिया है। प्रक्रिया की किसी भी कड़ी में गफलत उपक्रम की साख तोड़ सकती है। वह तब जब आस पास उभरते प्रतियोगी अपनी अपनी दुकान सेट अप करने लगे हों।
मेरा आकलन है कि राघवेंद्र कस कर मेहनत करते होंगे। और बारह-चौदह घण्टे के इस थकाऊ काम के बाद (आशा करता हूं) उन्हें अच्छे से नींद आती होगी।

राघवेंद्र ने अपने लड़के नमन से परिचय कराया। नमन अभी पढ़ाई कर रहे हैं। आजकल शिक्षण संस्थान बंद हैं तो कुछ समय यहां फूड प्लाजा पर भी दे लेते हैं। अन्यथा कामधाम देखने का जिम्मा राघवेंद्र का ही है। उन्होने मेरे ससुराल पक्ष के और अपने परिवार के मेलजोल की भी बात की। बताया कि मेरे स्वसुर जी और उनके चचेरे बाबा पण्डित चंद्रिका प्रसाद शास्त्री मेंं घनिष्ट मित्रता थी।
मैंने सवेरे मौज मौज में चाय समोसा सेवन कर लिया था। घर ले जाने के लिये भी आधा दर्जन समोसा खरीदा। चलते समय एक दो चित्र राघवेंद्र के फूड प्लाजा के लिये।
राघवेंद्र जी का “भोलेनाथ फूड प्लाजा” नाम में थोड़ा आधुनिक लगे पर बना पूरी तरह किफायत और ‘मिनिमलिज्म’ के सिद्धांत पर है। उनके फर्नीचर और काउण्टर में व्यर्थ की तड़क भड़क नहीं है। फूड आईटम में भी दुनिया भर की अजीबोगरीब डिशेज के नाम नहीं हैं। देसी यात्री जो समोसा, कचौरी, भजिया, ब्रेड पकौड़ा खाता है; वही है। इस लिये उन्हें इन्ही चीजों को बनाने के कारीगर रखने की दरकार है। उनके कैश काउण्टर के साथ दो डीप फ्रीजर जैसे बक्से थे। शायद कोल्ड ड्रिंक आदि के लिये। फूड प्रेपरेशन जिस प्रकार से हो रही थी, वह देख कर गांव या कस्बे के यात्री को तो कुछ भी अटपटा नहीं लगता होगा, पर कोई महराजगंज-बाबूसराय के बीच मेकडॉनल्ड या के.एफ.सी. जैसी फ्रेंचाइजी की अपेक्षा करे, तो वह तो नहीं ही है।

वैसे मुझे कोई महिला यात्री तो बस से उतर कर काउण्टर पर आती नजर नहीं आयी; पर अगर होती हों तो राघवेंद्र जी को उनके लिये महिला सुविधाओं की ओर जरूर सोचना चाहिये। वे अभी बसों की ग्राहकी से संतृप्त महसूस कर सकते हैं, पर कालांतर में बढ़ते कम्पीटीशन को देखते हुये उन्हें लम्बी दूरी के कारों में यात्रा करने वाले लोगों को भी आकर्षित करने की भी सोच बनानी होगी… और शायद यह सब उनके कुशल बिजनेस माइण्ड में हो भी।
फिलहाल, पंद्रह मिनट के वहां के ठहराव में सरसरी निगाह से जो देखा उसमें कुछ चीजें मुझे अपील कर गयीं। राघवेंद्र ने व्यर्थ के सामान-सजावट में पैसा बर्बाद नहीं किया है। उन्होने सघन ग्राहकी की आमद साध ली है – उसके लिये बस कर्मियों से जो भी तालमेल बैठाया हो, वह उनकी प्रबंधन कुशलता ही कही जायेगी।
इसके अलावा त्वरित सर्विस कर एक साथ दो तीन बसों के यात्रियों को संतुष्ट करने का जो सिस्टम बनाया है, वह आकर्षित करता है। व्यर्थ की वेटर-ऑर्डर-सर्विस की चेन कायम नहीं की। सेल्फ सर्विस मॉडल है, जो काफी सही है। लोग बस से उतरते हैं। कैश काउण्टर पर आ कर पैसा दे कर कूपन लेते हैं और कूपन से फूड काउण्टर वाले नाश्ते का सामान देते हैं। सामान ले कर पास लगी कुर्सी-मेजों पर या खड़े खड़े भी खा कर रवाना होते हैं।
राघवेंद्र नाश्ते के सामान, चाय आदि की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं। ग्राहक को इंतजार नहीं करना पड़ता।
मुझे राघवेंद्र जी के यहां पंद्रह मिनट व्यतीत करना अच्छा लगा। मैं एक ऐसे ‘अड्डे’ की तलाश में हूं जहां आधा पौना घण्टा बैठ कर लोगों को देखना-बोलना-बतियाना हो सके। एक छोटी सी मेज भी हो जिसपर जेबी नोटबुक रख कर नोट्स लिये जा सकें। अगर वैसा कुछ जमा तो भोलेनाथ फूड प्लाजा को महीने के हिसाब से पेमेण्ट कर एक कोने की सीट पर नियमित अड्डा जमाना चाहूंगा! उनकी चाय और समोसे की क्वालिटी मुझे भा गयी है! मेरी पत्नीजी ने भी कहा है कि आसपास के सभी जगहों के समोसों की बजाय यहाँ का समोसा बेहतर है।
शायद वहां रोज आधा घण्टा व्यतीत करने से मेरे ब्लॉग की आगामी दस बीस पोस्टें जन्म ले सकें। शायद मुझे वह अनुभव नियमित ब्लॉगिंग को प्रेरित करे। वह क्रियेटिव ‘अड्डा’ साबित हो! 🙂

badhiya hai adda jamaya jaye. Aanand aayega
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बहुत समय बाद दिखे ब्लॉग पर, समीर लाल जी. आशा है आप भी आनंद से होंगे. आपकी पत्नी जी को नमस्कार.
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आपको अड्डा मिल गया। आपको नित नये चरित्र मिल जायेंगे। बस में दुनिया सफर करती है। उनका प्रचार स्वतः हो जायेगा। चाय फ्री में मिल जाये तो मना मत कीजियेगा।
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आज तो राघवेंद्र जी प्रसन्न थे। मुझे चाय पिलाई और साथ बैठ कर पी भी। मेरी साइकिल उन्होने खुद सहेज कर पार्क की थी। 🙂
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