जबलपुर से गोटेगांव

6 अक्तूबर, शाम –

मुझे लगता है कि आगे की ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा करने वालों के लिये प्रेमसागर एक मानक तैयार कर रहे हैं। क्या पहनें, क्या खायें, कैसे चलें आदि के मानक। वैसे यह भी है कि इस प्रकार की दुरुह और कष्टसाध्य यात्रा करने वाले भविष्य में नहीं ही होंगे। मेरे जैसा व्यक्ति द्वादश ज्योतिर्लिंग की साइकिल कांवर यात्रा या ई-साइकिल कांवर यात्रा की सोच सकता है। पर उसके मानक अलग तय होंगे।

आज की यात्रा सबसे लम्बी थी प्रेमसागर की। दो दिन जबलपुर में व्यतीत करने के बाद आज 62 किमी चलना था। सो भोर में चार-साढ़े चार बजे के बीच निकलना हुआ। वन विभाग के एक कर्मी 15 किलोमीटर साथ उनके साथ आये। सामान उन्होने उठा रखा था, कांवर प्रेमसागर ने। रास्ते में शुरुआत में ही नर्मदा माई का पुल पड़ा। अंधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था। पुल की लाइट से पुल का पार करना भर पता चला। पांच बजे के पहले ही एक चाय की दुकान पर चाय पी; दिन की पहली चाय। चाय पीने के साथ एक अनुष्ठान चाय की दुकान की फोटो खींचना जुड़ गया है प्रेमसागर की यात्रा में। दो घण्टे बाद, सवेरे के उजाले में एक और चाय की दुकान का फोटो है। अर्थात पौने सात बजे तक दूसरी चाय भी हो गयी थी। जो वन कर्मी साथ आये थे वे लौट गये थे।

करीब 18 किमी तक का रास्ता कवर कर चुके थे प्रेम सागर जब मेरी उनसे सात बजे के पहले बात हुई थी। अभी भी उन्हें चालीस-पैंतालीस किलोमीटर चलना था; अपने पूरे सामान के साथ।

पौने सात बजे तक प्रेम सागर की दूसरी चाय भी हो गयी। भोर में अंधेरे में निकलने पर किसी भी चाय की दुकान पर रुकने का आकर्षण रोक पाना एक आम आदमी के लिये कठिन है। निकलती चाय की भाप आपनी ओर खींचती है! और उसमें अगर अदरक की महक आ रही हो तो क्या कहने।

पौने सात बजे तक प्रेम सागर की दूसरी चाय भी हो गयी।

कल जियो का नेटवर्क मरो की दशा में था। इसलिये मार्ग में प्रेमसागर जी के साथ वार्तालाप नहीं हो पाया। उनके अपडेट चित्रों की खेप जो अंतराल में आती रहती थी, वह भी नदारद थी। एक जगह उनसे सम्पर्क हुआ। मैंने उन्हें कहा कि अपनी लोकेशन शेयर कर दिया करें। टेलीग्राम या ह्वाट्सएप्प में शेयर करने पर आठ घण्टे तक ट्रेस किया जा सकता है कि पथिक किस रास्ते से गुजर रहा है। उनका जवाब था – “कल से करूंगा भईया, काहे कि आज तो नेट ही तकलीफ दे रहा है। आपको उससे जन्कारियै नहीं मिलगा, ठीक से।”

बारह बजे के लगभग एक शॉर्टकट से घूमे प्रेमसागर। सड़क की बजाय गिट्टी और लाल बालू जैसा दिख रहा है रास्ता। अगर नंगे पैर चलते होते तो निश्चय ही वह तलवे में चुभता। अब उनके पास रबर सोल की सैण्डल है – इसलिये दिक्कत नहीं हुई होगी। मुझे लगता है कि आगे की ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा करने वालों के लिये प्रेमसागर एक मानक तैयार कर रहे हैं। क्या पहनें, क्या खायें, कैसे चलें आदि के मानक। वैसे यह भी है कि इस प्रकार की दुरुह और कष्टसाध्य यात्रा करने वाले भविष्य में नहीं ही होंगे। मेरे जैसा व्यक्ति द्वादश ज्योतिर्लिंग की साइकिल कांवर यात्रा या ई-साइकिल कांवर यात्रा की सोच सकता है। पर उसके मानक अलग तय होंगे।

बारह बजे के लगभग एक शॉर्टकट से घूमे प्रेमसागर। सड़क की बजाय गिट्टी और लाल बालू जैसा दिख रहा है रास्ता।

एक जगह कोई जगदीश मंदिर में प्रेमसागर जी विश्राम किये। वहां के व्यवस्थापक नेतराम तिवारी जी ने उन्हें दूध पिलाया। मंदिर में एक बछिया का सुंदर चित्र भी प्रेमसागर ने भेजा है। राह में लोगों से मिलना, आराम करना और बोलना बतियाना यात्रा के सुखद पक्ष हैं। नेतराम जी दूध पिलाने में श्रद्धाभाव देख रहे थे या सामान्य सत्कार; ये वे ही जानें, पर इस तरह के कृत्य बताते हैं कि हिंदुत्व का व्यवहारिक पक्ष अभी शुष्क नहीं हुआ है – जैसे कई व्यंगकार (या वामपंथी) देखते हैं और उसमें हिंदुत्व निंदा का रस लेते हैं।

बासठ – पैंसठ किलोमीटर की यात्रा पूरी कर प्रेमसागर शाम सात बजे के आसपास गोटेगांव पंहुच गये होंगे। कमरे में बृजमोहन शर्मा जी के साथ उनका सेल्फी वाला चित्र शाम सात बज कर बाईस मिनट का है। प्रेमसागर उघार बदन बैठे हैं। चश्मा लगाये। शायद पढ़ने के लिये लगाया होगा। यात्रा से थके, गौरईया से लगते हैं। प्रेमसागर द स्पैरो! जब मैंने अपने घर पर उन्हें महीना भर पहले देखा था, तब से अब मुंह कुछ सिकुड़ गया है। पर लगते ग्रेसफुल हैं। (ग्रेसफुल को हिंदी में क्या कहते हैं, जीडी? अभी भी तुम्हारी अंगरेजी शब्द ठेलने की प्रवृत्ति गयी नहीं। हिंदी नहीं सीखोगे तो अच्छा ट्रेवलॉग कैसे बनाओगे। :lol: )

यात्रा से थके, गौरईया से लगते हैं। प्रेमसागर द स्पैरो!

मैंने बृजमोहन शर्मा जी से बात की। वे एसडीओ साहब (खत्री जी) के बाबू हैं। प्रेमसागर जी की देखभाल के लिये खत्रीजी ने उन्हें डिप्यूट किया है। पूछने पर कि कैसे हैं प्रेमसागर, उनके प्रति अच्छा-अच्छा ही बोलते हैं। ऐसी यात्रा वाला कोई व्यक्ति पहले कभी देखा नहीं उन्होने। अपने परिवार के लोगों से भी बात की है उन्होने प्रेमसागर की। परिवार के लोग चाहते हैं कि प्रेमसागर उन्हें पारिवारिक कष्टों के बारे में कुछ उपाय बतायें। यही भाव बहुत से लोग रखते हैं। पता नहीं, प्रेमसागर वह सब कैसे डील करते हैं। उनसे पूछना होगा।

बासठ किलोमीटर काहे चले एक दिन में। तीस पैंतीस का मानक रख कर क्यों नहीं चलते? प्रेमसागर का जवाब था – “बीच में रुकने का स्थान भी नहीं था और मुझे लगा कि इतना चला जा सकता है।” सम्भव है पहले की अपनी कांवर यात्राओं में वे साठ बासठ किलोमीटर से ज्यादा चलते रहे हों। उन्होने बताया भी है कि सुल्तानगंज से गंगाजल ले कर देवघर अगले दिन – चौबीस घण्टे में 105 किमी चल कर – महादेव को अर्घ्य देते रहे हैं। वह भी एक बार नहीं सौ से अधिक बार। निश्चय ही उनकी चलने की प्रवृत्ति की कल्पना मुझ जैसा व्यक्ति नहीं कर सकता!

गोटेगांव का अगले दिन सवेरे लिया चित्र

कल प्रेमसागर गोटेगांव से नरसिंहपुर के लिये रवाना होंगे। कुल छत्तीस – अढ़तीस किलोमीटर का रास्ता है। आज के मुकाबले कम चलना होगा!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “जबलपुर से गोटेगांव

  1. फेसबुक पेज पर टिप्पणियां –
    अरुण सांकृत्यायन – सादर – गोटेगांव जगत्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का स्थाई निवास एवं आश्रम है।

    रमेश चंद्र श्रीवास्तव – भगवान भोलेनाथ की असीम कृपा है, प्रेम सागर जी पर- अब नौ दिन मां भगवती भी भक्त के साथ पृथ्वी पर होंगी- सब शुभ ही शुभ होगा इन अद्भुत जीवट वाले परम भक्त की यात्रा में !

    भोला नाथ – गोटेगांव में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज भी अपने पूर्व आश्रम काल में निवसित रहे हैं ।

    Like

  2. मुझे लगता है कि कांवर यात्रा संपन्न करने के बाद प्रेम सागर एक नए अवतार में लौटेंगे। आपकी भाषा उत्कृष्ट
    लेकिन सरल है, चित्र भी बेहतरीन हैं।

    Liked by 1 person

  3. और वे हांफ जाते हैं गंगा के मैदानी भाग में। प्रेम सागर चल रहे हैं विंध्य के ऊंचे नीचे धरातल पर। उसका भी अन्तर है। हम लोगों को प्रेम सागर की prowess का अनुमान लगा कर सोचना चाहिए। 😊

    Like

    1. और वे हांफ जाते हैं गंगा के मैदानी भाग में। प्रेम सागर चल रहे हैं विंध्य के ऊंचे नीचे धरातल पर। उसका भी अन्तर है। हम लोगों को प्रेम सागर की prowess का अनुमान लगा कर सोचना चाहिए। 😊

      Like

Leave a reply to Gyan Dutt Pandey Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started