12 अक्तूबर 21 रात्रि –
आज सवेरे उदयपुरा से निकलने के एक घण्टे बाद ही प्रेमसागर को एक छोटी नदी का बड़ा पुल मिला। नर्मदा के उत्तर में यह नदी है तो और उत्तर में विंध्य की किसी पहाड़ी-जंगल से निकलती होगी। सवेरे के गोल्डन ऑवर की रोशनी में चित्र अच्छा आया है। नक्शे में खूब छानने पर भी दिखी नहीं। ऐसी अनेक नदियों का मकड़जाल बिछा है नर्मदेय क्षेत्र में। यह सब नर्मदा का सौंदर्य बढ़ाता है। क्या उपमा देंगे? ये नर्मदा की घनी केश राशि की एक एक लटें हैं?
उदयपुरा और बरेली – दोनो मध्यप्रदेश में हैं; राजस्थान और उत्तरप्रदेश में नहीं। प्रेमसागर को आज उदयपुरा से आगे बढ़ना है होशंगाबाद की ओर। नर्मदा से उत्तर में है यह मार्ग। करीब 8-10 किलोमीटर नर्मदा तट से दूर। किनारे किनारे चलने वाले परकम्मावासी यह मार्ग नहीं चुनते होंगे। पर नक्शे में मैं देखता हूं तो ढेरों मंदिर पड़ते हैं रास्ते में। मुख्य हनुमान जी और माता जी के हैं। कुछ बाबा लोग भी हैं – हरदौल बाबा, मेणे वाले बाबा, पटेल बाबा, मंदारी बाबा आदि। ये बाबा लोकल देवता होंगे। या शिवजी ही ग्लोकल हो कर बाबाओं में रूपांतरित हुये हों। कहीं कहीं मंदिरों में हनुमान जी के साथ शिवजी का ड्यूयेट भी दिखता है नक्शे में। यह जरूर है कि राम-जानकी-कृष्ण बड़े मार्जिन से हनुमान जी से पापुलर वोट हारते दीखते हैं। “राम से अधिक राम कर दासा” वाली बात सिद्ध है!
दिन में एक नदी और एक नहर और मिली रास्ते में। नाम पता नहीं चला। रास्ते में कोई आदमी आसपास नहीं था, जिससे प्रेमसागर पूछते। कुल मिला कर जल की कमी नहीं इस इलाके में। मईया का प्रताप है कि जो भी फसल लेना चाहो, हो जाती है। सांवां, कोदों, तिन्नी – सब होता है मोटे अनाज के रूप में। अरहर और धान के खेत भी दिखे प्रेमसागर को। एक जगह चने की बुआई भी हो रही थी। ग्रामीण सड़क से थोड़ा दूर था, वहां तक जा नहीं पाये।


सवेरे साढ़े नौ बजे एक मंदिर पर समय गुजारने के चित्र भेजे हैं चलते चलते प्रेम सागर ने। माता के दरबार के नाम से जानी जाती है यह जगह। वहां दो बच्चों ने प्रेमसागर को राह चलते रोका और मंदिर में बिठा कर साबूदाने की खीर खिलाई। नवरात्रि का समय है सो साबूदाने की ‘फलहारी’ खीर थी जो व्रत करने वाले भी खा सकें। बच्चों के नाम भी लिखे हैं प्रेमसागर ने। ग्यास और प्रीतम।
चार घण्टे से ज्यादा चल चुके थे माता जी के मंदिर तक प्रेमसागर। साबूदाने की खीर खा कर वहीं विश्राम करने लगे। बारह बजे तक वहीं आराम किया। अपनी आगे की यात्रा का समय-आकलन उन्होने कर लिया होगा अन्यथा आराम के लिये रुकने की बात तो साढ़े नौ बजे नहीं एक डेढ़ घण्टे बाद उठती है जब धूप और तेज हो जाती है। बाद में प्रेमसागर ने बरेली पंहुचते पंहुचते फोन पर बताया कि वहीं पर एक नागा बाबा थे, जूना अखाड़े के। चलते समय वे प्रेमसागर की बिदाई करने लगे। बिदाई की विधिवत परम्परा निर्वहन के साथ उन्हें पांच सौ एक रुपये भी दे रहे थे। प्रेम सागर ने मना किया और मात्र एक रुपया लेने की बात की। “भईया जूना अखाड़ा के नागा बाबा लोगों में इस तरह बिदाई करने और मान सम्मान करने का चलन है।”
“अरे यह क्या बात हुई आपको पांच सौ एक रख लेना चाहिये था!”
“नहीं भईया, नागा लोगों का दिया धन पचाना आसान बात नहीं है। मेरे मना करने पर भी पचास रुपया और दिये नागा बाबा। नाम पूछने पर बताये कि जब सन्यासी बन गये तो नाम का क्या। कपड़ा-लंगोट कुछ नहीं पहने थे। बस एक गमछा लपेट लिये थे लोगों के सामने आने के समय।”

मेरी पत्नी जी से सुना तो टिप्पणी की – “बकलोल हैं प्रेम सागर। जो मिल रहा था, रख लेना था। इन अखाड़ा-वखाड़ा वाले बाबा लोगों के पास खूब सम्पदा है। खूब पैसा है। उनसे जो मिले ले लेना चाहिये!” 😆
फिर जोड़ा – “पर शायद ठीक किया; उस लकड़हारे की तरह जिसने देवता से सोने, चांदी की कुल्हाड़ियां लेने से मना कर दिया था यह कह कर कि उसकी कुल्हाड़ी तो लोहे की है। और देवता ने उसे तीनो कुल्हाड़ियां दे दी थीं। हो सकता है अंतत: प्रेमसागर के साथ महादेव कुछ वैसा ही करें। परीक्षा बहुत लेते हैं ये महादेव!”
रास्ते में चलते हुये लोगों ने प्रेमसागर को हाईवे पर चलने की बजाय खेत की मेड़ पकड़ कर तिरछे निकलने का एक रास्ता बताया। उसपर चल दिये प्रेमसागर। जब सड़क से दूर हो गये तो लोकेशन बताने वाला एप्प भ्रमित हो कर अण्टशण्ट लोकेशन बताने लगा। अंतत: उन्हें एक छिंद धाम के इन्टीरियर मंदिर परिसर में दिखाया। छिंद धाम में मध्यप्रदेश भर के लोग मनौती के लिये आते हैं। मंत्री भी आते हैं और संत्री भी। वहां हनुमान जी का मंदिर है और राम जानकी भी हैं। मनौती वाले देव शायद हनुमान जी हैं और पीपल के दो विशालकाय वृक्ष।
वहां से सिंगल लेन वाली सड़क बरेली आती है। पता चला कि खेतों की मेड़ लांघते प्रेमसागर छिंद धाम पंहुचे थे। कीचड़ में पैर भी धंसे पर पांच किलोमीटर बचाने की चहक उनकी आवाज में थी। …. मैंने दोनो मार्गों का तुलनात्मक अध्ययन किया नक्शे पर। पूरी तरह परखने पर उन्होने कुछ खास नहीं बचाया था चलने में। पर खेतों में धंस कर आने का एडवेंचर तो मिला ही होगा। समय उन्हें उतना ही लगा। या शायद कुछ ज्यादा ही। पैर भी कीचड़ में सने होंगे जो उन्होने छिन्द धाम के सरोवर में धोये होंगे। पर उनकी जगह अगर मैं होता तो मैं भी यह “छोटे रास्ते पर चलने” का एडवेंचर ही करता! गांव के टेढ़े-घुमाव वाले रास्तों पर चलने का अपना ही आनंद है!

उदयपुरा से बरेली नक्शे में 35 किमी दूर है। महेंद्र सिंह राजपूत, जिनके यहां उदयपुरा में आतिथ्य पाये थे प्रेमसागर; उनकी ससुराल है बरेली में। उन्होने सत्कार उदयपुरा में किया तो बरेली में उनके ससुराल वालों की बारी थी पुण्य लूटने की। प्रेमसागर पदयात्रा करते वहां पंहुचे तो महेंद्र सिंह और उनका परिवार के अन्य लोग पीछे से आये। उनका आने का ध्येय “महराज” जी को ससुराल वालों से परिचित कराना था। नवरात्रि का समय है तो वे लोग रुके नहीं। रात में नौ-दस बजे के बीच वापस उदयपुरा लौट गये।
पैंतीस किलोमीटर चल कर बरेली आने और लौटने का यह कार्य केवल महराज रूपी अतिथि को हैण्ड-ओवर करना भर था। आतिथ्य की परम्परा का यह डायमेंशन “नर्मदे हर” के क्षेत्र में ही हो सकता है जहां परकम्मा करने वालों का सत्कार उनकी संस्कृति का अंग बन गया है! स्लाइड-शो में देखा जा सकता है कि प्रेमसागर जी के लिये कितने लोग थे। इतने लोग प्रेमसागर के निमित्त इकठ्ठा हुये तो सेलिब्रिटी बन ही गये हैं वे!
रात आठ बजे ही मुकाम पर पंहुचे प्रेमसागर। आज पैर में तकलीफ वाली बात नहीं की उन्होने और मैं पूछ भी नहीं पाया। पंहुचने पर ठकुराइन के मायके वालों के आदर सत्कार में ही डूब गये होंगे वे। उसके बाद न उनका फोन आया और न कोई मैसेज ही। अगले दिन सवेरे उन्होने बताया कि भोजन शानदार बना था और मीठा में खीर और रसमलाई दोनो थी। कांवर यात्रा में पैर की ऐसीतैसी तो होती है पर भाव भी खूब छक रहे हैंं प्रेमसागर। यह मैंने कहा तो तुरंत उन्होने जोड़ा – भईया आपका आशीर्वाद है।
आशीर्वाद मेरा है और भोजन का आनंद वे ले रहे हैं! 😆
आगे वन विभाग के एसडीओ साहेब तरुण जी ने प्रेमसागर के लिये इंतजाम कर रखा है। बरेली से बारी अगले दिन उन्हें पंहुचना है जो मात्र बीस-पच्चीस किलोमीटर दूर है।

उसकी चर्चा अगली पोस्ट में होगी!
हर हर महादेव! नर्मदे हर! जय हो!
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
सोहन लाल, फेसबुक पेज पर –
आशीर्वाद मेरा है और भोजन का आनंद वे ले रहे हैं। 🤣🤣🤣
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सुरेश शुक्ल, फेसबुक पेज पर –
कल मैंने भी आपके आलेखों से उत्पन्न हुई उत्सुकता के चलते, नर्मदा माई के अमरकंटक क्षेत्र में उद्गम स्थल से दहेज गुजरात में कच्छ की खाड़ी में विसर्जित विलीन होती नर्मदा मैया के विजुअल दर्शन किए और प्रेमसागर जी के पथचलन मार्ग को भी विजुअल अनुसरण करने का प्रयास किया।
हर हर नर्मदे।
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राजीव गुप्ता, ट्विटर पर –
परीक्षा बहुत लेते हैं महादेव…हर हर महादेव!
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तरुण शर्मा, ट्विटर पर –
प्रेमसागर जी की तीर्थयात्रा और आपकी उसे प्रस्तुत करने की शैली, इसे किसी हॉलीवुड की एडवेंचर मूवी से अधिक रोचक बना रही है।
धार्मिक भाव, एडवेंचर और जनमानस की श्रद्धा की रोचक कथा बन रही है यह।
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धन्यवाद तरुण जी!
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Sir Prem Sagar ji ki iss yatra m apka bhi jabardast yogdan h digital guidance avam Prem ji dwara chhake khir avam rasmalai ka bhi dur se rasaswadan achchha laga nek karya kar rahe h ap Baba Bholenath ki kripa sadaiv bani rahe
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अब प्रेम सागर मंजे हुए पदयात्री हो गए हैं. हर परिस्थिति में आनंद लेने की अवस्था में आ गए हैं.
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भटके छींद धाम पहुंचना, शायद महादेव की इच्छा थीं।
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सम्भव है… आखिर रास्ता बदलने का सुझाव तो अचानक ही आया!
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एक दिन में ही सतरंगी अनुभव हो रहे हैं, प्रेमसागर जी को। जय हो। भक्तों को शिवजी अलग ही आनन्द देते हैं। हर हर महादेव।
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प्रेम सागर शुरुआती तनाव से मुक्त हो चुके हैं। अब बहुत से लोगों को जानने लगे हैं। नयी जगहों को भी देख कर उनकी समझ और नजर व्यापक हो गयी है। अब वे आनंद लेने की अवस्था में आ गये हैं। और महादेव उनकी पर्याप्त सहायता कर रहे हैं।
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