भोजेश्वर मंदिर और भोपाल


प्रेमसागर बतौर टूरिस्ट नहीं निकले हैं। वे तो कांवर ले कर सिर झुका कर जप करते हुये चला करते थे। बिना आसपास देखे। यह तो बदलाव उन्होने किया है कि यात्रा मार्ग में दृश्य और सौंदर्य में “कंकर में शंकर” के दर्शन करने का। वह बदलाव ही बहुत बड़ा बदलाव है।

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