16 अक्तूबर 21, रात्रि –
भोजेश्वर मंदिर के चित्र देख कर मुझे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की “बाण भट्ट की आत्मकथा” याद हो आती है। उन्होने परिचय कराया बाणभट्ट से। उनकी रचना कादम्बरी अपूर्ण है जो शायद उनके पुत्र भूषणभट्ट ने पूरी की। उसी की तर्ज पर हजारीप्रसाद जी ने बाणभट्ट की आत्मकथा भी इस प्रकार लिखी है जो अभूतपूर्व तो है; पर बकौल उनके (छद्मनाम ? व्योमकेश शास्त्री) है अपूर्ण ही।
उत्कृष्टता और अपूर्णता बाणभट्ट के साथ जुड़ी है। उनकी उत्कृष्टता लेखन में है। भोजेश्वर मंदिर की उत्कृष्टता और अपूर्णता स्थापत्य में है। कादम्बरी के लिये तो भूषणभट्ट मिल गये। वे नहीं होते तो शायद आधुनिक युग में आचार्य हजारी प्रसाद जैसे व्यक्ति मिल जाते कदम्बरी को पूरा करने के लिये। भोजेश्वर मंदिर के लिये कोई ‘भूषणराज’ नहीं मिले। वह मंदिर, जिसकी इतनी प्रतिष्ठा है, इतनी मान्यता कि इसे मध्यप्रदेश का सोमनाथ कहा जाता है; अब भी बिना कगूरे के, बिना गुम्बद के है।

भोजेश्वर मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के पास है। उनकी पॉलिसी में शायद मंदिर के पूर्ण-निर्माण की बात न हो, मात्र विरासत के रखरखाव की ही जिम्मेदारी हो। पर व्यापक हिंदू समाज का यह दायित्व नहीं बनता कि मंदिर पूरी तरह बने जैसा भोजराज बनवाना चाहते थे। कहा जाता है कि इस मंदिर के और परिसर में और भी जो कुछ बनना था, उसके नक्शे पत्थर में उकेरे गये हैं और वे 11वीं सदी के ही हैं। कुछ प्रस्तरखण्ड भी तराशे हुये पड़े हैं – प्रतीक्षा करते कि उनका प्रयोग होगा। मंदिर के पूर्णनिर्माण के लिये पत्थर भी कहीं और से नहीं लाने हैं। वह धरती ही पत्थरों से भरी पड़ी है।
“मध्य भारत के सोमनाथ” का पूर्णनिर्माण होना चाहिये; नहीं? बिना गुम्बद के मंदिर जंचता नहीं। कम से कम मुझे तो वह अपूर्ण लगता है।
प्रेमसागर जी ने उस मंदिर के 21 फिट ऊंचे और 18फिट 8 इंच परिधि के विशालकाय शिवलिंग के चित्र भेजे हैं पर उनकी कैमरे की सेटिंग के कारण पूरी भव्यता से दृश्य नहीं आ पाया। गूगल मैप पर यह चित्र जिसे शुभम नागर जी ने खींचा है शिवलिंग की विशालता और भव्यता को अच्छे से दर्शाता है –

प्रेमसागर जी ने बताया कि यह शिवलिंग पीतल का बना है। जितनी बार मैं इस शिवलिंग को (चित्र में) देखता हूं, मंत्रमुग्ध सा रह जाता हूं। प्रेमसागर ने भी बताया कि वहां शिवलिंग के पास कुछ देर ध्यान लगाने में उन्हें जो अनुभूति हुई, वैसी पहले कभी बाबा धाम में भी नहीं हुई थी। बाबा धाम (देवघर) वे सौ से अधिक बार कांवर ले कर जल चढ़ाने जा चुके हैं। प्रेमसागर की द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा में मेरा डिजिटल साथ बना रहा तो सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन होंगे। पर भोजेश्वर मंदिर का यह दर्शन भूला नहीं जा सकता।
प्रेमसागर आज सवेरे सात बजे वहां मंदिर पंहुच गये थे। उनके साथ मंदिर के महंत पवन गोस्वामी जी और उनके दो पुत्रों के चित्र भेजे हैं प्रेमसागर ने।

महंत जी के बारे में प्रेमसागर बताते हैं कि बहुत सरल और मिलनसार व्यक्ति हैं। उनकी अगवानी के लिये कल रास्ते में वे खड़े थे; यह प्रमाण है उनकी सरलता का।
इग्यारह बजे के बाद ही प्रेमसागार भोजेश्वर मंदिर से भोपाल के लिये रवाना हुये। भोजपुर बेतवा के किनारे है। वहां जाना नहीं हुआ। एक सज्जन ने कल ट्विटर पर टिप्पणी की थी कि पास में भीमबेटका है, प्रेमसागर जी को वहां भी हो आना चाहिये।
पर प्रेमसागर बतौर टूरिस्ट नहीं निकले हैं। वे तो कांवर ले कर सिर झुका कर जप करते हुये चला करते थे। बिना आसपास देखे। यह तो बदलाव उन्होने किया है कि यात्रा मार्ग में दृश्य और सौंदर्य में “कंकर में शंकर” के दर्शन करने का। वह बदलाव ही बहुत बड़ा बदलाव है। उनसे अपेक्षा करना कि वे अपनी यात्रा से डी-टूर हो कर आसपास के स्थान देखने के लिये घुमक्कड़ी करेंगे, उनकी कांवर यात्रा का मूल ध्येय ही खतम करना होगा। वे पर्यटक नहीं हैं, वे कांवरधारी तीर्थयात्री हैं। उस मूल स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिये।

भोजपुर में एक सज्जन – महेंद्र जी मिले। वे प्रेमसागर का बैग उठा कर साथ साथ चले। इस प्रकार कांवर यात्रा में उन्होने प्रेमसागर का कुछ भार कम कर सहयोग दिया। प्रेमसागर ने टिप्पणी की – लोग आगे ज्यादा से ज्यादा मेरे बारे में जानने की उत्सुकता दिखाने वाले मिल रहे हैं। वे किसी न किसी तरह से सहायता करने की कोशिश करते हैं।
भोजपुर से भोपाल के रास्ते में उन्हें नदियां मिलीं। वे बेतवा की ट्रिब्यूटरी होंगी। एक नदी – कलियासोत तो नक्शे में दिखती है। वे नदियां भोपाल के तालों से निकली होंगी। मन्दिरों-मूर्तियों के चित्र लेने का तो स्वभाव प्रेमसागर में पहले से था। अब वे नदियों, पुलों और रास्तों, वनों, खेतों, पहाड़ियों, घाटियों और झरनों के चित्र लेने के बारे में अधिकाधिक सजग और सहज हो रहे हैं।
भोजपुर-भोपाल के रास्ते का स्लाइड शो।
कल भोपाल में समय व्यतीत करेंगे प्रेमसागर। परसों रवाना होंगे उज्जैन के लिये।
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
Dinesh Kumar Shukla, Facebook Page –
एक बड़ा सारगर्भित कथन Domini quo Vadis
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पुरातत्व विभाग लगता है, अंग्रेजों और वामियों की दुर्बुद्धिव्यूह से बाहर नहीं निकल पाया। जो इस बात की प्रदर्शनी बना कर रखना चाहते थे कि हमारे कितने मन्दिर तोड़े गये, कितनी मूर्तियाँ खण्डित खड़ी हैं। कितना ही अच्छा होता कि टूटे हुये और इस प्रकार के छूटे हुये मन्दिर पुरातत्व विभाग द्वारा बनाये जाते। चौकीदारी और इतिहास लेखन(?) तक ही सीमित रख दिया गया उन्हें। उन्हें भी स्थापत्य सिखाया जाता। पीपीपी मॉडल में इसे पर्यटन से जोड़कर पुरातत्व विभाग को उनके तथाकथित अथाह बोझ से मुक्त करने का समय आ गया है संभवतः।
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बहुत सही! पुनर्निर्माण होना चाहिए और जहां मूर्तियाँ खण्डित की गई हैं, वहां भंजकों की निंदा और इतिहास के उस पक्ष के खेद के बोर्ड भी लगने चाहिएं, जैसा जर्मनी में नाजी युग के लिए किया गया है.
उसके बाद समाज से विद्वेष को दफन कर देना चाहिए. Let bygone be bygone.
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सत्य को सत्य न कहने में और किसी को बुरा न लग जाये, इन दोनों मानसिकताओं से बाहर आना होगा।
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