18 अक्तूबर 21, रात्रि –
प्रेमसागर सवेरे चार बजे भोपाल यात्री निवास में तैयार हो कर बैठे थे, पर बारिश होती रही। मैंने उनसे सवेरे की बातचीत का कर्मकाण्ड सात बजे के आसपास किया तो लगा कि शायद आज निकलना न हो पाये। वैसे भी आष्टा – जहां उनका तय मुकाम था, उनके अनुसार 50-56 किलोमीटर और मेरे गूगल मैप अध्ययन के अनुसार 87 किलोमीटर दूर था। अगर 56 किमी भी मान लिया जाये तो भी अब निकल कर पंहुच पाना संदिग्ध था। मैंने सोच लिया कि आज उनका भोपाल प्रस्थान लिखा नहीं है। पर शायद प्रेमसागर के संकल्प की दृढ़ता को आंकने में एक बार फिर चूक की मैंने। करीब 8-9 के बीच बारिश थमी होगी और वे निकल लिये। मैंने शाम के वार्ता कर्मकाण्ड के समय उनसे पूछा – आज निकल नहीं पाये?
“नहीं भईया। हम तो निकल लिये थे। आपको लाईव लोकेशन भी भेजे थे ह्वाट्सएप्प पर। हम तो मोटामोटी 30-35 किलोमीटर चल कर यहां आ गये हैं। कोई जगह है – धुन, डी एच यू एन। यहां वन विभाग की छोटी रोपनी (नर्सरी) है। यहां इंदर सिंह परिहार, तेज सिंह राजपूत और चतर सिंह जी मिले हैं। अभी अभी ही पंहुचा हूं। मैं उनके फोटो अभी आपको भेजता हूं।” – प्रेमसागर ने उत्तर दिया।

मैंने इस भाव में कि दिन में कोई चित्र आदि प्रेमसागर ने टेलीग्राम पर ठेला नहीं, सोचा था कि आज यात्रा नहीं हुई। ह्वाट्सएप्प सामान्यत: मैं देखता नहीं, पर मैंने ही प्रेमसागर को कहा था कि लोकेशन वे ह्वाट्सएप्प पर ही शेयर किया करें। वह देखा नहीं और मुगालते में रहा। लेकिन प्रेमसागर, नक्शे के अनुसार 28 किलोमीटर खींच ही लिये थे आज!
यह स्थान – धुन – नक्शे पर दिखा नहीं मुझे। अगला नाम दिखता था पचांवा। पचांवा सिहोर से अगला स्टेशन हुआ करता है भोपाल की ओर। सन 2003 और उसके पहले दशकों तक मैं रतलाम रेल मण्डल का ट्रेन परिचालन संभालता था और यह इलाका – ये स्टेशन मेरे अपने हुआ करते थे। मैंने नक्शे को ध्यान से देखा। सिहोर, पचांवा, फंदा, बकनिया भंवरी, बैरागढ़ – सब स्टेशन दिखे। मैं अपने फ्लैश बैक में चला गया। पर यह यात्रा विवरण उस फ्लैश-बैक का नहीं है; यह तो प्रेमसागर की कांवर यात्रा का है।
मैंने प्रेमसागर का धुन रोपनी के कमरे का चित्र देखा। साधारण 12′ गुणा 12′ फिट का कमरा। एक रस्सी बांध कर कपड़ा लटकाया गया है। एक सरकारी टाइप अलमारी। छाता और कील से टंगा एक झोला! प्रेमसागार को सत्तर अस्सी किलोमीटर चल कर कोई बड़ी जगह तलाशने की बजाय 35-40 किमी पर ऐसी छोटी जगहें चुननी चाहियें। वहां लोगों के पास साधन विपन्नता होगी पर भाव सम्पन्नता कहीं ज्यादा होगी और वह साधन हीनता की असुविधा को ओवर कम्पनसेट कर देगी!

रास्ते के चित्रों में भोपाल का ताल दिखता है। बैरागढ़ के समीप का लोकेशन होगा। चित्रों में अगर प्रेमसागर लोकेशन टैग कर दिया करें तो शायद चित्र की डीटेल्स में दिख जाये। पर पता नहीं टेलीग्राम/ह्वाट्सएप्प उन टैग्स को बनाये रखते हैं कि नहीं। यह तो तकनीकी विद्वान ही बता सकते हैं। भोपाल के ताल को अपनी अनगिनत यात्राओं में मैंने ट्रेन के इंजन से या कैरिज की खिड़की से निहारा होगा! उस जमाने में मेरे पास फोटो लेने के गैजेट्स नहीं होते थे अन्यथा टनों चित्र होते मेरे पास उसके! अब केवल स्मृतियां हैं।
प्रेमसागर ने बताया कि एक वृद्ध मिले थे। पांवों से लाचार। सत्तर से ऊपर उम्र होगी। उनके एक पैर में झुनझुनी रहती थी। अशक्त होने के कारण बेटा और पतोहू ने भी उनको उपेक्षित कर दिया था। अपना भोजन भी खुद बनाते थे। प्रेमसागर को देख कर उनसे कुछ उपाय मांगने लगे। यह कहने पर कि वे कोई चमत्कारी बाबा नहीं हैं, माने नहीं। उनकी आंखों में आंसू थे। अंतत: प्रेमसागर ने उन्हें श्रद्धा के डोमेन का उपाय बताया – “आप शिवजी के प्रति पूरी श्रद्धा रख कर त्रयोदशी की रात में पास के किसी शिवाला के शिवलिंग पर बेलपत्र रखें और उसको घर ला कर चबा कर खा जायें। कुछ दिन करें। अश्वगंधा का प्रयोग करें…”
“भईया, मैं और क्या उपाय बताता? वे मान ही नहीं रहे थे। लोगों को डांट कर, झिड़क कर तो चला नहीं जा सकता। इन्ही प्रकार के उपायों का सहारा लेना होता है।” प्रेम सागर ने कहा। पर वैसे देखा जाये तो प्रेमसागर खुद उदाहरण हैं चमत्कार के। और वे खुद एक संकल्प के अनुसार चले जा रहे हैं इतनी बड़ी यात्रा पर!

कितनी बड़ी है द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा?
संकल्प बहुत बड़ा है, यह सभी सोचते हैं। पर कितना बड़ा है? कितनी लम्बी है यह यात्रा? मैं गूगल मैप का सहारा लेता हूं। प्रयाग से भोपाल के आगे तक प्रेमसागर ने 1276 किलोमीटर पैदल चलना पूरा किया है। नक्शे पर भोपाल से मैं निम्न स्थानों को ट्रेस करता हूं –
कांवर यात्रा पथ | किलोमीटर |
प्रयाग – वाराणसी – अमरकण्टक – जबलपुर – भोपाल (Shiva1) | 1243 |
भोपाल – उज्जैन – ॐकारेश्वर – नासिक (त्र्यम्बकेश्वर) – भीमाशंकर – घृश्नेश्वर – सोमनाथ – नागेश्वर – केदारनाथ (Shiva2) | 4105 |
केदारनाथ – देवघर (बैजनाथ) – श्रीशैलम (मल्लिकार्जुन) – रामेश्वरम (Shiva3) | 4074 |
कुल योग | 9422 |
यात्रा के उक्त तीनों खण्डों के गूगल मैप्स के स्क्रीनशॉट नीचे स्लाइड-शो में हैं।

मैंने उक्त गणना में गूगल मैप की दूरी में 7 प्रतिशत और जोड़ा है जो सामान्यत: लास्ट माइल कनेक्टिविटी में अतिरिक्त चलना हो ही जाता है। इसके अलावा यह भी सम्भव है कि जिस क्रम में यात्रा की परिकल्पना मैंने की है, वह सही पथ न हो। श्रीशैलम और रामेश्वरम की यात्रा इटारसी-नागपुर होते हुये (लगभग) दक्षिणापथ से की जानी उचित होगी या झारखण्ड-ओडिसा-आंध्र-तेलंगाना के मार्ग से; उसपर विचार किया जा सकता है। किसी परिवर्तन से दूरी में घट-बढ़ हो ही जायेगी। पर अनुमानत: यात्रा 9-10 हजार किलोमीटर की होगी।
कुल मिला कर लगभग 10 हजार किलोमीटर के आसपास यह द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा बनती है। उसका एक बटा आठवां हिस्सा (12-15 प्रतिशत) अभी तक सम्पन्न हो चुका है। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। इससे यह विश्वास पुख्ता हुआ है कि प्रेमसागर यात्रा सम्पन्न करने में सक्षम हैं।
पर यह अभी है सम्पूर्ण यात्रा का एक छोटा भाग ही। आगे बहुत से लोगों का; अनेक प्रकार के संसाधनों और शुभकामनाओं का; और आर्थिक रूप से योगदान का भी; सहयोग आवश्यक होगा। जिस प्रकार से अब तक महादेव ने (विलक्षण रूप से) प्रेमसागर पर कृपा की है; उसी तरह आगे भी सहायता करते रहेंगे। जिस रफ्तार से अभी यात्रा चली है, उससे लगभग 350-400 दिन लगने चाहियें पूरी यात्रा सम्पन्न होने में। जैसा शुरुआत में प्रेमसागर ने मुझे कहा था – वे इससे ज्यादा समय के लिये अपने को तैयार कर चले हैं पर सोचते हैं कि उससे कहीं कम समय में वे यात्रा सम्पन्न कर लेंगे।
19 अक्तूबर 21, सवेरे –
सवेरे का वार्ता-कर्मकाण्ड साढ़े छ बजे किया। प्रेमसागर उस समय निकले ही थे आष्टा के लिये। दो तीन किलोमीटर चले होंगे। रोपनी के वन कर्मी साथ साथ चल रहे थे उन्हें विदा करने के लिये। “इनसे कह रहा हूं लौट जाने के लिये पर भईया मान ही नहीं रहे।”
और वे लोग उन्हें सिहोर तक छोड़ कर गये। सिहोर उनकी रोपनी से 10 किलोमीटर की दूरी पर है।

कल रात मैंने लिखा था – वहां लोगों के पास साधन विपन्नता होगी पर भाव सम्पन्नता कहीं ज्यादा होगी और वह साधन हीनता की असुविधा को ओवर कम्पनसेट कर देगी! और मुझे लगता है कि वन कर्मियों ने उनको छोड़ने साथ चलने के भाव से वह सिद्ध ही कर दिया!
मैंने प्रेमसागर को कहा कि इस क्षेत्र में हनुमान जी कम भेरू बाबा ढेरों मिलेंगे सड़क किनारे। उनके चित्र लें। तरह तरह के नामों के उपसर्ग वाले भेरू मिलेंगे। यह इलाका ही शैव गढ़ रहा है। प्रेमसागर अपने इलाके में चल रहे हैं।
हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
दस हज़ार किलेमीटर? अविश्वसनीय है। प्रेमसागरजी के चेहरे के भाव बता रहे हैं कि उनके अन्दर आत्मविश्वास पूर्णता से भरा है। एक नयी ट्रेल तैयार कर रहे हैं, प्रेमसागरजी। युवा उत्साहित रहेंगे, आपकी पुस्तक उनकी दिग्दर्शक बनेगी। उनके आनन्द की सीमा नहीं रहेगी जब वे आपकी पुस्तक के चित्रों के दृश्य प्रत्यक्ष में देखेंगे।
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आप के ये शब्द संगीत से हैं! जय हो!
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हर हर महादेव 🙏
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हम पढ़ रहे है ….
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🙏🏻
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प्रेमसागर जी शायद “थुना” होंगे ये मिला मुझे https://goo.gl/maps/Xsct5K3kyfqgLu7F7
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हाँ, मुझे भी दिखा था! 😊
पर ह्वाट्सएप्प पर जो लोकेशन दिखा रहा था वह थुना कलाँ से 2-3 किमी दूर था। और वह एक ढाबा-कम-वाइनशॉप के नजदीक था! 😆
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एक ही वाहन अलग-अलग सड़कों पर उतने ही समय में अलग-अलग दूरी तय करता है। यह मार्ग की स्थिति पर निर्भर करता है प्रेम सागरजी इसका अपवाद नहीं। बाकी, भोले बाबा का जब इंधन पड़ा हो तो गाड़ी का एवरेज नहीं देखा जाता। जय भोले शंकर कांटा लगे न कंकर।
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वाह! भोले बाबा का फ्यूल! डालो अपने आप में और
बाकी सब जाओ भूल! 😁
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