08 दिसम्बर, रात्रि –
माहेश्वर (माहिष्मती) के बाद अगला प्राचीन या महाभारत कालीन स्थल आया गिरनार या रैवतक। इन नामों से मेरा परिचय कराया था कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी के ‘कृष्णावतार के दूसरे भाग’ ने। कृष्ण मथुरा से पलायन कर गोमांतक और फिर रैवत पर्वत (या गिरनार) और प्रभास तीर्थ (प्रभास पाटन) के आसपास स्थान तलाशते हैं। रैवतक में उनके यदुवंशी आते जाते रहते हैं। प्रभास के आसपास कहीं द्वारका के द्वीप में वे अपनी राजधानी बनाते हैं। द्वारका प्रभास तीर्थ (सोमनाथ या वेरावल) के आसपास होनी चाहिये – दूर सौराष्ट्र के पश्चिमी कोने पर नहीं। … ये शंकायें मन में उठती रही हैं। पर वे सब अलग रखी जायें। मुख्य बात यह रही की हमारे कांवर यात्री प्रेमसागर 7 दिसम्बर को जूनागढ़ पंहुचे। जूना यानि पुराना। जूना गढ़ अर्थात पुराना किला।

यहीं बगल में पूर्व की ओर गिरनार या रैवतक पर्वत है। जिसे देवताओं का निवास माना गया है। इस पर्वत का कई बार उल्लेख महाभारत और हरिवंश पुराण में होता है। यहां अनेक जैन तीर्थ हैं। तीर्थंकर अपने जीवन की अंतिम अवस्था यहीं बिताते रहे हैं। और हर मोड़ पर यहां का उल्लेख भारत के समग्र इतिहास का हिस्सा रहा है। यह सब मुझे प्रेमसागर के कारण इधर उधर से पुन: देखना पड़ा। के.एम. मुंशी जी की एक दो पुस्तकें भी किण्डल पर खरीदी हैं। उन्हें कितना पढ़ पाऊंगा या पुनर्पठन कर पाऊंगा, कह नहीं सकता। पर उनकी अपने पास उपलब्धता एक आत्मविश्वास तो देती है।

सात दिसम्बर को प्रेमसागर ने मुझे कई चित्र भेजे – जूनागढ़ के स्वामी नारायण मंदिर और अन्य स्थलों के। वे मंदिर में अपना सामान रख कर आसपास के भ्रमण में व्यस्त हो गये थे। मेरे फोन करने पर उन्होने कहा कि वे जूनागढ़ घूम रहे हैं जूनागढ़ के गुरुकुल के प्रोफेसर धवल त्रिवेदी जी के साथ, और वापस आ कर मुझे फीडबैक देंगे। पर कोई फीडबैक वाला फोन आया नहीं।


मुझे यह कांवर यात्री अपनी प्रवृत्ति से बिल्कुल 180 डिग्री उलट लगता है। मैं अगर बीस-पच्चीस किलोमीटर पैदल चलूं तो शांति से कमरे में बैठ कर आराम करूंगा या दिन भर के किये की सोचूंगा या फिर कोई पुस्तक पढूंगा और सो जाऊंगा। एक कदम कमरे के बाहर रखने की सोचूंगा ही नहीं। और ये सज्जन जूनागढ़ पंहुचते ही अपना सामान पटक कर कोई मंदिर, कोई आरती, कोई दर्शनीय स्थान देखने निकल लिये। उनके लिये यह सब मनोरंजन या धर्म का हिस्सा होगा। मेरे लिये वह अपनी ऊर्जा का अपव्यय। … मेरी पत्नीजी हर बार कहती हैं – “तुम उसे अपने अनुसार तोलने की बराबर गलती करते रहे, और करते जा रहे हो। वह विशुद्ध धार्मिक कार्य पर निकला है। तुम्हें सब दो कौड़ी का लगता होगा, उसके लिये आरती, मंदिर, चमत्कार, भागवत कथा और बाबाओं से मिलना बहुत महत्व का है। जिस चीज को तुम समझते नहीं हो, उसपर अपनी मानसिक ऊर्जा का अपव्यय क्यों करते हो? वह अपने तरीके से मगन है, तुम अपने तरीके से पढ़ लिख कर मगन रहो! नहीं रह सकते तो अपने रास्ते चलो और उसे अपने अनुसार चलने दो।”
वह हो नहीं पाता। पर प्रेमसागर पर मेरे कहे का कोई प्रभाव पड़ता है? शायद नहीं। या शायद पड़ता भी है तो बहुत कम। इस ट्रेवल-ब्लॉग में हम दोनो की भौतिक और मानसिक यात्रायें आसपास और समांतर चलती रही हैं। दोनो में कुछ जुड़ाव है, पर अलगाव भी बहुत है। पर अजब बात है कि यह ट्रेवल-ब्लॉग चल रहा है। 🙂





जेतलसर के आगे से यात्रा प्रारम्भ कर सात दिसम्बर को प्रेमसागर को नक्शे के हिसाब से केवल सत्रह किलोमीटर चलना था। पर शायद चले वे 19-20 किमी के लगभग। जूनागढ़ बड़ा शहर है। उन्हें स्वामीनारायण मंदिर पंहुचना था; पर स्वामीनारायण नाम के कई स्थल वहां दिखते हैं। शहर में चलते हुये उन्हे कई जगह ठिठकते-रुकते देखा मैंने लाइव लोकेशन पर। फिर ह्वात्सएप्प पर आठ घण्टे की लोकेशन शेयरिंग का समय समाप्त हो गया और मुझे पता नहीं चल पाया कि अंतत: किस स्थान पर उनका डेरा जमा। डेरा किसी स्वामीनारायण मंदिर में था। उसके चित्र बहुत सुंदर और दर्शनीय हैं। वह प्रबंध करने में अश्विन पण्ड्या जी ने किन्ही रेखा परमार जी से सम्पर्क किया था। रेखा जी समाज सेवी हैं। उन्होने जूनागढ़ और उसके आगे भी ठहरने के स्थान के लिये प्रेमसागर की सहायता की।
मेरे मन में एक अधेढ़ महिला की छवि बनी रेखा परमार जी की। आज सवेरे जब प्रेमसागर ने किसी चाय की दुकान से मुझे फोन किया तो मैंने पूछा – रेखा परमार जी से मिले थे ?
“नहीं भईया। उन्होने जोशी भाई को देखने के लिये कह दिया था। स्वामीनारायण मंदिर में उन्होने ही प्रबंध किया। उनका फोटो मैंने आप को भेज दिया है। … और मेंन बात है कि रेखा परमार जी से इस कारण मिल नहीं पाया कि उनकी शादी थी।” – प्रेमसागर ने कहा। मुझे लगा कि प्रेमसागर कुछ गलत बोल रहे हैं। शायद फोन का सड़क चलते वाहनो के बैकग्राउण्ड के शोर में मैंने गलत सुना; पर प्रेमसागर ने पूछ्ने पर फिर बताया – “हां हां। रेखा जी की खुद की शादी थी।”
रेखा परमार मेरे पैराडाइम को बदलती हुयी दन्न से अधेड़ महिला से लड़की बन गयीं। एक कम उम्र की महिला/लड़की यह सब प्रबंध कर सकती है?! उत्तर भारत में यह रोल निभाती किसी अविवाहित लड़की/महिला की कल्पना नहीं की जा सकती। यह तो अनूठा चरित्र है गुजरात का जिसके बारे में प्रेमसागर अपनी तरफ से नहीं, मेरे पूछने पर बता रहे हैं। और उनके पास रेखा परमार जी के व्यक्तित्व को बताने के लिये और कोई इनपुट हैं ही नहीं। मुझे लगा कि मुझे खुद उनसे बात करना चाहिये था। उनपर तो एक पोस्ट लिखी जा सकती है। पर पोस्ट लिखने के लिये एक अदद फोटोग्राफ और कुछ मूलभूत जानकारी तो चाहिये ही! प्रेमसागर इस मामले में कच्चे हैं।
वे मुझे और बातें बताये। छोटी बड़ी सब तरह की बातेँ। यह बताये कि जेतलसर के आगे जिस मंदिर में वे रुके वहां उन्हे बाजरे की रोटी, उड़द के दाल की खिचड़ी मिली थी। खेतों में काम करने वाले मजदूर गुजरात के नहीं, राजस्थान के थे। नदियां कुछ पानी के बिना थीं और कुछ पानी के साथ। डी. त्रिवेदी जी जूनागढ़ के गुरुकुल के प्रधान हैं। उन्हें शैलेश जी ने सूचना दी थी प्रेमसागर के बारे में। शैलेश जी सोमनाथ मंदिर के ट्रस्टी हैं और विकलांग सेवा समिति में अश्विनी पण्ड्या जी से जुड़े भी हैं। त्रिवेदी जी उनसे मिलने के लिये आये थे ढेर सारे फल ले कर। “उतने फल का मैं क्या करता भईया। आधा उन्ही को दे दिया प्रसाद के रूप में और कुछ और लोगों में भी बांटा” – प्रेमसागर ने कहा। “शैलेश भाई सोमनाथ में मिलेंगे। कह रहे हैं कि उन्हीं के पास रहूं सोमनाथ में।”

गिरनार के दो प्रस्तरखण्ड एक दूसरे के साथ इतने आसपास हैं कि लगता है विष्णु भगवान लक्ष्मी जी को चुम्बन कर रहे हों। प्रेमसागर ने गिरनार के चित्र भी दिये हैं और बताया भी है। “वहां एक ऐसा मंदिर भी है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों जाते हैं। यहां मुसलमानों की आबादी काफी है पर कभी यहां दंगा नहीं हुआ।”
वहां नागा आश्रम मिला जिसमें साधू लोग द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा सम्पन्न कर अपना फाइनल डेरा जमाते हैं। दस साधू वहां जाते हैं तो आठ ही वापस आते हैं। दो वहीं रह जाते हैं और और वे दिखाई भी नहीं देते – लोगों से सम्पर्क से दूर रहते हैं। भवनाथ शिवजी कहते हैं उस स्थान को। कार्तिकेय की खोज में शिव और पार्वती अलग अलग दिशाओं में निकले थे और यहीं आ कर मिले और विश्राम किये थे – यह कथा कही जाती है। वहीं पर इग्यारह मुखी हनुमान जी की प्रतिमा है मंदिर में।

यह सब सूचनायें थीं। पर एक अलग प्रकार के व्यक्तित्व – रेखा परमार के बारे में कुछ नहीं था। प्रेमसागर कई पक्ष सिरे से ओवरलुक कर जाते हैं। और कई बातें तो तब पता चलती हैं जब आप टटोलते प्रश्न उनसे करें। उन्हे बदलना कठिन है।
अगले दिन, आज आठ दिसम्बर को प्रेमसागर कुछ देर से निकले। लगभग छ बजे। “यहां सवेरा ही सात बजे के बाद होता है भईया।”

दिन में किसी नदी को देखा। बड़ी नदी पर पत्थर का मेहराबदार पुल जिसमें बीच में पांच खम्भे दिख रहे हैं। नदियां अरब सागर के नजदीक हैं तो उनमें पानी भी है और चौड़ाई भी। प्रेमसागर ने बताया कि नाव भी चल रही थी उसमें। नक्शे में मधुवंती नदी नजर आती है। शायद वही हो। प्रेमसागर ने बताया कि नया पुल बनाने का भी काम चल रहा था वहां। आसपास कई नदियां – ओजत, मधुवंती, द्राफद आदि दिखती हैं और उनपर बने डैम भी। पानी का दोहन खूब और विधिवत होता दिखता है सौराष्ट्र के इस दक्षिणी भाग में।
प्रेमसागर को गन्ने, अरहर और केला के खेत दिखे। एक जगह धान की थ्रेशिंग के बाद जमा किया गया पुआल के भूसे का ढेर भी दिखा। निश्चय ही वहां पराली जलाने जैसी कु-प्रथा नहीं है।




गुजरात के पूरे रास्ते प्रेमसागर ने अपनी ओर से गुजराती नमकीन की बात नहीं की। आज एक फोटो भेजा जिसमें अखबार पर फाफड़ा, सलाद और मिर्च दिखती है। “चटनी भी दिया था भईया; इमली की। यहां नाश्ते में समोसा नहीं, ज्यादातर ढोकला और फाफड़ा होता है। जलेबी मिलती है। पर उतनी नहीं, जितना अपनी तरफ मिलती है।”

दिन में एक सरपत की यज्ञशाला जैसी कोई चीज का चित्र भी भेजा था। “कोई शौकीन आदमी बनवाया होगा। मुझे लगा कि आपको चित्र अच्छा लगेगा, इसलिये खींच लिया।” मेरी पसंद के लिये एक जगह खोंचा लगे बैलों का फोटो भी खींच कर भेजा। वे हल नहीं लोहे का कोई हेंगा जैसा कुछ खींच रहे थे जो मिट्टी को लेवल करने या ढीला करने के काम आता है।
शाम के समय वे एक नाग बाबा के मंदिर में डेरा जमाये। इसके बारे में कंचा भाई ने बताया। कंचा भाई कौन हैं? “कंचा भाई को रेखा परमार जी ने रास्ते की ‘बेवस्था’ के लिये कहा था”। प्रेमसागर लोगों के बारे में विस्तार, उनके सही नाम, उनका परिचय आदि देने में कच्चे हैं। वे नाम लेते हैं तो यह मान कर चलते हैं कि मैं उन्हें जानता हूं! 😆
नाग बाबा का मंदिर छोटा है पर परिसर बड़ा। लोग यहां सोमनाथ जाते आते ठहरते होंगे। उस हिसाब से एक बड़ा हॉल है और खुला स्थान। वहां लोग अपना भोजन आदि बना सकते होंगे। प्रेमसागर उस दिन अकेले यात्री थे और मंदिर की ओर से उन्हें भोजन भी मिल गया। जमीन पर बिछाने के लिये एक चटाई; उसके ऊपर गद्दे नुमा लेवा और ओढ़ने के लिये रजाई! इतना प्रबंध काफी था प्रेमसागर जैसे अल्पजीवी कांवर यात्री के लिये।
दो दिनों में प्रेमसागर 46 किलोमीटर चले हैं नक्शे के हिसाब से। उसमें लास्ट माइल इधर उधर जाने रुकने को जोड़ा जाये तो कुल 49 किमी। अब सोमनाथ 60 किमी या उससे कम बचा है। दो दिन और चलना होगा। दस दिसम्बर तक वे वेरावल छू सकते हैं अगर सामान्य से कुछ ज्यादा चलें। अन्यथा इग्यारह दिसम्बर को वे सोमनाथ में होंगे।
पोस्ट सामान्य से कुछ लम्बी हो गयी। प्रेमसागार की दी जानकारी के कारण भी और अपनी सोच उसमें डालने के कारण भी। मेरी पत्नीजी पोस्ट अप्रूव किया करती हैं और उसे दस में से नम्बर देती हैं। आज दस में से आठ से ज्यादा मिल पायें तो मानूंगा कि मेहनत सफल है! 😆
जय सोमनाथ। हर हर महादेव।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
आलोक जोशी ट्विटर पर –
पत्नीजी चाहे जितने नंबर दें, हमने तो दस में से दस दे दिए।यात्रा प्रेमजी कर रहे हैं उसे हमतक पहुँचाने की व्यवस्था आप,लेकिन आनंद हम जैसे पाठकों को आ रहा है।प्रेमजी की कथा में आप अपना नजरिया डालकर उसे ज्यादा रोचक बना देते हैं।कुछ पंक्तियाँ तो गुदगुदा भी देती हैं..यूँ ही लिखते रहें😊
LikeLike
Very Happy To Read The Post, And Feeling Lucky To Meet Premsagar Pandey Personally Yesterday.
Down To Earth Personality, With Utmost Will Power To Walk And Visit All Jyotiling.
Wishing All Good Wishes To Spiritual Journey.
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद प्रोफेसर धवल त्रिवेदी जी। अच्छा हुआ आपकी टिप्पणी से आपका पूरा और सुंदर नाम ज्ञात हुआ। मैं उसे पोस्ट में सही कर देता हूं।
LikeLike
शेखर व्यास फेसबुक पर टिप्पणी –
पढ़ कर संतुष्टि हुई 🙏🏻
श्री Ashvin Pandya sir ने कहा था कि यथा संभव प्रयत्न करेंगे किंतु जितना मैंने सर को जाना है आश्वस्त था कि यह ’यथासंभव’ किसी भी तरीके से अल्प न होगा । मात्र इतना जानकर संतुष्टि हो जाती है कि प्रेम जी का भोजन और रहवास व्यवस्थित है । धन्यवाद सर , मेरा आकलन सही था । आशा है आगे भी उनके माध्यम से प्रभु प्रेम जी के सहाय होंगे 🙏🏻 प्रेम जी की यात्रा से बगैर उनसे देखे मिले इतना जुड़ाव ?….संभवतः द्वादश ज्योतिर्लिंग की दर्शन यात्रा के अपने अधूरे स्वप्न का पूर्ण होता प्रतिबिंब कारण हो सकता है ।
LikeLike
Dinesh Kumar Shukla फेसबुक पेज पर –
हर हर महादेव।
LikeLike
Sir apke dwara Premsagar k bare m likhte samay kai tarah ke put milte h beech beech m Mam ka bhi expert comment overpowering all bhi milta lagta h jaise kai bar khud kahte h bechare ..G ..
LikeLiked by 1 person
पत्नी जी का कहा मेरी ही दूसरी आवाज मान सकते हैं आप! 😊
LikeLike
जय महादेव
मेरे मतानुसार प्रेमसागरजी के ऊपर आपके कहने का प्रभाव न पड़ना और फिर भी आपका बारबार उनको कहना ही इस यात्रा ब्लॉग का पुश करने वाला तत्त्व है, जो ब्लॉग को अपने उद्देश्य व लक्ष्य तक ले के जाएगा।
गिरनार तीन धर्म का यात्रा स्थल है हिन्दू, जैन व मुस्लिम, भवनाथ महादेव (गिरनार तलहटी/तलेटी)में महाशिवरात्रि का भव्य मेला लगता है। गिरनार में बहुत नागा बावा साधु जीवन यापन करते है व कभी कभार ही गुफा व जंगल से बाहर आते है, मगर मेले में सभी साधु व पूरे भारतवर्ष से अन्य साधु भी आते है। काफी भव्य होता है उनका ये सम्मेलन।
रेखाजी का जिक्र आप जो पिछली पोस्ट में जो नेत्री खोज रहे है वैसा हमारे सौराष्ट्र के लिए उदाहरण हो, कुछ और जानकारी प्राप्त हो तो पता चल सके।
जूनागढ़ के आसपास की सारी नदीया गिरनार की देन है आगे जाके ज्यादातर ओजत से मिलती है, मधुमती, कालवा, धराफड़, ओज़त।
धान की नही मूंगफली की पराली है, पालतू पशुओं का नियमित आहार है काफी दाम भी मिलता है। गेंहू की पराली भी पशु की कोढ़ को सुखा रखने में बहुत काम मे लेते है जो बाद में खाद में तब्दील हो जाती है।
LikeLike
जय हो. पूरी पोस्ट पर समग्र तरीके से अतिरिक्त जानकारी दी आपने जो ब्लॉग को पुष्ट करती है. धन्यवाद!
LikeLike
ओह, तो ये बात है। पोस्टें एप्रूव होने के बाद छपती हैं। अब समझ आया कि आपकी पोस्टें विवादित क्यों नहीं होतीं! 😁
LikeLiked by 1 person
हाहाहा! घर में ही सम्पादक हैं!
LikeLike