कर्तिक पूर्णिमा के सवेरे कमहरिया की ओर जाने के लिये निकला तो रास्ते में गंगा स्नान से लौटते लोग दिखे। आज के नहान का पुण्य बहुत है। बाद में कमहरिया जाते आते कई लोग झुण्ड में स्नान करने जाते या स्नान कर लौटते नजर आये। उनमें महिलाओं और बच्चों की संख्या अधिक थी। धर्म पालन का भार भी उनपर है। आदमी लोग तो ज्यादातर अहदी हैं। तमाखू ठोक कर दांत के नीचे भरने और थूकने में परंगत।
गंगा स्नान करने वाले नियमित लोगों पर एक शृन्खला लिखी जा सकती है। दो दर्जन लोग तो इधर उधर इस ब्लॉग में ही मिल सकेंगे। उसके अलावा भी ढूंढने पर तीस चालीस और चरित्र दिखेंगे। उनमें कुछ विशिष्टतायें नियमित गंगा नहाने से आ ही जाती हैं। वे स्वास्थ्य, आध्यात्म और अपने आप में संतुष्ट अधिक होते हैं। और भी गुण होंगे जो मुझे ध्यान दे कर देखने चाहियें।

लेकिन मुझे जिस समूह ने उस दिन आकर्षित किया, वे आदमी या औरतें नहीं थे; वे एक समूह में द्वारिकापुर की लड़कियां थीं। द्वारिकापुर और कोलाहलपुर के बीच एक वृक्ष के नीचे चबूतरे पर किसी प्राचीन मंदिर का भग्न अंश रखा था। उसे किसी ग्रामप्रधान ने सरकारी निधि से एक पक्का चबूतरा बनवा कर स्थापित कर दिया और उस प्रस्तर खण्ड को मुनी-बाबा के नाम से लोग पूजने लगे हैं। ये लड़कियां कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद वहीं घर से बनी मिठाई, पूड़ी, हलुआ चढ़ाने आयी थीं।
उन्होने चबूतरे पर अपनी जगह साफ की। फिर सभी ने अपनी सामग्री में से अगरबत्ती, दिया, माचिस आदि निकाल कर दिया जलाया और अगरबत्तियां सुलगाईं। प्रस्तरखण्ड – मुनीबाबा को जल चढ़ाया। रोली, चंदन लगाया। उसके बाद उसपर पूड़ी-हलुआ-मिठाई-लाचीदाना रख कर ध्यान किया। उनमें से एक लड़की ने मुझे चित्र लेते देखा और मेरे प्रश्नों के उत्तर भी दिये। विभिन्न कोणों से मैंने चित्र लिये और ले कर चलने लगा तो उन्होने मुझे रोका। हर एक लड़की ने मुझे प्रसाद दिया। उनका पूरा प्रसाद बहुत हो गया। मैंने मना भी किया तो भी उनने सबने दिया। एक लड़की ने अपनी एक प्लास्टिक की थैली भी निकाल कर मुझे सारा प्रसाद डाल कर थमाई।

घर में मैं और मेरी पत्नीजी भर हैं। हमारे लिये तो वह सब एक दिन का ब्रेकफास्ट हो गया! पूरे से।
हर एक लड़की अपनी अपनी थाली में पूजा सामग्री ले कर आयी थी। उसे अपने अपने बनाये क्रोशिया के सुंदर कपड़े से ढंक रखा था। मैंने उसका भी चित्र लिया।

किशोर वय की लड़कियां थीं। वे यह पूजा-अनुष्ठान किस लिये करती होंगी? हर व्यक्ति कोई न कोई ध्येय गंगा स्नान और पूजा से जोड़ता है। उनके सामने क्या ध्येय होगा? गांव में लड़कों के सामने ध्येय अच्छी नौकरी पाना और लड़कियों के सामने अच्छा वर पाना होता है। मैंने उनसे ध्येय पूछा नहीं; पर यही लगा कि अच्छा वर पाना ही ध्येय होगा जो उनकी माई-बाबू और समाज ने उन्हें बचपन से ही सिखा दिया होगा। कोई और रोल मॉडल तो उनके समक्ष रखे ही नहीं होंगे! इतिहास और समाज शास्त्र की पुस्तकों में ग्रामीण परिवेश से उभरी किसी नेत्री का कोई दृष्टांत है? कोई गंवई रोल मॉडल है? शायद नहीं। 😦
वहां से चला आया; पर मन में यह विचार अब आ रहा है कि आगे कभी लड़कियों से पूछूं कि वे क्या बनना चाहती हैं? उन्होने किसी सफल महिला के बारे में पढ़ा-सुना है? वह जानकर फिर कभी लिखूंगा। फिलहाल तो मुनी बाबा (जो भी वे हों) उन लड़कियों को उनका मनोरथ पूरा करें। गंगा माई भी उन्हें आशीष दें!
बढ़िया संस्मरण ! लड़कियों के रोल माडल के बारे में पूछकर लिखिए आगे कभी !
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