शिकागो का सबर्ब और बनारस का रूरर्ब

राजकुमार उपाध्याय शिकागो के केंद्र से 40 मील की दूरी पर रहते हैं। मैं बनारस से 40 किलोमीटर की दूरी पर हूं। वे जिस स्थान पर रहते हैं वह औरोरा (Aurora) में कम्बरलैण्ड रोड पर है। मेरा स्थान औराई तहसील में विक्रमपुर गांव में है। हम दोनो पृथ्वी के दूसरे सिरे पर रहते हैं। हम दोनो की स्थिति में कोई तुलना नहीं है; और यही चीज तुलना करने की बन जाती है।

वैसे राजकुमार औराई के ही मूल निवासी हैं। वहां इलिनॉयोस प्रांत के शिकागो में नौकरी करते हैं। हम दोनों में औराई, रामचरितमानस और हिंदी-अवधी-भोजपुरी की कॉमेनॉलिटी है। हमारे वर्तमान परिवेश भले ही अलग अलग ध्रुवों पर हैं!

मैं राजकुमार से कहता हूं कि वहां के सूर्योदय का चित्र भेजें। अगले दिन वे भेजते हैं पर तब सूर्य ऊपर उठ चुके होते हैं। चित्र करीब आठ बजे के हैं। वहां तापक्रम -6 डिग्री सेल्सियस है। सो चित्र बाहर निकल कर नहीं घर की खिड़की से लिये हैं। पर सूरज दिख रहे हैं। चटक। बाहर सड़क और लॉन पर कहीं कहीं हल्की बर्फ की परत है। बर्फ इतनी पड़ती है कि हटाने के लिये उपाय किये ही जाते होंगे – लगभग सतत। वृक्ष अधिकतर पत्तियां विहीन हैं। ठूंठ।

उनके चित्रों की तुलना करने के लिये यहां मैं सवेरे पौने सात बजे निकल कर आसपास देखता हूं। यहां बाहर निकलने में असुविधा है; इसलिये पत्नीजी की नजर बचा कर निकलता हूं। अन्यथा वे बाहर निकलने से या तो मना कर देतीं या जैकेट, शॉल, टोपी-मफलर आदि पहनने के लिये टोंकतीं।

पर ऐसा नहीं कि निकला न जा सके। चिड़ियां नहीं उठी हैं। फिर भी एक फाख्ता अचानक दांये से बायें उड़ता चला जाता है। बादल हैं। कल बारिश होती रही। रात में भी थोड़ी हुई ही होगी। रामसेवक (हमारे सप्ताहिक माली जी) के लाये-लगाये कुछ नये पौधे खुश हैं। उन्हें रात में भी रिमझिम बारिश का पानी मिल गया है। पेड़ भी धुले धुले से हैं और पत्तों से लदे – सदाबहार वृक्ष। घर के आसपास गांव की सड़क खाली है। लोग दिखते नहीं। इक्का-दुक्का ही हैं। रामसेवक की छत पर उनका लड़का दातुन करता दिख जाता है। सड़क पर धूल बारिश में घुल कर कीचड़ बन गयी है। आगे जहां कच्चा रास्ता है, वहां साइकिल चलाना खतरे से खाली नहीं। वहां मिट्टी कीचड़ बन कर साइकिल के ब्रेक सिस्टम को जाम कर देती है। वह कष्ट शिकागो की सड़कों पर बर्फ में वाहन स्किडिंग के कष्ट से कमतर नहीं है। … मुझे लगता है कि अगर स्वच्छ भारत की भावना लोग इण्टर्नलाइज कर लें और सड़कों-नदियों-तालों से बलात्कार पर रोक वैधानिक हो जाये तो गांगेय मैदान से बेहतर कोई जगह नहीं रहने के लिये। पर यह बहुत बड़ा अगर है। मेरे जीवन भर में तो ऐसा होता लगता नहीं।

पता नहीं राजकुमार के यहां कोई माली आते हैं या और कोई सिस्टम है उनका गार्डनिंग का। सर्दियों में तो उन्होने अपने पौधों के गमले घर के अंदर कर लिये हैं। बाहर तो बर्फ है। उसको हटाने के लिये मशीनें काम कर रही हैं या सड़क पर नमक का झिड़काव किया गया है जिससे फिसलन न हो। वे सप्ताह भर की किराना-सब्जी की खरीददारी के लिये मॉल में जाते हैं। पूरी तरह तैयार हो कर। यहां तो मैं अपनी साइकिल से भी निकल सकता हूं, निकलता ही हूं। वहां के मॉल और यहां की सब्जी की गुमटी नुमा दुकानों में बहुत बहुत बहुत अंतर है। पर वह सब मिल जा रहा है जो वहां मिल रहा है। वहां सेब आलू से भी सस्ता है। सबसे सस्ता सेब ही है। यहां सेब और कीवी सबसे मंहगे हैं।

जीवन के हर एक पक्ष की भारत के इस हिस्से और अमरीका के शिकागो-सबर्बिया में फर्क पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। स्थानों पर, मौसम पर, रहन सहन पर, लोगों की सोच पर और नये-पुराने के सामंजस्य पर। बहुत कुछ लिखा कहा जा सकता है।

बेकर-पोस्नर ब्लॉग का स्क्रीनशॉट

मैं राजकुमार से कहता हूं कि ब्लॉग में वैसी जुगलबंदी की कोशिश की जा सकती है जैसी कभी बेकर-पोस्नर ब्लॉग में गैरी बेकर और रिचर्ड पोस्नर ने की थी। हम उनके जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति भले ही न हों (संयोगवश दोनो सज्जन शिकागो से सम्बंधित थे), पर हमारे देखने और हमारी सोच की भी अहमियत तो है ही! हम भी कुछ काम लायक कण्टेण्ट सृजित कर सकते हैं। 😆


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “शिकागो का सबर्ब और बनारस का रूरर्ब

  1. कोई माली नहीं आता,जब नया नया घर लिया था तो लैंड्स्केपिंग के लिए कभी कभी बुला लिया करता था, अभी तो मै देखभाल कर लेता हूँ।
    हाँ लॉन में इन्सेक्टकिलर का छिड़काव,grub prevention,aeration,lawn monitoring,weeds control आदि की सर्विस पूरे साल की ले लेता हूँ। वो लोग हर महीने आते हैं और सर्विस कर जाते।कभी कभी वीड एंड फ़ीड खुद भी डाल लेता हूँ।
    ठंड की वजह से मिर्च और तुलसी के पौधे अंदर के लेता हूँ। एक मिर्च के पेड़ का यह तीसरा साल चल रहा है और अभी भी फ़ूल आते जा रहे।देखता हूँ यह पौधा कितने और समय तक चलता हैं। शाम को कभी कभी बच्चे खेल खेल में हिला देते हैं तो पत्नी जी डाँटती हैं कि वो सो रहे हैं परेशान मत करो। 😀

    Liked by 1 person

  2. आसपास को सुन्दर रखने का दायित्व तो स्वयं समाज का है। किसी को अपना घर ही सुहाता है, वे कूड़ा बाहर फेंक देते हैं। उनसे समग्र सौन्दर्यीकरण बोध कहाँ होगा?

    Liked by 1 person

    1. सही शब्द – समग्र सौंदर्यीकरण बोध!
      जब वह नहीं आएगा तो सब निस्सार है.

      Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: