राजकुमार उपाध्याय से पहचान सितम्बर 2019 में हुई थी। मेरे पिताजी अस्पताल में भर्ती थे और राजकुमार जी का घर अस्पताल से कुछ कदम दूर था। वे खुद शिकागो के एक सबर्ब में रहते हैं – नक्शे के हिसाब से शिकागो के केंद्र से 40+ मील दूर। आधी धरती पार कर औराई के अस्पताल में उनकी सहायता और कंसर्न की भावना मुझे अंदर में छू गयी थी। उसके बाद ह्वाट्सएप्प पर और उनके द्वारा किये फोन के माध्यम से यदाकदा सम्पर्क होता रहता है।
कल एक जनवरी को सवेरे उनका फोन आया नये साल की शुभकामनायें देने-लेने के लिये। उनके यहां रात थी और सन 2021 चल रहा था। अगला साल आने में कुछ घण्टे शेष थे। यहां सवेरे सवा दस बज गये थे एक जनवरी 2022 के। फोन कॉल एक साल के परिवर्तन को लांघती हो रही थी। यह विचार ही मुझे गहरे से असर किया – तकनीक दूर को कितना पास कर देती है!

राजकुमार की ह्वाट्सएप्प टाइमलाइन देखी मैंने एक बार फिर। कुछ चित्र या वीडियो जो मैंने डाउनलोड नहीं किये थे, वे अब गायब हो चुके थे, पर जो था, वह भी धरती के इसपार को उसपार को जोड़ता था।
प्रेमसागर के डिजिटल ट्रेवलॉग को लिखते हुये यह तो मुझे समझ आ गया था कि वेब-इण्टरनेट की साधारण तकनीक से दूरस्थ के बारे में वैसा ही लिखा कहा जा सकता है जैसे हम खुद वहां हों या यात्रा कर रहे हों। वही कुछ प्रयोग राजकुमार जी के साथ किये जा सकते हैं। शिकागो के उनके सबर्ब को औराई-महराजगंज के इस भाग से जोड़ा जा सकता है।
राजकुमार के साथ एक और प्लस प्वाइण्ट हैं – उनकी लेखन और बोलने की अभिव्यक्ति बहुत उम्दा है। बाबा तुलसीदास को बहुत सहजता से और सटीक कोट करते हैं। ब्लॉग पर उनसे जुगलबंदी मजे से हो सकती है। … यहां का भारतीय वहां की जिंदगी में कैसे अपने को जोड़ रहा है, कैसे अपने बच्चों को वे दम्पति संस्कार दे रहे हैं, कैसे भारतीय डायस्पोरा वहां आपस में सम्बंध रखता है, कितना वे भदोहिया या यूपोरियन हैं और कितना शिकागोई अमरीकन – बहुत से आयाम हैं जो एक्स्प्लोर किये जा सकते हैं। मैंने राजकुमार जी को कल रात सुझाव दिया इस बारे में। उनका विचार तो पॉजिटिव ही था। अब देखना है इस ब्लॉग पर धरती के आरपार छेद कर जोड़ने की कवायद कैसे की जा सकती है।
राजकुमार उपाध्याय की ह्वाट्सएप्प टाइमलाइन के कुछ टुकड़े –
राजकुमार दम्पति ने रेक्सहवा कोंहड़ा – Ash Gourd – के इस्तेमाल से अपने दस दस किलो वजन कम किया है। भोजन कम कर रेक्सहवा कोंहड़ा का जूस पिया है। कुछ वैसे ही जैसे बाबा रामदेव लौकी का जूस पीने की वकालत करते हैं, राजकुमार ने सदगुरु जग्गी वासुदेव का एक वीडियो भेजा है जिसमें वे रेक्सहवा कोंहड़ा की वकालत करते दिखते हैं।
राजकुमार जी ने बताया कि वजन कम करने से उन्हे ऊर्जा और उत्फुल्लता में बहुत वृद्धि लगती है अपने आप में। बहुत हल्का महसूस करते हैं वे! रेक्सहवा कोंहड़ा यहां कोई छूता नहीं। गाय गोरू भी अनिच्छा से खाते हैं। उसका केवल आगरा का पेठा ही खाने योग्य होता है; वह भी चीनी जैसे सफेद जहर के सानिध्य में। अब सोचता हूं कि लौकी या इस कोंहड़ा के प्रयोग किये जायें! 🙂

अक्तूबर के महीने में मेपल ट्री के बदलते रंगों वाले चित्र भेजे थे। बहुत शानदार लगता है वह पेड़। सबर्ब के जिस इलाके में रहते हैं वह काफी खुला है और पेड़ भी वहां काफी दिखते हैं। अब सर्दियों में तो सब ठूंठ हो गये हैं और बर्फ जम गयी है। पर जो भी उन्होने चित्रों के माध्यम से दिखाया है, वह रोचक है। नीचे स्लाइड शो में कुछ चित्र हैं उनकी टाइमलाइन से –
राजकुमार ने शिकागो सिटी गये सपरिवार अक्तूबर के महीने में। वहां बच्चों की फरमाइश पर ट्रेन से गये। उन्होने लिखा – “आज शिकागो सिटी गया था, बच्चों ने ज़िद किया कि सिटी ट्रेन से घूमने चलते है,मज़ा आयेगा, तो गाड़ी स्टेशन पर पार्क करके जब ट्रेन का इन्तज़ार कर रहा था तो अपना मधोसिंह से इलाहबाद वाली यात्रायें याद आ गई। ((24 अक्तूबर 21)।”

“रास्ते में यह टी॰टी॰ मिला और बोला “नमस्कार आप कैसे हैं”।
” मैंने पूछा हिन्दी कैसे जानते हैं तो बोला कि इस ट्रेन काफ़ी हिन्दी बोलने वाले आते जाते हैं तो मैं २ साल से सिख रहा। आप मुझसे हिन्दी में बात कर सकते हैं।” 😀😀

“पूछा आप किस स्टेट से हो – मैंने बताया उत्तर प्रदेश, वो बोला “अच्छा यूपी वाले हो बढ़िया””
एक बार उन्होने मेरी तर्ज पर घर में सामुहिक मटर छीलन कार्यक्रम भी किया। वहां मटर सामान्यत: दाने के रूप में प्रशीतन की मिलती है। यह प्रयोग अपनी भारतीयता को सतत जीवंत रखने के लिये ही किया होगा। “सुबह सुबह चाय के साथ मटर छीलो अभियान” का चित्र भेजा –

आपको उक्त टाइमलाइन टुकड़ों से अंदाज हो गया होगा कि राजकुमार हम जैसे मनई हैं। स्नॉब नहीं हैं। शिकागो में भी माधोसिन्ह/औराई जिंदा रखे हैं और हिंदी पर अच्छी खासी पकड़ है। क्या लगता है आपको; पोस्ट-प्रेमसागर उनसे जुगलबंदी जमेगी?
राजकुमार का व्यक्तित्व रोचक है। आपके नवप्रयोगों की प्रतीक्षा रहेगी।
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राजकुमार सरल व्यक्ति हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी भी.
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