पप्पू का परिचय मैं दे चुका हूं पहले एक पोस्ट में पिछले महीने। वह विक्षिप्त व्यक्ति है। उस समय मन में विचार घर कर गया था कि कभी उससे बात कर देखा जाये।
उसे सामान्यत: सड़क पर चहलकदमी करते या किसी ठेले पर आराम करते देखा है। भरे बाजार में। आज वह एक किनारे की सुनसान बंद/खाली गुमटी के सामने अधलेटा था। उसे देख कर मैं आगे बढ़ गया पर लगा कि उससे अगर बातचीत करनी है तो यह सही अवसर है। मैंने अपनी साइकिल मोड़ी और उसके पास गया। उससे पास जा कर पूछा – आज यहां लेटे हैं आप?

उसने मेरी ओर देखा और कुछ बुदबुदाया। आवाज स्पष्ट नहीं थी। केवल होंठ हिलते लग रहे थे। मुझे बताया गया था कि वह अंग्रेजी अच्छी बोला करता था। सो बातचीत करने के ध्येय से मैंने फिर कहा – लुकिंग रिलेक्स्ड टुडे!
वह बुदबुदाता ही रहा। मेरी ओर मात्र एक नजर निहारा था। उसके बाद ऊपर की ओर तिरछे मुंह कर कुछ अस्पष्ट कहता रहा। मैंने उसके मुंह के पास अपना कान लगा कर सुनने का प्रयास किया। पर आवाज साफ नहीं थी। यह जरूर लगा कि वह हिंदी में कुछ कह रहा था। उसने उठने, बैठने या मुझसे बात करने का कोई संकेत नहीं दिया। वह अपने आप में रमा हुआ था।
मैंने पुन: एक प्रयास किया – चलिये आराम करिये।
इस पर भी उसने मेरी ओर देखने कहने की कोई प्रतिक्रिया नहीं की। वह अपने में ही मगन रहा। टीशर्ट और हाफ पैण्ट पहने था वह। सामान्यत: वह एक लोअर पहने दीखता था। उसके कपड़े आज साफ थे पर शरीर बिना नहाया। शरीर पर कुछ तरल पदार्थ बहने के निशान भी थे। इकहरा शरीर, कार्ल मार्क्स वाली दाढ़ी, बिना किसी इच्छा के, बिना भाव के निहारती आंखें – मुझे उसके बारे में दुख और निराशा दोनो हुये। पर मेरे दुख और निराशा से उसे कोई लेना देना नहीं था। भावशून्य!

मेरी दशा अलेक्षेद्र – अलेकजेण्डर जैसी थी जो किसी हिंदू साधू से मिला था और साधू ने केवल यही इच्छा व्यक्त की थी कि वह उसके धूप को छेंक कर खड़ा होना बंद कर दे! पप्पू भी शायद यही चाहता था कि मैं उसके पास से चला जाऊं जिससे वह अपने में मगन रह सके। उसके पास मैं सतर्क भाव से गया था कि कहीं वह हिंसात्मक व्यवहार न करे। पर फिर उसके मुंह के पास कान लगा कर सुनने का भी प्रयास किया मैंने। अगर वह कुछ बातचीत करता तो मैं उसके साथ एक चाय की दुकान पर जा कर उसे नाश्ता कराने की भी सोच रहा था। पर पप्पू ने मुझे कोई भाव न दिया।
मूर्ख हो तुम जीडी! आत्मन्येवात्मनातुष्ट: व्यक्ति की मेधा को भेदना चाहते हो। वैसे ही मूर्ख हो जैसे विश्वविजय की चाह करने वाला अलेकजेण्डर था।
मैं एक एक कदम पीछे करता वहां से लौट आया।

Hope he is not suffering from dementia, sir
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I thought of that but doesn’t look like case of dementia…
I understand dementia is something related to shrinking of brain or damage of cells. But in his case it looks like it is some wiring of neuron circuits got jumbled. He is otherwise agile and his reflexes are quick…
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