कुछ दिन पहले उपेंद्र कुमार सिंह जी का फोन था। उनका कहना है कि जब किसी की याद आये तो फोन कर ही देना चाहिये। कोरोना काल में बहुत विकटें डाउन हुई हैं। कोई चांस नहीं लेना चाहिये। लाइफ का क्या?
उन्होने बताया कि वे सपत्नीक बनारस जा रहे हैं। जाते समय तो सीधे निकल लेंगे, वापसी में चालीस मिनट का स्लॉट निकाल कर मिलेंगे हम लोगों से। वापसी रविवार को तय थी। मेरी पत्नीजी ने बताया कि रविवार को नाश्ते में इडली का टर्न होता है। वही चल जायेगा आतिथ्य में। मेरा सुझाव था कि चाय की चट्टी से कच्चे समोसे ले आये जायें और घर के तेल में छाने जायें। उपेंद्र कुमार सिंह जी और मुझमें एक कॉमन फैक्टर समोसे का भी है। प्रयाग के सुबेदारगंज रेल मुख्यालय में हम लोगों की दोपहर की चाय के समय छोटेलाल समोसा लाया करता था। अब छोटेलाल तो है नहीं। हम ही छोटेलाल का रोल अदा करते हैं!


पत्नीजी को भी सुझाव पसंद आया। शनिवार की सुबह मैं चाय की चट्टी पर सहेजने गया। दुकान की गद्दी पर विनोद बैठा था। मैंने विनोद और मनोज से कहा – “मेरे मित्र आ रहे हैं। वैसे वो तो मेरी तरह के ही हैं। हो सकता है साइकिल भी चलाते हों मेरी तरह। पर असल बात है कि उनकी पत्नीजी राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर हैं। इसलिये, जरा ठीक से बनाना कच्चे समोसे।” मैंने ‘वाइस चांसलर (कुलपति)’ पर जोर दिया और दो तीन बार दोहराया। मुझे संदेह था कि वाइस चांसलर जैसे बड़े ओहदे के बारे में विनोद को पुख्ता जानकारी है या मुझे कुलपति जैसे ओहदे वाले व्यक्ति के पासंग में समझता भी है या नहीं। वह तो इण्टर पास कर सीआरपीएफ में भरती के जुगाड़ में ही है। … और गांवदेहात के बहुत से लोग मुझे रेलवे का बड़ा बाबू जैसा कुछ मानते हैं! … खैर रविवार की सुबह जब यूके सिंह जी का बनारस से रवाना होते समय फोन आ रहा था, मैं विनोद की चाय की दुकान से कच्चे समोसे खरीद रहा था।
घण्टे भर बाद सिंह दम्पति मेरे घर पर थे। भला हो ह्वाट्सएप्प पर लोकेशन शेयर करने का, उन्हें मेरा घर तलाशने मेंं कोई दिक्कत नहीं हुई। केवल घर के सामने पंहुच कर उनका फोन आया – “तुलसीपुर स्कूल के सामने खड़े हैं। आपका घर दांई ओर है कि बांई ओर।”

उपेंद्र कुमार सिंह जी मुझसे साल भर बड़े होंगे। वे मेरे बॉस थे। उसके बाद हम आसपास के जोनल रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबंधक भी रहे। कॉलेज में जैसे सीनियर-कम-फ्रेण्ड का भाव होता है, वैसा ही हम में था और है। यह अलग बात है कि रिटायरमेण्ट के बाद हम लोग एक दो बार ही मिले हैं। पर यह जरूर लगता है कि “जब किसी की याद आये तो फोन कर ही देना चाहिये” वाले उनके कथन पर अमल होना चाहिये। 🙂
घर आने के बाद – चालीस मिनट के स्लॉट की बजाय – हमने एक सवा घण्टे साथ गुजारे। दो इडली, एक समोसा और एक कप चाय भर चली बीच में। बाकी केवल बातें ही हुईं। मेरी पत्नीजी ने उनको रुकने और दोपहर के भोजन की बात की। पर उनका कहना था – किसी रेस्तराँ में पहली बार उसका का स्टैण्डर्ड देखने जाया जाता है। वहां बैठने की जगह कैसी है। सर्विस कैसी है। चाय की क्वालिटी कैसी है। स्नेक्स ठीक और साफ सुथरे हैं या नहीं? तसल्ली हो जाने पर अगली विजिट में भोजन की सोची जाती है। अभी तो यह पहली विजिट है। इतना तय हो गया है कि इलाहाबाद-बनारस के बीच कम्यूट करते यहां आया जा सकता है। भोजन की बात अगली बार के लिये छोड़ी जाये।” 😆
उपेंद्र जी की वाकपटुता और प्रगल्भता का एकनॉलेजमेण्ट उनकी पत्नीजी – श्रीमती सीमा सिंह भी हल्की मुस्कान के साथ करती हैं। प्रोफेसर (और अब वाइस चांसलर) सीमा जी हैं। पर बोलने का काम उपेंद्र कुमार सिंह जी करते हैं। हमारे घर भी ज्यादा बातचीत उपेंद्र कुमार जी ने की। एक सवा घण्टे की बातचीत को बांटा जाये तो साठ परसेण्ट यूके जी के, बीस परसेण्ट मेरे और दस दस परसेण्ट सीमा जी और मेरी पत्नीजी के खाते जायेगा।
किन्ही कॉमन मित्रों/परिचितों की बात चली। वे योग आसन करते हैं – दो घण्टा सवेरे और दो घण्टा शाम को। क्रियायोगी हो गये हैं वे लोग, यूके जी बताते हैं। फिर जोड़ते हैं – “वैसे योग हम भी उतना ही करते हैं रोजाना। उनसे शायद ज्यादा ही। हम आराम योगी हैं। इस उम्र में वही सबसे सरल योग है। अपना इनवेस्टमेण्ट पोर्टफोलियो देखते देखते कब आरामयोग की मुद्रा लग जाती है; कहना कठिन है।… वैसे भी काहे के लिये संग्रह करना!”
हंसी ठिठोली की बात करते करते यूके बड़े काम की बात कर जाते हैं; वह भी बड़े सहज ढंग से। “आपने घर बिल्कुल सही बनाया है रिटायरमेण्ट का आनंद लेने के लिये। लाइफ का सही मायने यहां दिखता है – लाइफ माने लिविंग इन फ्री एनवायरमेण्ट। उन्मुक्त प्रकृति के बीच रहना!”
समोसे वाली चाय की चट्टी की बात सुन कर यूके कहते हैं – “आप हमारे साथ जो वाइसचांसलर का अर्दली साथ चल रहा है न, उसका चित्र जरूर लीजियेगा। और विश्वविद्यालय का जो रथ साथ आया है – रथ ही तो है; कार पर झण्डा जो लगा है – उसका चित्र ले कर चाय की दुकान वाले को जरूर दिखाइयेगा। आखिर आपके कहे की क्रेडिबिलिटी का सवाल जो है!” 😆
गांवदेहात में अर्दली, चोबदार, बड़ी कार या रथ – इन्ही का रुआब है। साइकिल सवार की क्या बिसात! 🙂
चलते समय जब ड्राइंगरूम से उठा जाता है तब बड़े सहज भाव से सीमा जी कहती हैं – मैं जल्दी जल्दी कर रही हूं। मुझे मालुम है अभी रवाना होने में आधा घण्टा लगने वाला है। घर के बाहर फोटो खींचते, बोलते बतियाते आधा घण्टा लग ही जाता है। ग्रुप फोटो लेने के लिये अर्दली साहब को बुलाया जाता है। फुल ड्रेस में पगड़ी पहने है वह अर्दली। मैं उनकी कमीज पर लिखा नाम पढ़ता हूं – कुश प्रकाश पाल। पर वे नाम बुलाते हैं – गोरे। शायद गोरे उनका उपनाम है।

हम दोनो के मोबाइल और गोरे के मोबाइल को मिला कर वहां घर के अंदर बाहर के कुल तीन दर्जन चित्र मेरे मोबाइल में सिमट आते हैं। तीन दर्जन चित्र, समोसा चर्चा, लाइफ का फुल फार्म, क्रियायोग और आरामयोग का तुलनात्मक अध्ययन के अलावा और भी बहुत कुछ होता है उस दो दम्पतियों की बैठक में। हम लोग लम्बे अर्से बाद मिल रहे होते हैं, पर पूरी समग्रता में; उनके जाने के बाद; मेरी पत्नीजी मुझसे कहती हैं – “आज जो मुलाकात हुई उससे तुम्हारा दिन जरूर बन गया होगा? नहीं?”
दिन तो वास्तव में बहुत सुखद बना! जाने के बाद यूके जी ने मैसेज में सहेजा – अर्दली वाला और रथ वाला चित्र चाय की चट्टी वाले को दिखा दीजियेगा। आपकी क्रेडिबिलिटी का मामला है! 😆


Life is Living In Free Environment. यह सुनना अच्छा लगा। रामसेवक – हमारे गार्डनर जी – को आगे और कहा जायेगा कि एनवायरमेण्ट जरा और चमकायें। यूके जी को नया रेस्तराँ पसंद तो आ गया है। अगली बार लंच का ठहराव मान कर चला जाये। पर घर का रखरखाव चकाचक बने यह जरूरी है। आखिर हमारी क्रेडिबिलिटी का मामला जो है! 😆

प्रथम प्रणाम करता हूं सर।
समोसे की चर्चा में “समोसा रोस्टर” ढूंढ़ रहा था। हमारे पास आज भी आपकी हस्ताक्षरित प्रति उपलब्ध है।
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वाह! वह तो मुझे याद नहीं था। स्मरण कराने के लिये धन्यवाद!
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आज एक बार फिर से इस ब्लॉग को पढ़ा, बाहर सर्दी है और समोसे को देखकर मन ललच गया। नही नहीं यह ग़लत होगा आज मंगल व्रत भी है। मै सोच रहा हूँ ritire होने पर किसी मित्र को बुलाकर अपना अनुभव लिखूँगा और आपका पढ़कर देखूँगा कितना परिवर्तन आया। वैसे आज अमरूद भी लाया हूँ मार्केट से कल खाऊँगा थोड़ा महँगा दिया ३५० रुपया किलो, उससे सस्ता तो मेरा सेब और संतरा ही था,लेकिन नामक मिर्च से खाने की जो इच्छा है वो बिना आम अमरूद कौन पूर्ण करे।
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आप तो बहुत शानदार लिखते हैं और बहुत जीवंत! आप अपना ब्लॉग बना सकते हैं और जितना समय मिले उसके अनुसार अपने अनुभव लिख सकते हैं. एक डायरी की तरह. जरूर विचार कीजिए! 😊
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