प्रेमचंद को यकीन है कि मोक्ष मिलेगा कभी न कभी

कोलाहलपुर गंगा घाट पर स्नान कर आते उन्हें देखा। दूर से देखने पर मुझे लगा कि पारसनाथ हैं। डईनियाँ के पारस नित्य गंगा स्नान करने वाले व्यक्ति हैं। ये सज्जन उन्ही जैसी कद काठी और उम्र के हैं पर पारस नहीं प्रेमचंद हैं। ये भी डईनियाँ के हैं और बुनकर भी। प्रेमचंद भी नित्य गंगा नहाने वाले हैं – ऐसा मुझे उनके परिचय देने से पता चला।

गंगा स्नान कर आते प्रेमचंद

मैंने उन्हें पारसनाथ कह कर सम्बोधन किया तो उन्होने बताया कि वे प्रेमचंद हैं। पारस शायद स्नान कर जा चुके होंगे। दोनो साथ साथ नहीं आते गंगा नहाने। अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से आते हैं पर दोनों लगभग नित्य आते हैं।

प्रेमचंद के हाथ में गीले कपड़े और एक गंगाजल का डिब्बा था। बताया कि गंगाजल ले कर घर लौटते हैं और दिन भर गंगाजल पीते रहते हैं। स्नान के लिये ही नहीं, दिन भर गंगाजल का साथ रहता है।

बातचीत होने लगी तो हम दोनो रास्ते में ही बैठ गये। लोग आसपास से जाते आते रहे गंगा तट पर। प्रेमचंद ने बताया कि सन 1998 से वे नियमित हैं गंगा स्नान में। उम्र सत्तर साल की हो गयी है। बुनकर हैं। धर्म की ओर रुचि शुरू से ही है। एक हनुमान जी को पूजने वाले मिले थे। उनकी संगत में रहे। लेकिन लगा कि ब्रह्मा विष्णु महेश सम्पदा-धन का वरदान तो देंगे, पर मोक्ष का वरदान नहीं। वे अपने एक ट्रांस के अनुभव को बताने लगे – “सवेरे की रात थी। नींद में मुझे लगा कि त्रिशूल गड़ा है – धरती से आसमान तक। त्रिशूल के ऊपरी भाग पर डमरू लटका है और पास में शिवजी आसन लगा कर ध्यानमग्न हैं। विष्णु भगवान और ब्रह्माजी भी आसपास हैं। वे वरदान देने की बात करते हैं पर धन दौलत की बात करते हैं। मेरे मोक्ष की बात कहने पर कोई साफ उत्तर नहीं देते।”

“मुझे लगा कि कबीर कह रहे हैं – अकेला रहो, भक्ति करो। देर सबेर मुक्ति मिलेगी ही।”

“फिर मैं कई जगह घूमा। लहरतारा भी गया। कबीर का बीजक और अन्य कई ग्रंथ पढ़े। मुझे लगा कि कबीर कह रहे हैं – अकेला रहो, भक्ति करो। देर सबेर मुक्ति मिलेगी ही।”

“कबीर से यह तो भरोसा हुआ – भक्ति का लाभ यह है कि जन्म-जन्मांतर में भक्ति का संचय लोप नहीं होता। भक्ति का जन्म के साथ नाश नहीं होता। जितना इस जन्म में कर लिया है; अगले जन्म में उससे आगे शुरू करना होगा। पीछे नहीं जाना होगा। एक जन्म में मुक्ति न मिले, दोचार जन्म लगें या हजार भी लगें; पर मोक्ष मिलेगा ही। इतना यकीन हो गया है।”

प्रेमचंद के यह कहने में कोई गूढ़ दार्शनिक भाव तो नहीं था, पर एक सहजता थी कि वह सरल व्यक्ति इस धरा पर जन्म – मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना चाहता है। किसी न किसी अवलम्ब के आधार पर – वह कबीर का भी हो सकता है या हनुमान जी का भी – उसे यकीन हो गया है कि देर सबेर उसे मोक्ष मिलना ही है।

मुझे रामकृष्ण परमहंस की एक कथा याद हो आयी। दो साधू मोक्ष की खोज में थे। एक तपस्वी ने उन्हें कहा कि सामने बरगद के पेड़ में जितने पत्ते हैं, उतने जन्म लेने होंगे उन्हेंं। तब मुक्ति मिलेगी। यह सुन कर एक तो गहन विषाद में पड़ गया। दूसरा हर्ष से नाचने लगा। उसे हर्ष इस बात का था कि मुक्ति मिलेगी – यह तो पक्का हो गया। विषाद वाला तो शायद साधना त्याग दे; पर हर्ष से नाचने वाला, जल्दी ही मुक्ति पा जायेगा। हर्ष से नाचने वाला प्रेमचंद जैसा कोई होगा।

प्रेमचंद के यह कहने में कोई गूढ़ दार्शनिक भाव तो नहीं था, पर एक सहजता थी कि वह सरल व्यक्ति इस धरा पर जन्म – मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना चाहता है।

गंगा किनारे करार पर बैठे हुये पाच सात मिनट एक साथ व्यतीत करने में प्रेमचंद का सानिध्य मुझे एक अलग प्रकार का अनुभव दे गया। नित्य गंगा स्नान करने वाले धर्म और पवित्रता की यात्रा पर किसी न किसी सीढ़ी, किसी न किसी मुकाम पर पंहुचे हुये दीखते ही हैं। प्रेमचंद से मिलना जीवन यात्रा का एक ठहराव दिखा गया। उसके बाद प्रेमचंद अपने रास्ते गये और मैं अपने रास्ते। उनका गांव पास में ही है। कभी यू ही उनसे मुलाकात होती ही रहेगी।

प्रेमचंद जैसे पचास लोगों से मिलना है जो नित्य गंगा स्नान करने वाले हैं। आधा दर्जन लोग तो मिल ही गये हैं – या उससे ज्यादा ही। यूंही सुबह गंगा किनारे घूमता रहा तो पचास मिलते देर नहीं लगेगी। प्रेमचंद के पास मुक्ति का ध्येय है तो मेरे पास पचास गंगा नहाने वालों से मिलने का। मेरा ध्येय सरल है। और शायद यूं ही घूमते हुये मुझे भी मुक्तिमार्ग मिल जाये। मुझे भी शंकर जी का धरती से आसमान तक गड़ा त्रिशूल दिख जाये!

प्रेमचंद से मिलना जीवन यात्रा का एक ठहराव दिखा गया। उसके बाद प्रेमचंद अपने रास्ते गये और मैं अपने रास्ते।

क्या पता?! महादेव कब कैसे कृपा करते हैं; वे ही जानें। बाकी सोचता हूं, कबीर का बीजक भी उलट पलट लिया जाये कभी!

हर हर महादेव!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “प्रेमचंद को यकीन है कि मोक्ष मिलेगा कभी न कभी

  1. 05414266055 नंबर पर आपको कई बार मोबाइल से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन शायद यह नंबर आउट्डैटेड हो चुका है और मिला भी नहीं और न कोई रिस्पांस/गूगल मे आपका यही नंबर है/आप अपना मोबाइल नंबर मेरे मोबाइल 7376301730 मे एसएमएस से भेज दे अथवा मेरे ई-मेल drdbbajpai@gmail।.com पर भेज दें/बस ऐसे ही हाल चाल, गपशप,लंतरानी, खाली दिमाग शैतान का घर ,ऊल-जलूल और सबसे बढ़कर आत्मीय संपर्क सामाजिक दायरा बढ़ाने के उद्देश्य के साथ आपस मे बंधे रहने की उत्कंठा/

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