पीपल की डालें और इस्लाम बकरीवाला

सड़क पर एक आदमी साइकिल के कैरियर पर पीपल की टहनियां लादे जा रहा था। साइकिल के हैण्डल और सीट के साथ वह लम्बी सी लग्गी भी फंसाये था। शायद पत्तियों के गट्ठर में कोई कुल्हाड़ी भी रही हो।

पीपल की टहनी और उसकी हरी पत्तियों से मैं अपने मन में हाथी की कल्पना करता हूं। गांव में हाथी आता था तो उसे पीपल के पेड़ के नीचे बांधा जाता था। वह पीपल की टहनियां तोड़ कर पत्तियां खाया करता था। मुझे लगा कि यह आदमी शायद हाथी के लिये ले कर जा रहा हो। पर उसके पास साइकिल चलाते हुये जब उससे पूछा तो उसने बताया कि उसके पास इग्यारह बकरियां हैं। बकरियोंंके लिये वह सवेरे सवेरे पत्तियां तलाशने निकलता है। आसपास के गांवों में यही तलाशता है कि कहां से उसे मिल सकती हैं। पीपल की पत्तियां उसकी बकरियों को बहुत प्रिय है। उनकी तलाश में ज्यादा रहता है वह।

सामान्यत: लोग पीपल को हाथ नहीं लगाते। कृष्ण गीता में अपने को वृक्षों में पीपल/अश्वथ कहते हैं। घर की मुंडेर पर अगर पीपल जम जाता है तो लोग तनावग्रस्त हो जाते हैं। मजबूरी में पीपल के पौधे को मुंडेर से निकाल कर कहीं और रोपित करते हैं। काट कर फैंकते नहीं। कुछ लोग अन्य धर्मावलम्बियों (मुसलमानों) का सहारा लेते हैं पीपल कटवाने या उसकी शाखा छंटवाने के लिये।

पीपल की डालें लिये जाते उस आदमी के बारे में जिज्ञासा हुई। उसने नाम बताया – इस्लाम। “शैलेंदर (शैलेंद्र, मेरे साले साहब) हमके जानथीं(अच्छी तरह जानते हैं)। हमार घर नहरा पर मछलीपालन के लग्गे बा।” शैलेंद्र से पूछने पर पता चला कि इस्लाम नट है।

मत्स्यपालन फार्म के पास नटों की बस्ती है। मुझे लगता था कि नट घुमंतू जाति है, पर यहां वे स्थाई रह रहे हैं। नट महिलायें दांत के कीड़े कान से निकालने का ‘जादू’ जैसा काम करती हैं। आदमी भी छोटा मोटा काम करते हैं। गांव के आर्थिक पिरामिड में वे बहुत नीचे हैं। शायद उनसे नीचे मुसहर ही होंगे। इस्लाम बकरियां पालता है। बकरी का दूध तो बहुत काम होता है, मुख्य अर्जन बकरियां बड़ा कर उन्हें बेचने से होता है। इस्लाम वही करता है।

“बकरी का दूध बहुत से लोग तलाशते हैं। सौ रुपया पौव्वा बिकता है। पर होता ही बहुत कम है।” इस्लाम ने मुझे बताया। शायद इस दूध में प्लेटलेट्स बढ़ाने की बहुत क्षमता है। डेंगू ज्वर के फैलने पर लोग बकरी का दूध तलाशते पाये जाते हैं।

इस्लाम

मैं इस्लाम को नहीं जानता था, पर वह जानता है। मेरे घर के सामने पीपल का पेड़ है। लगे हाथ वह उसकी छंटाई की अनुमाति मांगने लगा। वह मैंने मना कर दिया। घर में पीपल नहीं लगाते लोग, पर मेरे घर की जमीन पर वह घर बनने के पहले से है। ईशान कोण पर पीपल-पाकड़ और नीम एक कतार में लगे हैं। कुछ इस तरह कि देवता एक साथ खड़े हों। … मैं नहीं चाहूंगा कि पीपल को कोई क्षति हो। पर बहुत से लोग – हिंदू लोग, इस्लाम जैसे की सहायता लेते हैं पीपल की छंटाई या कटाई में।

आसपास के इलाके में कई बस्तियां हैं गड़रियों और भेड़ियहों (बकरी और भेड़ पालन करने वालों) की। वे सवेरे सवेरे अपना रेवड़ ले कर निकल लेते हैं और दिन भर चराते हैं। उसके उलट इस्लाम सवेरे टहनियां कांट कर लाता है और बकरियां पालता है। बकरियों को चराने नहीं ले जाता। पूर्णत: घुमंतू (नट) जाति अपने रेवड़ एक जगह पर रख कर पालती है और अब एक ही स्थान पर रहती भी है – यह जानकारी अलग सी थी। गांव में रहते हुये छ साल से ज्यादा हो गये। अब भी कोई न कोई ‘जानकारी’ मिल ही जाती है। इस्लाम के बारे में जानना भी जानकारी ही है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “पीपल की डालें और इस्लाम बकरीवाला

  1. इस्लाम टाइप के लोग इसी तरह पूरे देश मे फैलते जा रहे हैं

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