करीब सप्ताह भर से प्रेमसागर गंगोत्री में थे। एक दिन मुझे गंगोत्री के परिवेश और गंगा माता के मंदिर के लाइव वीडियो-दर्शन कराये थे। उसके बाद किन्ही मौनी बाबा के आश्रम में डेरा जमाये। इस सप्ताह भर में मैं मन बनाता रहा कि गंगोत्री से केदार की यात्रा का विवरण ब्लॉग पर डालूं। मैं लगभग पैसिव था – लिखने का अर्थ दिन में तीन चार घण्टे डिजिटल-यात्रा में लगाना ही पड़ता। लेकिन जब प्रेमसागर ने गंगोत्री से गोमुख की यात्रा के बारे में मुझे बताया और यात्रा के चित्र भेजे तो लिखने के बारे में निश्चय हो ही गया।
मई तीन, 2022 की गोमुख यात्रा
आज पांच मई है। तीन मई को प्रेमसागर जी ने गोमुख की यात्रा की। बीस किलोमीटर पहाड़ की यात्रा में गंगोत्री से जाना और गोमुख से जल ले कर गंगोत्री वापस लौटना – बहुत कठिन काम है। ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी में दम फूलता है। पर प्रेमसागर वह कर गये। राजेंद्रग्राम से अमरकण्टक की चढ़ाई में प्रेमसागर ने कहा था कि अगर संकल्प न लिये होते तो वह चढ़ाई कभी चढ़ते नहीं। गंगोत्री-गोमुख की चढ़ाई, मेरे अनुमान से उससे ज्यादा दुरुह होगी। पर अमरकण्टक से अब तक प्रेमसागर की प्रकृति, साहस और आत्मविश्वास में बहुत कुछ बदला है। बहुत कुछ सार्थक बदलाव आया है।
प्रेमसागर ने भी बताया कि ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही थी। साथ में आठ नौ लोग थे। वन विभाग के लोग थे। उसके अलावा कलकत्ता के कुछ यूट्यूबर थे। वन कर्मी साथ थे तो रास्ते में असुविधा नहीं हुई। रास्ता उनका जाना पहचाना था। उन्होने कहा कि गोमुख जा कर एक ही दिन में लौट आना है। वे नहीं चाहते थे कि रास्ते में ओवरनाइट स्टे किया जाये। इसलिये जाने आने की दूरी एक दिन में तय की। अन्यथा लोग रास्ते में आठ किलोमीटर बाद चीड़वासा और भोजवासा में रात्रि विश्राम करते हैं। गोमुख में रात गुजारने की सुविधा नहीं है।

रास्ता दुरुह था। करीब दो फिट चौड़ा। उतना संकरा रास्ता पैदल ही पार करने के लिये ही उपयुक्त होता है। वही किया जा रहा था। एक ओर पहाड़ की चढ़ाई और दूसरी ओर 1000 फीट (कम से कम) का गह्वर, जिसमें भागीरथी बह रही थीं। दर्शनीय तो था ही पूरा इलाका। कई जगह वन विभाग के बने पुल से पार करना पड़ा।
“बन वाले हमको अकेले जाने की परमीशन नहीं दिये। बोले – बाबा लोग का भरोसा नहीं। क्या पता कौन बाबा किस गुफा में आसन जमा ले। एक बार बैठ जाने पर उस बाबा को वहां से निकालना मुश्किल होता है।” – प्रेमसागर ने बताया।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
“बर्फ का पहाड़ था गोमुख। ऊपर मिट्टी जमा था। बर्फ गर्मी में पिघलने से पानी निकल रहा था। रास्ते में कई जगह मिट्टी के धसकने की चेतावनी के बोर्ड लगे हुये थे। पूरे रास्ते भर बर्फ की बारिश होती रही। बर्फ के छोटे छोटे टुकड़े थे। उसके कारण मोबाइल से चित्र लेना मुश्किल था। जो फोटो खींचे भी वे नीले नीले आये हैं। बर्फ की बारिश ऐसी थी कि विण्डचीटर होने के बाद भी भीग गये। यात्रा लम्बी और बहुत कष्टदाई थी। रात नौ बजे वापस गंगोत्री पंहुचने पर मौनीबाबा के आश्रम वाले कहे कि एक दिन विश्राम कर परसों निकलियेगा रुद्रप्रयाग के लिये। वैसे कार्यक्रम चार मई को ही निकलने का था।” – प्रेमसागर तीन तारीख की रात गंगोत्री वापस आ कर चार को वहां रुके और पांच मई को सवेरे आठ बजे तक वाहन से रुद्रप्रयाग के लिये निकल लिये।

रुद्रप्रयाग से गंगोत्री की पद यात्रा वे कर ही चुके थे गंगोत्री जाने के समय। अब रुद्रप्रयाग से केदार की अस्सी किलोमीटर की यात्रा – जिसमें तीन-चार दिन लगेंगे छ मई को सवेरे प्रारम्भ होगी। जब तक केदारनाथ पंहुचेंगे, वहां मंदिर खुल चुका होगा।
केदार की यात्रा के लिये गोमुख से भागीरथी का जल उठाना महत्वपूर्ण कृत्य था, जो तीन मई को प्रेमसागर ने सम्पन्न कर लिया। अब देवप्रयाग से केदार और फिर बदरीनाथ की यात्रा करनी है उन्हें। केदार की यात्रा के बाद चार-पांच दिन लगेंगे बदरीनाथ की यात्रा में। अर्थात कुल दस दिन। … दस दिन का पहाड़ का डिजिटल भ्रमण मेरा भी होगा। प्रेमसागर का साथ बीच में टूट गया था, तो अभी अटपटा लग रहा है। सम्पट बैठने में दो तीन दिन लगेंगे! प्रेमसागर अपने संकल्प से बंधे हैं और मुझे पहाड़ की यात्रा आकर्षित कर रही है। दोनो के ध्येय अलग अलग हैं; पर परिणति ब्लॉग की पोस्टों में होगी। … यात्रा इसी का नाम है। अलग अलग ध्येय के लोग एक साथ जुड़ते हैं और कुछ दूर साथ साथ चलते हैं। कुछ साथ चलते हैं तो सुहृद हो जाते हैं।

प्रेमसागर का अपना जो भी नेटवर्क बना हो, मेरे लिये वे अब भी वही प्रेमसागर हैं जो विक्रमपुर के ओवरब्रिज के पास भादौं महीने में कांवर उठाये जा रहे थे। देखते हैं अगले दस दिन हम दोनों के सामुहिक डिजिटल जुड़ाव से क्या क्या निकलता है।
हर हर महादेव!


आपकी यात्रा मंगलमय हो
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आदरणीय ज्ञान दत्त जी,
प्रेम सागर जी के बारे में चिर प्रतीक्षित ब्लॉग पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आपने इस लेख के अंत में प्रेम सागर जी के विषय में लिखे अपने पहले ब्लॉग का लिंक भेजा जो मुझे उसे फिर से पढ़ने का अवसर दिया। बहुत अच्छा लगा। आशा है इस बार प्रेम जी की यात्रा के साथ साथ आपकी लेखनी यात्रा भी अटूट चलती रहेगी। बहुत-बहुत धन्यवाद। आपकी यह लेख भारतीय समाज और हिंदी के लिए धरोहर है ंं
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धन्यवाद जी! 🙏🏼
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It is very pleasant to see Prem sagar again on your blog. I hope it will continue.
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Yes. I propose to cover Kedar and Badri Nath.
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