यात्रा कठिन है और असल समस्या शायद पैसों की है। प्रेमसागर के साथ मैंने डिजिटल यात्रा की है करीब दो हजार किलोमीटर की। उससे भी ज्यादा की। उनके साथ एक बार लूट भी हुई और बीच में यह भी लगा कि स्वास्थ्य ठीक नहीं है। पर कभी इस प्रकार की समस्या नहीं आयी। रात को खुले में रहा नहीं जा सकता पहाड़ की एक हजार मीटर की ऊंचाई पर। कमरे या डॉर्मेट्री में बिस्तर के डेढ़ दो हजार मांगते हैं। उतना देना अखर रहा है प्रेमसागर को। सोच रहे हैं कि तीन दिन की यात्रा किसी तरह दो दिन में पूरी हो सके। एक बार बस बद्रीनाथ के दर्शन हो जायें, उसके बाद तो बस पकड़ कर सीधे ऋषिकेश/हरिद्वार पंहुचेंगे वे। वहां पंहुचने पर समस्या नहीं होगी। फिर हरिद्वार से गाड़ी पकड़ कर बनारस आने पर तो सब दिक्कत खतम!

लोग मैदान की गर्मी से बेहाल पहाड़ की तरफ रुख कर रहे हैं। पारा उनचास डिग्री तक चला गया है। प्रेमसागर को पारा चढ़ने से नहीं, पहाड़ में हर सुविधा के बेतहाशा पैसे लगने और देने पर दिक्कत हो रही है। नंद प्रयाग के आसपास उन्हें गुफायें दिखीं। गुफा देखते ही मन होने लगा कि ठहरने को ऐसी एक गुफा मिल जाये तो कितना अच्छा हो। उन्होने बताया कि इन गुफाओं में तो तपस्वी लोग नहीं रहते – शायद पुलीस या फोर्स वाले गुफाओं पर कब्जा नहीं जमाने देते। पर गंगोत्री-गोमुख में कई गुफाओं में तपस्वी रहते हैं। वहां एक गुफा में रहते बाबा को प्रेमसागर ने कहा था कि उनके लिये भी एक गुफा जुगाड़ दें। पर तपस्वी ने उत्तर दिया कि उन्हीं लोगों को कम पड़ रही है गुफायें, एक और को कहां से एडजस्ट किया जाये। 😆
बकौल प्रेमसागर ये गुफायें हैं बड़े काम की। गर्मियों में ठण्डी और सर्दियों में गर्म रहती हैं। कितना बढ़िया हो कि शहर में तीन बीएचके फ्लैट की बजाय जोशीमठ के आसपास वन बीएचके गुफा मिल जाये। तब वहां रह कर एक बीएचके गुफा के जीवन पर पुस्तक लेखन का यत्न किया जाये। 🙂

मैदान की आबादी दौड़ रही है हिमाचल-हिमाद्रि की ओर। और उन्हीं भर से हिमालय नहीं भर गया; बाबाओं की भी भरमार से त्रस्त हो गया है! 🙂
जैसा प्रेमसागर मुझे बताते हैं – केदार या बद्रीनाथ उनके लिये धार्मिक पर्यटन नहीं, एक यात्रा की अनिवार्यता है, जो उन्हें संसाधनों की कमी के बावजूद पूरी करनी है। इसलिये जितनी जल्दी पूरी हो जाये उतना अच्छा। जरूरत से क्षण भी अधिक प्रेमसागर वहां रुकने वाले नहीं लगते।
मौसम खराब होता रहता है। वे सोचते है कि आगे की यात्रा कम से कम समय मे पूरी कर ले, पर मौसम कभी कभी साथ नही देता। वे एक दिन पहले मुझे कहते है कि कल 35 किमी चलने का प्रयास करेंगे पर चल मात्र पच्चीस, या उससे कम ही, पाते हैं। पच्चीस किलोमीटर भी कम नही है पहाड़ पर चलना।
नंदप्रयाग से पहले प्रेमसागर के पास तीन लीटर पीने का पानी था; जो यात्रा के श्रम के कारण खत्म हो गया। “भईया, बिना पानी के एक कदम चलना कठिन हो रहा था। ऐसे में एक कार से जाते लोगों को उन्होने हाथ से इशारा किया। कार कुछ आगे जा कर रुकी। उन लोगों ने पास आ कर एक लीटर पानी की बोतल दी। मानो अमृत दिया। “महादेव ने ही उनके जरीये कृपा की…” प्रेमसागर ने दिन भर की गतिविधियों का विवरण देते बताया।

तेरह मई की शाम को प्रेमसागर कर्णप्रयाग में थे। अलकनंदा और पिण्डर नदी के संगम स्थल पर। चौदह की शाम वे नंदप्रयाग पंहुच गये थे। वहां नंदाकिनी और अलकनंदा का संगम है। नंदाकिनी का रंग नीला-हरा है और अलकनंदा का सफेद-मटमैला। वे उत्तरोत्तर अनेक नदियों के संगम स्थल से गुजरेंगे। अनेक प्रयाग आयेंगे। सभी तीर्थ हैं और सभी दर्शनीय। हिमालय का चप्पाचप्पा दर्शनीय है।
अगले दिन वे पीपलकोटी पंहुच कर रहने के लिये कोई जगह तलाश रहे थे। पर यात्रियों की भीड़ के कारण कमरा/बिस्तर मिलना कठिन था। मिल भी रहा था तो दो हजार रुपये के आस पास। अंतत: कुछ आगे जा कर एक स्थान मिला जहां मोलभाव/छूट के बाद आठ सौ लगे। प्रेमसागर के पास धन की समस्या होगी जरूर। उन्होने बार बार मुझसे कहा कि जल्दी से जल्दी वे बद्रीनाथ दर्शन कर वहां से अगली बस पकड़ना चाहते हैं।

पर्यटक – और धार्मिक पर्यटक भी – बद्रीनाथ दर्शन कर वहां से हेमकुण्ट या फूलों की घाटी देखने का मन बनाते हैं। इतनी दूर हिमाद्रि के गोद में आना वंस इन लाइफटाइम जैसा अनुभव होता है। व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा समेटना चाहता है। अगली बस पकड़ कर लौटने की नहीं सोचता। मैने प्रेमसागर से पूछा – क्या सरकार बिना पैसे के चलने वाले तीर्थयात्री के लिये कोई सुविधा नहीं देती। कम से काम रात गुजारने और सादा भोजन का जुगाड़। प्रेमसागर ने कहा कि वैसा कुछ नहीं दिखा। उत्तराखण्ड के मंत्री साहब का कोई सिफारिशी पत्र लाये तो उसे सरकारी गेस्ट हाउस में जगह मिल सकती है, ऐसा सुना है। पर वह चिठ्ठी पाना कोई खेल नहीं होगा। आम आदमी कहां से पायेगा?
सोलह मई को प्रेमसागर कुछ अस्वस्थ लगे। सवेरे देर से उठे और देर से यात्रा प्रारम्भ की। दिन में अठारह किलोमीटर ही चल पाये। दोपहर में मुझे बताया कि किसी स्थान पर उन्होने डेरा डाला है। इस जगह से जोशीमठ 18-20 किमी दूर है और उसके आगे 38किमी है बद्रीनाथ। जितना जल्दी वे चलना चाह रहे हैं, समय उतना ज्यादा लगता जा रहा है।
चित्र कम ले पा रहे हैं प्रेमसागर और यात्रा भी ड्रैग कर रही है। फिर भी वातावरण ही मनोरम है और कुछ चित्र लुभावने खिंच पा रहे हैं। रास्ते में चाय की दुकान, मिले यात्री – फेसबुकर्स – के साथ चित्र हैं। एक भाई-बहिन यतेंदर और नीरजा शर्मा के साथ उनका चित्र है। प्रेमसागर कहते हैं कि वे मुझे ट्विटर या फेसबुक पर जानते हैं।

किसी प्रकार से चारधाम यात्रा सम्पन्न हो, इसकी आस है उन्हें। यात्रा उनके लिये अनिवार्य कृत्य है; उत्फुल्लता का कारक नहीं। पता नहीं यात्रा जब खत्म हो जायेगी, तब प्रेमसागर क्या करेंगे? खैर अभी तो उन्हें बद्रीनाथ के बाद हरिद्वार हो कर वाराणसी लौटना है और वहां से देवघर। फिर बारहों ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न होने पर एक बार गोमुख का जल ले कर रामेश्वरम जाना है। वह जाना रेलगाड़ी से होगा। कुल मिला कर अभी महीना भर लगेगा इस यात्रा-यज्ञ के सम्पन्न होने में।

उसके बाद क्या करेंगे प्रेमसागर? घर परिवार वालों को बैठ कर रोज रोज अपनी यात्रा कि कथायें सुनायेंगे या कहीं कोई आश्रम बना कर बाबाजी के रूप में स्थापित हो जायेंगे? दोनो ही दशाओं में मेरा सम्पर्क शायद ही रहे। हमारा साथ महीने भर का शेष है!
17 मई 2022 –
सवेरे साढ़े आठ बजे प्रेमसागार ने बताया कि वे अठारह किमी चल चुके। असल में कोई शॉर्टकट मिल गया। जिसमें आधी दूरी चलने से वे दूने चलने का लाभ ले पाये। सवेरे वे जोशीमठ पंहुच गये हैं। तीन बार चाय पी चुके हैं। चाय भी सस्ती मिली यहां – दस रुपया कप। पहले तो तीस रुपये तक की मिल रही थी। जोशी मठ के आगे भी शॉर्टकट का उपाय बताया है राह चलते लोगों ने। उसी का प्रयोग कर वे अपेक्षा करते हैं कि आज ही बद्रीनाथ पंहुच जायें। जोशी मठ से हिमाद्रि की शुरुआत हो गयी है। सभी कुछ हिम-आच्छादित दिखने लगा है। जैसा गंगोत्री-गोमुख और यमुनोत्री मे दीखता था। आज प्रेमसागर में जोश और उत्साह दिख रहा है। जब भी किसी शॉर्टकट का वे प्रयोग करते हैं, तो उनके बीच सहज उत्फुल्ल्ता मैंने पायी है। आज भी वैसा ही लगा।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
अभी दोपहर सवा दो बजे प्रेमसागर ने सूचना दी कि उन्होने बद्रीनाथ के दर्शन कर लिये हैं। वे वीडियो कॉल कर मंदिर के बाहर निकलते दिखाना चाहते थे, पर खराब नेटवर्क के कारण वह नहीं कर पा रहे। अब वे कुछ जलपान कर बद्रीनाथ से रवाना होंगे। उनका सामान पीपलकोटी के आगे दो किमी बाद एक लॉज में रखा है। बोलेरो जाती हैं बद्रीनाथ से। उससे वे पीपलकोटी पंहुच कर सामान ले कर रुद्रप्रयाग के रास्ते हरिद्वार जायेंगे। हरिद्वार से ट्रेन पकड़ कर बनारस।
पहाड़ का उनका मिशन – केदारनाथ ज्योतिर्लिंग और चारधाम पदयात्रा का मिशन पूरा हुआ।

बद्रीनाथ धाम के चित्र देख कर लगता है कि वहां बेतहाशा भीड़ है। कोरोना प्रोटोकॉल जैसा कुछ नहीं है। कोई लाइन-कतार जैसा भी नहींं है। धर्म और श्रद्धा वश लोग-लुगाई एक साथ बिना किसी सेग्रिगेशन के, पिले पड़े हैं दर्शन के लिये।
मैंने प्रेमसागर को बधाई दी। उन्होने मेरी पत्नी और मुझे चरणस्पर्श कहा। बद्रीनाथ की व्यवस्था, साफसफाई और वहां के सामान्य रखरखाव के बारे में मैं पूछना चाहता था, पर वह फिर कभी होगा। स्टीफन एल्टर ने अपनी पुस्तक सेक्रेड वाटर्स में बद्रीनाथ की अव्यवस्था और भीड़ की बात की थी। वही अब भी दीखता है। खैर, प्रेमसागर ने किसी असुविधा या अव्यवस्था की बात नहीं की। पर वे वहां बहुत ज्यादा रुके भी नहीं। जलपान कर निकल लिये।
मेरा लैपटॉप खराब हो गया है। कल विवेक – मेरे दामाद – आये थे। वे ले कर बोकारो गये हैं। ठीक करा कर भेजेंगे। यह पोस्ट पुराने लैपटॉप, जिसका कीबोर्ड और स्पीकर काम नहीं करता; और रह रह कर स्क्रीन हैंग कर जाता है; पर किसी तरह टाइप कर पोस्ट कर रहा हूं। जिस तरह प्रेमसागर को यात्रा का जुनून है, उसी तरह लिखने और पोस्ट करने का मेरा जुनून है। दोनो में तालमेल बना रहना चाहिये।
जय बदरी विशाल। जय केदार। हर हर हर हर महादेव!

मधुकर चौबे ट्विटर पर –
जितनी कठिन प्रेमसागर जी की यात्रा है उससे सरल और मनभावन आपका लेखन। अगली बार बनारस आया तो उनसे मिलने की कोशिश करूंगा। एक बात निकल कर आती है कि सरकार को कम आय वालों के लिए रुकने जाने की व्यवस्था करनी चाहिए। जैसे पहले के समय में सराय या आरामगाह होते थे। पर सबको कमाना है,सरकार को भी
LikeLike
प्रेम बाबा जी को सादर चरण स्पर्श कोटि-कोटि नमन।।🙏🙏🙏🙏
इतनी कठिन यात्रा और इतनी मुश्किलों को पार करते हुए 12 ज्योतिर्लिंग का दर्शन करते हैं प्रेम बाबा की जय हो 📿🚩🙏मैंने अपने जीवन में प्रथम बार किसी ऐसे व्यक्ति की जीवनी पड़ी है🔆🔆🔆🔆 जिसने 12 ज्योतिर्लिंग यात्रा संपन्न की है मैं अपने जीवन की बात बता रहा हूं 🚩🚩🚩जय श्री राम हर हर महादेव भगवान उनको खुश और स्वस्थ रखें🚩🚩🚩🚩🚩🚩
LikeLiked by 1 person
जय हो राहुल जी! 🙏🏼
LikeLike