बार बार बीमार होता रहता है सुंदर शर्मा यानी हमारा घर आने वाला नाऊ। साठ से ऊपर की उम्र हो गयी। मुझसे कम उम्र होगी पर ज्यादा छीज गया लगता है। पिछली बार ढाई-तीन महीने पहले बाल काटने आया था। उसके बाद अब आना हुआ। इस बीच बीमार पड़ा था। लड़कों के पास बम्बई गया। वहां एक लड़का ऑटो चलाता है। लोन ले कर खरीदा है। बताया कि अब मोबाइल से ही पैसा पेमेण्ट मिलता है। रविवार और छुट्टी के दिन खास कमाई नहीं होती। जब सरकार चलती है, दफ्तर खुलते हैं, तब ग्राहक मिलते हैं। कभी ग्राहक बहुत मिलते हैं तो कभी कम। दूसरे लड़के की हीरा तराशने के काम में नौकरी है। पचीस हजार महीना मिलता है। उसके पास पी.एफ. की भी सुविधा है। उसके या घर वाले लोगों के बीमार होने पर इलाज की भी सहूलियत है। सुंदर का इलाज उसी के माध्यम से हुआ। सुंदर उसके परिवार में उसके डिपेण्डेण्ट की तरह दर्ज होगा।

सुंदर का दिल का इलाज-ऑपरेशन भी हुआ और पोस्ट ऑपरेशन केयर भी फ्री में हुई। वर्ना बकौल सुंदर “ढ़ाई तीन लाख खर्चा आता”। फ्री में इलाज भी बड़े अस्पताल में हुआ और वहीं पर सभी दवायें, भोजन फ्री में मिला। अस्पताल से छुट्टी मिलते समय अठारह हजार की एक महीने की दवायें भी फ्री में मिली।
लड़के की ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर की नौकरी का लाभ वास्तव में बहुत है। वर्ना सुंदर का इलाज हो ही नहीं पाता। आज सुंदर मेरे बाल काट रहा था। वर्ना या तो बहुत बीमार रहा होता या फिर.. क्या हुआ होता उसकी कल्पना भी दुखद है। मुझे लगा कि आयुष्मान जैसी चिकित्सा बीमा योजना वास्तव में बहुत कारगर सुविधा होगी। बशर्ते उसका सही सही और व्यापक क्रियान्वयन हो।
सप्ताह भर सुंदर अस्पताल में भर्ती रहा। बताता है कि हाथ की कलाई के पास दो चीरे लगाये थे और एक तार डाल कर उसी से इलाज किया था। दस पंद्रह घण्टा आपरेशन चला होगा। उसकी सुध नहीं है सुंदर को। उस समय उसे बेहोशी की दवा दी गयी थी। घर का कोई आदमी उसके पास नहीं था। पिछले महीने बाईस तारीख को वह वापस लौटा है गांव। महीना भर होने को आया। अब तबियत ठीक है। अब थोड़ी बहुत जजमानी भी निपटा दे रहा है वह। वैसे जजमानी का ‘पौरुख’ नहीं है। ज्यादा जगह छोटे भाई का लड़का है, वही जाता है। अभी घर ने जजमानी का परित्याग नहीं किया है। करने का इरादा भी नहीं झलका सुंदर की बात से। मेरे घर बाल काटने भी इसी लिये चला आया है सुंदर।
बाल काटने के बाद वह मेरी पत्नीजी को बुलाता है और सही काटने का अप्रूवल वही देती हैं। उसके बाद वह मेरी कनपटी के बेतरतीब उगे बाल काट कर चम्पी-अनुष्ठान करता है – यद्यपि उसके हाथों में बहुत जोर नहीं है। चम्पी के बाद झाड़ू ले कर वह फर्श पर बिखरे कटे बाल समेटता है। पत्नीजी उसे उसक मेहनताना देती हैं। मेरा मन होता है कि उसकी बीमारी के मद्देनजर उसको ज्यादा – डबल – दे दिया जाये; पर वह पत्नीजी को पसंद नहीं आता। वे रेट नहीं बिगाड़ना चाहतीं। सुंदर को अलग से कभी दे दिया जाये वह उन्हें मंजूर है।
लड़के की ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर की नौकरी का लाभ मुझे स्पष्ट होता है। मुझे यह भी दिखता है कि सरकारी नौकरी की बदौलत में पेंशन याफ्ता हूं और मुझे काम करने की बाध्यता नहींं।उसके उलट दिल का ऑपरेशन करवा कर लौटने के महीना भर बाद ही सुंदर को काम में जुटना पड़ रहा है जब कि उसकी उम्र भी साठ पार की हो चुकी है। आशा करता हूं कि आगे सुंदर की जितनी भी जिंदगी है; जितने भी साल या दशक उसे जीना है; वह स्वस्थ जिये। जिंदगी न केवल लम्बी हो वरन काम करने लायक हो। वह पिछ्ले कुछ सालों में बार बार बीमार पड़ा है। कुटुम्ब का सहारा उसे मिलता रहा है। पर दैनिक जीवन जीने के लिये उसे उद्यम तो करना ही पड़ा है। वह करता रहे तो शायद जिंदगी सरलता से चल जाये। मैं सुंदर शर्मा की जिंदगी सरल, सहज और रीजनेबली कम्फर्टेबल हो; उसकी कामना करता हूं। सुंदर से अगली मुलाकात जुलाई-अगस्त में होगी। तब तक मेरे बाल एक बार और बढ़ कर कटने लायक हो जायेंगे।

इस बीच जब भी सुंदर से राह चलते मुलाकात होती है, मैं उसके स्वास्थ्य पार निगाह डालता हूं और वह मेरे बालों पर। कई बार वह टिप्पणी करता है – “अबहियाँ त ढेर नाहीं बढ़ा हयें। अबअ न कटाये।”
वह और में एक हेयर कटिंग से दूसरी तक अपनी मुलाकात टालते हैं। पर मेरे और उसके बीच एक बॉण्ड तो बन ही गया है। 🙂
