विश्व से जुड़े रहने की तलब

सवेरे तीन बजे उठा हूं। उम्र बढ़ने के साथ नींद जल्दी ही खुल जाती है। निपटान के बाद लैपटॉप खोलता हूं। पर इण्टरनेट? बारिश में उसका राउटर काम नहीं कर रहा। तीसरी बत्ती जल ही नहीं रही। रात में तूफान था तो घर के ऊपर एण्टीना से आता इण्टरनेट बंद कर दिया था। अब चालू करने पर बूट ही नहीं हो रहा।

बिना इण्टरनेट के सब सून है। सवेरे साढ़े तीन बजे हैं। इण्टरनेट प्रोवाइडर को फोन कर ठीक करने को कहा भी नहीं जा सकता। टेलीवीजन भी ऑन करना उचित नहीं है। पत्नीजी की नींद में खलल पड़ेगा। लेकिन सवेरे सवेरे – भोर होने के पहले भी – विश्व से जुड़े रहने की तलब का क्या किया जाये?

इंफ्यूजर का प्रयोग कर एक कप चाय बनाई जाती है। यह इनफ्यूजर भी बढ़िया चीज है। ग्रीन चाय के टी-बैग्स की बजाय इसका प्रयोग बहुत किफायती है। चाय का बड़ा मग ले कर बैठता हूं। मोबाइल का हॉटस्पॉट ऑन कर लैपटॉप चलाया जाता है। ई-मेल चेक होती हैं। द हिंदू वाले की लम्बी ई-मेल जिसमेंं कल का खबरों का राउण्ड अप है। साम्यवादी रुंझान का अखबार है पर खबरों का शोर कम है इसमें। व्यर्थ में हीरो-हीरोइनों की चटपटी खबरें नहीं परोसता। सो सब्स्क्राइब कर रखा है।

इंफ्यूजर का प्रयोग कर एक कप चाय बनाई जाती है। यह इनफ्यूजर भी बढ़िया चीज है। ग्रीन चाय के टी-बैग्स की बजाय इसका प्रयोग बहुत किफायती है।

आधा घंटा लैपटॉप पर लगता है। उसके बाद मोबाइल पर सोशल मीडिया खंगालने का अनुष्ठान होना है पर आजकल उसे कम से कम कर दिया है। टैब पर अखबार खंगालने का समय हो गया है। तीन चार अखबार सवेरे साढ़े चार तक आ जाते हैं मैग्ज्टर पर। गांव विक्रमपुर कलाँ, जिला भदोही, उत्तर प्रदेश में बैठे आदमी के लिये मुम्बई, चैन्ने और लंदन की डेटलाइन वाले अखबार!

यह खबर जानने की चाह क्यों है?

एक गांव के उपेक्षित कोने में रह रहा हूं मैं। बारिश हो रही है और रास्ता लगभग अवरुद्ध है। रास्ते मेंं कीचड़ होने के कारण साइकिल ले कर निकलने का मन नहीं है। सवेरे दूध नहीं आ सकता। दूध की जरूरत वैसे भी कम हो गयी है। चाय भी बिना दूध वाली पीने लगे हैं हम। दूध न भी लिया जाये तो काम चल सकता है। सब्जी न भी आये तो काम चल सकता है। पत्नीजी के किचन गार्डन से दो लोगों के काम लायक भिण्डी, बोड़ा, नेनुआँ निकल जा रहा है। आलू, टमाटर घर में है ही।… घर से निकलने की जरूरत नहीं, पर दुनियां में क्या हो रहा है, वह जानना है।

टैब पर अखबार खंगालने का समय हो गया है। तीन चार अखबार सवेरे साढ़े चार तक आ जाते हैं मैग्ज्टर पर।

क्या फर्क पड़ता है कि नीतिश कुमार कौन दाव खेल रहे हैं? राहुल गांधी जी ने आज क्या बकलोलई की है? यूक्रेन ने कितना इलाका छुड़ा लिया है? चीन और भारत के नायक क्या बतियाने वाले हैं? स्वामिनाथन अय्यर मेधा पाटकर की क्या मजम्मत कर रहे हैं आजकल? ये सब नॉन-ईश्यू हैं गांव देहात के एकांत जीवन में। पर इण्टरनेट नहीं चलता तो छटपटाहट होने लगती है। विकल्प के रूप में टीवी ऑन करने की तलब होने लगती है।

इस युग का यही रोचक पक्ष है कि कोने अंतरे में बैठा आदमी भी पूरी दुनियाँ की खोज खबर के लिये दुबरा रहा है। जैसा चीनी कहावत में है कि अभिशाप है रोचक समय में रहना। May you live in interesting times! हम सब विश्व से जुड़े रहने की तलब की रोचकता में अभिशप्त जीव हैं।

इण्टरनेट नहीं चलता तो छटपटाहट होने लगती है। विकल्प के रूप में टीवी ऑन करने की तलब होने लगती है।
स्क्रीनशॉट वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन की साइट के पेज – The news is not for you पर एक चित्र का है।

एक चाय और! उसके साथ मैं बार बार सोचता हूं कि इण्टरनेट प्रोवाइडर महोदय कितने बजे उठ जाते होंगे? क्या साढ़े छ बजे उन्हें फोन करना उचित होगा? इण्टरनेट न होने की तड़फड़ाहट! विश्व से जुड़े रहने की अभिशप्तता!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “विश्व से जुड़े रहने की तलब

  1. आपने हर किसी केनी जी अनुभव को अपने पोस्ट में बयां किया है। आज सुबह मैं भी पौ फटने से पहले जग गया था और अपना मोबाइल शयन कक्ष में छोड़ नीचे एक किताब (prisoners of geography)लेकर चाय के साथ बैठा। बहुत ही अच्छा अनुभव रहा.

    Liked by 1 person

    1. वाह! हम दोनों के अनुभवों में साम्य है अर्थात हमारी प्रकृति में साम्य है. 😊

      Like

  2. रिवर्स माइग्रेशन को सबसे ज्यादा बल प्रदान करने वाला तत्व यदि है तो वह है इंटरनेट की उपलब्धता और बिजली की पहुंच। हालांकि अब उसे सौर ऊर्जा से भी बदला जा सकता है।
    मैं स्वयं भी अपने मुख्य शहर से 5 से 6 किलोमीटर दूर लगभग जंगल जैसी जगह पर अपने लिए एक छोटा मकान और बड़ा सा खाली लैंड लेकर सौर ऊर्जा से शत-प्रतिशत लैस होकर चैन से रहना चाहता हूं।

    Liked by 1 person

    1. आपके बसने और अनुभवों पर आपके लेखन की प्रतीक्षा रहेगी मुकेश जी 🙏🏼

      Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started