पूस, पुआल और पराली और आबो हवा पर फुटकर विचार

पूस के महीने की शुरुआती यादें गांव में पुआल के बिछावन पर कथरी बिछाये सोते लोगों की हैं। धान की फसल निपट चुकी है। पुआल के गठ्ठर भी घरों में सहेज लिये गये हैं। गेंहूं के लिये खेतों में पलेवा (पानी डाल कर भिगाने का कृत्य) लगाया जा रहा है और रात रात भर किसान ठण्ड में हुहुआते हुये खेतों में पानी को मोड़ता, दिशा देता दीखता है। इस दृष्य में पूस का महीना है, पुआल की भरमार है पर पराली का कोई स्थान नहीं था/है।

भला हो शैलेंद्र की पत्नीजी का जिन्होने पुआल को बेचने का निर्णय कर लिया। उनका एक कारिंदा एक छोटा पिक-अप ट्रक लाया है और उसपर पुआल लद रहा है। एक छोटे टाटा मैजिक नुमा पिक-अप पर कितना पुआल लद सकता है यह देख कर मैं हैरान हूं।

अमृतलाल वेगड़ जी से उधार लिया जाये तो ‘पूस प्रकृति है, पुआल संस्कृति है और पराली विकृति है’। यहां पराली की विकृति अभी नहीं आयी है। छोटी जोत के गरीब किसान वह विकृति अफोर्ड नहीं कर सकते। यहां तो धान और अन्य अन्न के दाने भी खेत से बीनने वाले लोग भी हैं। खेतों में चूहों की बिलों को खोद कर उसमें से अनाज निकालने वाले मुसहर भी हैं। गरीबी की अलग जीवन शैली होती है। एक अलग स्तर का मिनिमलिज्म। यू-ट्यूब पर मिनिमलिज्म का व्लॉग ठेलने वाले क्या जानें मिनिमलिज्म का सही मतलब। उनके लिये तो पैसे वालों का अलग दिखने का एक फैशन है अपरिग्रह/मिनिमलिज्म! उनका पश्चिमी तर्ज का मिनिमलिज्म तो मुझे तनिक भी नहीं सुहाता।

खैर, यहां पर यद्यपि पराली की विकृति नहीं है, प्रदूषण की विकरालता उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है।

मेरे पड़ोसी, शैलेंद्र के यहां उनके धान के खेतों से निकला पुआल गंजा हुआ था। उसके तिनके धूल में मिल कर अच्छा खासा प्रदूषण करते थे। भला हो उनकी पत्नीजी का जिन्होने पुआल को बेचने का निर्णय कर लिया। उनका एक कारिंदा एक छोटा पिक-अप ट्रक लाया है और उसपर पुआल लद रहा है। एक छोटे टाटा मैजिक नुमा पिक-अप पर कितना पुआल लद सकता है यह देख कर मैं हैरान हूं। इस तरह के पिक-अप पर या ट्रेक्टर की ट्रॉलियों पर खूब पुआल इधर से उधर ट्रांसपोर्ट हो रहा है। गांव देहात की पगडण्डी नुमा सड़कों पर पुआल लदे ये हाथी डगमग डगमग करते चलते हैं तो उनके कभी भी पलटने का अंदेशा होता है। उनके आसपास से साइकिल निकालने के भय को भी किसी सिण्ड्रॉम – मसलन पुआलाइटिस सिण्ड्रॉम की संज्ञा दी जा सकती है। वह सिण्ड्रॉम मुझमें घर कर गया है। आजकल गांव की सड़कों-पगडण्डियों पर चलना नहीं सुहा रहा।

यह पुआल ट्रांसपोर्टेशन अभी महीना भर तो चलेगा ही।

रीडर्स डाइजेस्ट में पुआल वाहन का एक कार्टून

ग्राम्यजीवन का नोश्टॉल्जिया लगता है बड़ी उथली चीज है। धान की कटाई, पुआल के भूसा बनाने की क्रिया और पुआल के ट्रॉन्स्पोर्टेशन की लॉजिस्टिक्स ने कुल मिला कर पूरे इलाके की एयर क्वालिटी इण्डेक्स बरबाद कर रखी है। मेरे अपने इलाके की एक्यूआई 160-170 के आसपास है। खराब। और भारत के नक्शे में देखता हूं तो पाता हूं कि कमोबेश पूरे देश का एक्यूआई खराब है। दिल्ली ही नहीं, पूरा देश धूल, सांस की बीमारियों और दमे का शिकार हो रहा होगा व्यापक तौर पर। मीडिया में अभी इसकी चर्चा का फैशन नहीं है, पर एयर क्वालिटी देश की एक बड़ी हेल्थ समस्या हो ही गयी है। पानी बरबाद हो गया है तो निम्न मध्यवर्ग भी आर.ओ. का पानी पीने लगा है। उसी तरह मास्क पहनना एक 24X7 की अनिवार्यता हो जायेगी।

पुआल से चारा काटा जा रहा है और उससे उड़ने वाली तिनकों की धूल पूरे वातावरण में व्याप्त हो रही है। वातावरण में नमी नहीं है तो यह धूल घण्टों हवा में तैरती रहती है।

खांसी, जुकाम और सांस लेने की समस्या – जो मूलत: पुआल और इस साल के अचानक अत्यंत सूखे मौसम की देन है – मैं महीने भर से परेशान हूं। सोचा था कि इस साल बारिश देर से हुई है। कुआर और कार्तिक के महीने में भी बारिश होती गयी। उससे वातावरण में नमी रहेगी और कोहरा जल्दी तथा घना होगा। पर शुष्क वातावरण के कारण कोहरा तो नजर ही नहीं आता। सवेरे ओस भी मामूली सी होती है जो घण्टे भर की सवेरे की धूप में गायब हो जाती है।

बड़ा ही सड़ल्ला सा मौसम है। जिसे देखो, वही खांस रहा है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने कम सड़ल्ला नहीं है यहां मौसम। पूरा भारत अभिशप्त है। कोई आश्चर्य नहीं कि वायरमेण्टल परफार्मेंस इण्डेक्स में भारत देश दुनिया के सभी 180 देशों में फिसड्डी है – एक सौ अस्सीवें स्थान पर है। कोई मीडिया वाला इसकी बात नहीं करता!

एयर क्वालिटी इण्डेक्स में पूरा भारत कमोबेश दयनीय दशा में है।

ऐसा नहीं है कि पूरी दुनियाँ में आबो-हवा खराब हुई हो। मैंने जोआन नोरबर्ग की पुस्तक प्रोग्ररेस के सार संक्षेप में निम्न प्रसंग पढ़ा –

Rapid industrialization harmed the natural environment. But there have been significant improvements in recent decades.

Take London. In the 1950s, it suffered from what was called the “Great Smog” at the time. Locals burned huge amounts of coal to keep the cold at bay in winter. The smoke, combined with industrial emissions, created a cloud of smog that engulfed the city. Around 12,000 people died as a result.

For three centuries, all the way up to the 1970s, the city’s pollution rose. But after that, it decreased sharply and returned to pre-industrial levels, due, in large part, to the development of cleaner technologies. Emissions of sulfur dioxide, the toxic compound in smog, have fallen by 94 percent since the 1970s.

But it’s not just the United Kingdom that’s seen improvements. Worldwide, 172 out of 178 countries made progress between 2004 and 2014 according to the Environmental Progress Index.

उक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि दुनियाँ के लगभग सभी देशों ने अपनी आबो हवा में सुधार के प्रयास किये हैं और उनकी दशा बेहतर हुई है। यह तो भारत है, जहाँ स्वच्छता के व्यापक अभियान के बावजूद Environmental Progress Index में भारत सबसे निचले पायदान पर बना हुआ है।

अब सुना है केजरीवाल जी दिल्ली में कूड़े के पहाड़ और यमुना का पानी साफ करेंगे। उन जैसे विज्ञापनवीर से कोई उम्मीद तो नहीं, पर देखें कि वे दिल्ली को लंदन बना पाते हैं क्या?


यह देखा जाये कस्बे की सफाई का नमूना। मैंने अपनी साइकिल दूर रोक ली। सड़क किनारे झाड़ू लगा कर सफाई कर्मी ने कूड़े में आग लगा दी थी। जो जल रहा था उसमें ज्यादातर प्लास्टिक और रबर था। उससे ढेर सा काला धुआं निकल रहा था और दुर्गंध भी थी। मैं आगे जा ही नहीं पाया। वापस लौट लिया घर को। … यह रोज की कहानी है। सफाई करने का अर्थ यहां प्लास्टिक का प्रयोग कम करना नहीं, प्लास्टिक को जलाना ही है। 😦


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

3 thoughts on “पूस, पुआल और पराली और आबो हवा पर फुटकर विचार

  1. पांडे जी कूड़ा करकट तो हम आप सभी फैलाते है/मोदी जी ने देश को सफाई का मंत्र दिया था आठ साल पहले और हम आप है की अभी तक सुधरे ही नहीं/बताइए दोष किसका है ?

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