धूप सेंकते हुये इचिगो इची

बहुत दिनों बाद जुकाम काबू में आया था। बहुत दिन बाद धूप में लेटना, तीखी धूप होने के बावजूद भी, अच्छा लग रहा था। मोबाइल या टैब पर धूप में पढ़ना अच्छा अनुभव नहीं होता। सो मैं ऑडीबल पर हिंदी में इचिगो इची सुन रहा था। सुनते हुये अमेजन पर चक्कर भी लगा आया था कि किताब खरीदी जाये या नहीं, और खरीदी जाये तो हिंदी में या अंग्रेजी में। ऑडीबल पर तो मैम्बरशिप होने के कारण फ्री में सुनने को मिल रही थी।

आधी से ज्यादा सुनने के बाद पुस्तक अच्छी तो लगी पर यह तय किया कि पुस्तक कहीं से मुफ्त में मिल जाये या पुस्तक का सार संक्षेप ब्लिंकिस्ट पर मिल जाये तो खरीदने से बचा जा सकता है।

मैं उस पुस्तक के दूसरे भाग को सुन रहा था जिसमें सुनने, देखने, स्पर्श, स्वाद, गंध और एकाग्रता के साथ प्रयोग करने की बातें हो रही थीं। इस बीच अरुणा (नौकरानी) चाय दे कर गयी। चाय और नमकीन पर बिना ध्यान दिये, सुनने में तल्लीन मैं चाय पीता जा रहा था। अचानक ध्यान आया कि मुझे इस क्षण में एकाग्रता का प्रयोग करना चाहिये।

इस बीच अरुणा (नौकरानी) चाय दे कर गयी। चाय और नमकीन पर बिना ध्यान दिये, सुनने में तल्लीन मैं चाय पीता जा रहा था। अचानक ध्यान आया कि मुझे इस क्षण में एकाग्रता का प्रयोग करना चाहिये।

ऑडीबल सुनने को पॉज दे कर मैंने अपनी आंखें बंद कीं। चाय का मग एक हाथ से लिया और दूसरे से एक एक टुकड़ा नमकीन खाने लगा। सेव के टुकड़ों के आकार को अनुभव करता गया। मुंह में नमकीन की कुरकुराहट महसूस की। नमकीन घर में बनी थी, सो मालुम था कि उसमें अच्छी गुणवत्ता का बेसन, दो छोटे मसले हुये आलू, मूंगफली का तेल और सेंधा नमक था। उसके अलावा और कोई मसाला नहीं। आलू के कारण मनमाफिक कुरकुराहट थी। आंख बंद कर स्पर्श और स्वाद लेते हुये वह ज्यादा ही महसूस हो रही थी। सूंघने पर (जुकाम कुछ ठीक होने पर गंध महसूस होने में ज्यादा दिक्कत नहीं थी) यह भी लग रहा था कि तेल की क्वालिटी भी उत्तम है। चाय में भी काली मिर्च, दालचीनी और इलायची-सोंठ का स्वाद जो पहले आधा कप खत्म करते हुये नहीं ध्यान दिया था, अब पता चल रहा था और अच्छा लग रहा था।

हजारा की छोटी झाड़ी पर फल लदे थे और वे हरे से रंग बदल कर सुनहरे हो रहे थे।

चाय खत्म होने के बाद मैंने आंखें खोलीं। आसपास जो भी था उसे एक नये कोण से देखा। हजारा की छोटी झाड़ी पर फल लदे थे और वे हरे से रंग बदल कर सुनहरे हो रहे थे। बदाम के पत्ते भी हरे से लाल हो रहे थे। किसम किसम के फूलों की गंध भी मैंने सूंघी। उन गंधों को नाम तो नहीं दे सकता पर आंख बंद होने पर वे फूल सामने लाये जायें तो (लगभग) बता सकता हूं कि कौन सा फूल है।

घर परिसर में वनस्पति और जीव, रंग और गंध, समय के साथ उनकी वृद्धि और बदलाव – कितना कुछ है जिसे देखा-महसूसा जा सकता है। उसके लिये इन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं कि यह हिंदू जीवन धारा है या बौद्ध-जेन। यह भी जरूरी नहीं कि उनका सम्बंध जीवन-मृत्यु, शाश्वतता या नश्वरता से जोड़ने तोड़ने का उपक्रम किया जाये। कोई यह फलसफा भी ठेलने की जरूरत नहीं कि हम भूत-वर्तमान-भविष्य के किस हिस्से में जी रहे हैं। इचिगो इची आपकी अनुभूति धारा ट्रिगर कर सकती है; पर जरूरी नहीं कि आप उस धारा में बह निकलें। बह गये तो आप किताब खरीद लेंगे और शायद कभी पढ़ेंगे नहीं।

तबीयत ठीक हो जाये; मौसम की धूल हवा से गायब हो जाये; अस्थमा का अहसास जाता रहे; तब किताब पढ़ना, धूप सेंकना, तितली, फलों, फूलों को निहारना अच्छा लगने लगे। तब शायद और भी आनंद आ जाये।

फिलहाल जो अनुभूति हुई, वह ऊपर लिख डाली है। …. आज एक किताब और खत्म की – इचिगो इची!


इकीगाई, इचिगो इची और खांची भर बौद्ध-जेन टाइप की ‘बेस्ट-सेलर’ पुस्तकों का जमाना है। उनमें जो कुछ है, वह हमें अपने ग्रंथों – रामायण, महाभारत, पंचतंत्र, चाणक्य नीति आदि में प्रचुर मिलता है। पर वाया पश्चिम, जहां कोई स्टीव जॉब्स सिर मुंड़ा कर गेरुआ चोला पहन लेता है और कोई डान बटनर ओकीनावा में सैकड़ा पार लोगों की कॉलोनी खोज लेता है; यह सब ज्ञान हमें री-पैकेज्ड मिल रहा है। कोई खराबी नहीं। ये पुस्तकें लिखने में लिखने वाले सज्जनों ने मेहनत खूब की है। पर वैसी ही मेहनत भारतीयों को अपने यहां उपलब्ध सामग्री और जीवन पद्धति के आधार पर भी करनी चाहिये। ऐसा मेरा सोचना है। आखिर अर्जुन भी विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बना था जब अंधेरे में उसने देखा था कि उसके हाथ भोजन को बिना यत्न मुंह तक ले जा रहे हैं। सारा ज्ञान यहां से चला और वाया जापान हमें बेस्टसेलर के रूप में मिल रहा है! :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “धूप सेंकते हुये इचिगो इची

  1. नमस्कार श्रीमानजी, इचिगो इची दैनिक जीवन में प्रयोग करने की कोशिश करूंगा। अच्छा लगा आपका तीनों बकाया पोस्ट पढ़ कर।

    Liked by 1 person

    1. बहुत धन्यवाद कि आपने ब्लॉग पोस्ट पढ़ी. सुकून हुआ कि आप जैसे लोग मेरे कहे लिखे को अहमियत देते हैं. जय हो 🙏🏼

      Like

Leave a reply to Gyan Dutt Pandey Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started