टूथपेस्ट की ट्यूब कस कर भिन्न भिन्न प्रकार से पिचकाने और उसे लपेट कर उसका पेस्ट मुंह की ओर धकेलने के बावजूद भी तन्नी भर पेस्ट निकला। अब इसे फैंकना ही होगा। मेरा शुरुआती आकलन था कि शायद खींचतान कर यह महीना और साल (सन 2022) पार लगा दे यह पेस्ट की ट्यूब, पर अभी इग्यारह दिन बचे हैं और नई वाली अंवासनी होगी कल से।
मेरी पत्नीजी को यह सब चिरकुटई लिखना फूटा नहीं सुहाता। मेरी ऐसी पोस्टों को वे प्री-पोस्टिंग आकलन में दस में से छ नम्बर से ज्यादा कभी नहीं देतीं। इस ब्लॉग पोस्ट का भी वही हाल होने जा रहा है। पक्का! 😆
ट्यूब की बात छिड़ी तो मुझे अपनी ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर की पोस्ट याद हो आई – आप अपनी ट्यूब कैसे फुल रखते हैं, जी? यह सन 2008 में लिखी थी और तब खूब लिखता था मैं। सवा-डेढ़ साल में वह पांच सौवींं पोस्ट थी। तब लगता था कि जितना लिखना था, उतना मैने लिख दिया है और लिखने का मसाला ही नहीं बचा है और “ट्यूब खाली हो गयी है”।
उस पोस्ट पर आलोक पुराणिक की एक टिप्पणी को प्रस्तुत करना चाहूंगा –
ट्यूब फुल कैसे रखें-इस विषय पर तो आप जवाब देने के अधिकारी हैं, और खुदै ही पूछ रहे हैं कि फुल कैसे रखें। जिंदगी पर नजर रखिये, फिर तो एक ट्यूब नहीं बहुत सारी ट्यूब रखनी पडेंगी। ब्लागिंग भी दुनिया का ही एक रुप है। एक से एक अच्छे, सच्चे, फ्राड, लफ्फाज, ठेलू, झेलू, टाइप हैं यहां। दुनिया से कोई शिकायत ना हो, तो फिर ब्लाग जगत से शिकायत नहीं हो सकती। जमाये रहियेजी। पारिवारिक शांति के लिए ब्लागिंग बहुत जरुरी है।
सही कहा उन्होने कि पारिवारिक शांति के लिये ब्लॉगिंग बहुत जरूरी है। नियमित लेखन और उसे ब्लॉग/माइक्रोब्लॉग पर ठेलन अगर आपको मोबाइल से चिपकने वाला रोग नहीं देता और दुनियाँ देखने, लिखने पढ़ने को प्रेरित करता है तो उससे बढ़िया और कुछ नहीं।
अब इस ब्लॉग पर 1863 पोस्टें हो चुकी हैं और मसाला? उसकी तो लगता है गांवदेहात के एकांत में रहने के बावजूद भी कोई कमी नहीं। 🙂
कल मॉन्क (अर्चना वर्मा) जी ने एक चेताने वाली टिप्पणी की ट्विटर पर –
खैर, उनका कहा मन में असर कर गया। सोशल मीडिया की उपेक्षा जरूरत से ज्यादा होने पर खुद अपने मन में एक रीतापन आने लगता है। अभिव्यक्ति एक इण्ट्रोवर्ट की भी जरूरत होती है!

अब खाली ट्यूब के साथ जोड़ीदार टूथ ब्रश की बात कर ली जाये। मेरा अच्छी क्वालिटी का टूथब्रश था और अभी उसके ब्रश सीधे थे; फ्लॉवर नहीं हुये थे। चार पांच महीने और चलता, कम से कम। मेरी पत्नीजी दूसरे ट्वॉयलेट के वाशबेसिन के नल में जमा लवण को झाड़ने के लिये नौकरानी से पुराना ब्रश मंगा रही थीं और वह मेरा इस्तेमाल किया जा रहा टूथब्रश उठा कर ले गयी। सिंक का नल थो साफ हो गया पर उसके बाद उस ब्रश को इस्तेमाल करने को मन नहीं माना। इस लिये स्पेयर ब्रश दिख रहा है चित्र में जिसपर खाली ट्यूब का अंतिम टूथपेस्ट लगा है। … किसी होटल में ठहरा था अपनी बिटिया का मेहमान बन कर। उसी होटल में बाथरूम में जो टिलिर-पिलिर टूथब्रश, पेस्ट, साबुन और शेम्पू आदि रखा जाता है; उसी का लिया ब्रश है!
खाली ट्यूब और फ्री वाला टूथब्रश! आज उसी से दांत साफ किये गये। विलायती लोग मिनिमलिज्म पर शानदार चीजें दिखाते लिखते हैं। उनका मिनिमलिज्म वास्तव में फ्रूगेलिटी – मितव्ययता – से प्रेरित नहीं होता। उनके चित्रों के पदार्थ भी मंहगे प्रतीत होते हैं। एक प्रकार का फैशनेबल मिनिमलिस्ट उपभोक्तावाद दिखता है उनमें। सही मिनिमलिज्म तो यही है – खाली ट्यूब का अंतिम कस निकालने और होटल में फ्री में पाये सस्ते टूथब्रश का उपयोग!
उम्र के साथ जबड़ों के आकार प्रकार में बदलाव आता है। दांतों के खुरदरेपन से चीक-बाइट की समस्यायें यदा कदा होती हैं। सामान्य आकार के टूथब्रश पिचकते गालों में सरलता से नहीं चलते। मैंने पाया कि होटल वाला यह सस्ता छोटे आकार का टूथब्रश कहीं बेहतर है प्रयोग के लिये। इसके ब्रश वाले बाल जरूर कुछ कड़े हैं पर समय के साथ शायद ठीक हो जायें। आगे अगर खरीदना भी हो तो मैं इसी तरह के छोटे आकार के सॉफ्ट ब्रिस्टल वाले ब्रश को तरजीह दूंगा।
चित्र में एक भूरे रंग की शीशी भी दिख रही है। वह भी अब दांतों को साफ करने के अनुष्ठान का अंग है। उसमें पीयूष वर्मा जी का भेजा दांतों का तेल है, जिसको दांतों और मसूड़ों पर मैं पहले मलता हूं और फिर दांतों को ब्रश करता हूं। उसका जिक्र मैंने कुछ दिनों पहले की पोस्ट – पीयूष वर्मा के तैलीय औषध पर फीडबैक – में किया हुआ है।
कल नयी ट्यूब इस्तेमाल होगी। पीयूष जी का दांतों का तेल अभी भी है, और उन्होने अपना स्नेह व्यक्त करते हुये एक खेप और भी भेज दी है दांतों तथा जोड़ों की मालिश के तेलों की। मेरे दांत पहले से बेहतर हैं। इस साल की सर्दी में अभी तक ठण्डा-गरम भोजन दांतों को लगा नहीं। जोड़ों के दर्द में भी राहत है। मैं अब नित्य 4500 कदम से ज्यादा चल रहा हूं, ब्रिस्क वॉक करते हुये।
एक मिनिमलिस्ट तरह से जीते हुये गांवदेहात में रहते ब्लॉगर की सुबह का कथ्य है यह। वह ब्लॉगर जिसकी ट्यूब अभी खाली नहीं हुई। ट्यूब में पंचर लगवाने की भी जरूरत अभी नहीं पड़ी।
यह 1864वीं पोस्ट है। देखता हूं दो हजार पोस्टें होने में कितने महीने और लगेंगे! 🙂
“उसमें पीयूष वर्मा जी का भेजा दांतों का तेल है, जिसको दांतों और मसूड़ों पर मैं पहले मलता हूं और फिर दांतों को ब्रश करता हूं।”
यदि आप पर्याप्त समय लेकर – पंद्रह-बीस मिनट बाद ब्रश करते हैं तो ठीक है, अन्यथा यह क्रम उलट दें। वर्मा जी ने ब्रश करने के बाद दांतों में तेल लगाने की सलाह दी है। सुबह-शाम दोनों बार।
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मैं हल्का ब्रश कर तेल मालिश करता हूँ मसूड़ों पर. फिर पूरी तरह से ब्रश करीब 5 से 10 मिनट बाद करता हूँ.
दिन में एक बार. सवेरे.
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बहुत सुंदर।
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