बगल के घर के बाहर कुछ बच्चे घर बना रहे थे। मैं उन्हें पहचानता हूं। उनमें से वे बच्चे हैं जिन्हें सागौन के सूखे पत्ते बीनते देखा था। अब वे दो कमरे बना चुके हैं। कुछ दूर हट कर एक और कमरा बना है। शायद वह शौचालय हो।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
बगल के घर के बाहर कुछ बच्चे घर बना रहे थे। मैं उन्हें पहचानता हूं। उनमें से वे बच्चे हैं जिन्हें सागौन के सूखे पत्ते बीनते देखा था। अब वे दो कमरे बना चुके हैं। कुछ दूर हट कर एक और कमरा बना है। शायद वह शौचालय हो।