बारा से बक्सर

5 मार्च 23

सवेरे साढ़े छ बजे मैंने ही फोन कर लिया प्रेमसागर को। उस समय यात्रा के लिये प्रस्थान नहीं किया था। तेजू सिंह बिंद – मंदिर के रखवाले – चाय बना लाये थे। प्रेमसागर चाय पी रहे थे। पुजारी – राजकुमार जी ने बिना चाय पिये जाने नहीं दिया।

प्रेमसागर की बहुत खातिरदारी की उन लोगों ने उस शिव मंदिर में। तेजू जी की राशन की दुकान और आटा चक्की भी है, पास में। उन्होने रात में महराज जी (प्रेमसागर) को भोजन भी बना कर कराया और मच्छरों से बचाव के लिये गुडनाइट क्वाइल भी लाये। दो क्वाइल लगा कर आराम से सोये प्रेमसागर।

शिवाला के बगल में ही पीपा का पुल था, पर वह चालू नहीं था।

शिवाला के बगल में ही पीपा का पुल था, पर वह चालू नहीं था। पिछले साल चालू हुआ पहली बार पर फिर सात पॉण्टून पीपों में लीकेज हो गया। बदलने के लिये नये पीपे आ गये हैं और मरम्मत का काम चल रहा है। पता नहीं कब तक पीपे का पुल चालू होगा। गंगा दशहरा के बाद तो उजड़ने ही लगते हैं पीपे के पुल। अब अगर चालू भी हो गया तो दो-ढाई महीना ही काम करेगा।

चाय पीने के बाद राजकुमार जी और तेजू सिंह प्रेमसागर को घाट तक छोड़ने आये। दोनो बिंद हैं – केवट। नाव वाले को उन्होने सहेज दिया – ये हमारे गुरू महराज हैं। ठीक से ले जाना। वे नाव वाले को प्रेमसागर के किराये के लिये पैसा देने लगे तो कई मुस्लिम खेतिहर मजदूर जो उसपार खेती के लिये जा रहे थे, ने कहा कि बाबा जी इस इलाके के मेहमान हैं। उनसे आप कैसे पैसा ले सकते हैं? उन मुस्लिम ग्रामीणों के कहने पर प्रेमसागर बिना किराया दिये गंगा पार किये।

गंगा तट पर विदा लेते समय प्रेमसागर, राजकुमार जी और तेजू सिंह बिंद।

“भईया मुझे तो थोड़ा अटपटा लग रहा था। वे अपने साथ कुदाली, फरसा लिये थे। पर वे बड़ी अदब से मुझे घाट से बीरपुर तक छोड़ने आये।”

जो चित्र भेजे, उसके अनुसार डीजल इंजन से चलने वाली बड़ी नाव थी। दो-तीन दर्जन लोग चढ़े होंगे उसपर। दो साइकिलें भी लादी गयी थीं। मोटर बोट थी तो पांच-सात मिनट में प्रेमसागर नदी के इस दक्षिणी किनारे से उत्तरी किनारे लग चुके थे।

नदी का पानी साफ था। इतना साफ कि निर्मल कहा जाये। वातावरण और गंगाजी की विशाल जलराशि देख आनंद आ गया सवेरे सवेरे। उस पार पक्का घाट था। कई सीढ़ियां थीं। एक मंदिर भी था। प्रेमसागर उतर कर एक पगडण्डी पकड़ आगे चलने लगे। आगे एक डेढ़ किलोमीटर पर कर्मनासा नदी के दक्षिणी किनारे पर आ कर मिलती हैं। कर्मनासा के दक्षिणी किनारे पर होने वाले संगम के पहले ही प्रेमसागर उत्तरी किनारे पर आ चुके थे। गंगा पार करने का ध्येय यही था।

डीजल इंजन से चलने वाली बड़ी नाव थी। दो-तीन दर्जन लोग चढ़े होंगे उसपर। दो साइकिलें भी लादी गयी थीं।

मिथक है कि महर्षि विश्वामित्र और इंद्र के बीच की टक्कर में बेचारे त्रिशंकु लटक गये आसमान में उलटे। उनकी लार गिरने से बनी कर्मनासा। कैमूर की पहाड़ी से निकली यह छोटी नदी, जिसमें लगभग हमेशा पानी रहता है, 192 किमी लम्बी है। यह नदी कर्म का नाश करने वाली मानी जाती है। भयंकर अशुभ। पर इस नदी के किनारे कम से कम सौ गांव होंगे – उत्तर प्रदेश और बिहार में। उनके लोग इस नदी के जल को क्या समझते हैं? मैंने गूगल मैप पर लोगों की इस नदी पर रेटिंग देखी।

करीब तीन हजार लोगों ने इसे 4.0/5 की रेटिंग दी है। टिप्पणियों में भी ज्यादातर नदी के किनारे रहने वाले हैं जो इसके पानी को स्वच्छ बताते हैं। वे लोग इसका नित्य इस्तेमाल करते प्रतीत होते हैं। पर ‘त्रिशंकु की लार’ की मिथकीय कथा के कारण इस नदी की बड़ी बेकद्री है। इसी के चक्कर में प्रेमसागर वाराणसी से गया जाने के लिये पचास किलोमीटर लम्बा मार्ग चुनना पड़ा। वे अपने कर्मों के पुण्य का नाश नहीं चाहते!

मेरे कहने पर कर्मनासा में गंगा के संगम स्थल के उत्तरी किनारे से चित्र प्रेमसागर ने भेजे। चित्र में गंगाजी की विशाल जलराशि दीखती है पर कर्मनासा नजर नहीं आती। गंगा नदी के पीछे जहां जमीन नहीं दीखती, वहीं कर्मनासा के गंगा में मिलने का आभास मिलता है। उसके आगे भी गंगा का जल वैसा ही साफ है जैसा कर्मनासा के मिलने के पहले था। सब नदी-नाले गंगा में मिल कर गंगा ही बन जाते हैं!

गंगा नदी के पीछे जहां जमीन नहीं दीखती, वहीं कर्मनासा के गंगा में मिलने का आभास मिलता है।

बीरपुर से चार पांच किमी चल कर चाकछूटी में पुल के रास्ते गंगा पार कर प्रेमसागर को बिहार के बक्सर जिले में प्रवेश करने के लिये मैंने कहा था, पर कर्मनासा के आगे ज्यादा देर प्रतीक्षा नहीं की उन्होने। एक साधारण सी पतवार वाली नाव में बीस रुपया किराया दे कर कर्मनासा-संगम के एक किमी आगे उन्होने गंगा पार कर ली। नाव पर दो ही व्यक्ति थे – नाव वाला और प्रेमसागर।

नाव वाला अपना चित्र नहीं लेने दे रहा था तो प्रेमसागर ने अपनी सेल्फी लेने के बहाने उसे चित्र में ले ही लिया। चित्र ले सकने में यह उनकी सिद्धहस्तता ही मानी जायेगी।

नाव वाला अपना चित्र नहीं लेने दे रहा था तो प्रेमसागर ने अपनी सेल्फी लेने के बहाने उसे चित्र में ले ही लिया।

बीस रुपया किराया दे कर प्रेमसागर को बिहार में प्रवेश मिला। “भईया, नदी का जल बहुत ही साफ था। मछलियाँ भी बड़ी बड़ी थीं। पानी से उछलतीं और चित्र लेने की कोशिश करते करते फिर पानी में चली जा रही थीं।”

बड़ी और पानी के बाहर उछलने वाली मछलियाँ? मुझे लगा कि वे सोंईस होंगी। गांगेय डॉल्फिन। जब मैंने पूछा तो प्रेमसागर ने बताया कि नाव वाला भी यही कह रहा था। उसके अनुसार ये मछलियां कभी कभी नदी किनारे बैठी भी दीखती हैं।

मीठे पानी की गांगेय डॉल्फिन बड़ी संख्या में हैं – यह सुन कर मुझे अपार हर्ष हुआ। प्रेमसागर की कर्मनासा समस्या खत्म हो जाने से कहीं ज्यादा खुशी। बस ऐसे ही गंगा का जल निर्मल होता जाये। सोंईस की बड़ी आबादी मैंने अपने बचपन में ही देखी थी। अब साठ साल बाद उनकी गंगाजी में होने की बात मन प्रसन्न कर गयी। मैं डॉल्फिन को ले कर प्रसन्न था और प्रेमसागर चैन की सांस ले रहे थे – “अब करमनासा का झंझट खतम!” अपनी अपनी खुशी के अपने अपने कारण! :-)

बक्सर जिले में उसपार प्रेमसागर ने बताया कि गूगल मैप 11 किलोमीटर की दूरी बता रहा है बक्सर शहर की। उसके बाद लगता है उनकी उत्फुल्लता बढ़ गयी हो। पर वे धीरे चले। पांच घण्टे बाद बक्सर पंहुचे। चाय पानी के लिये लगता है कई जगह रुके।

बक्सर में वे किसी लक्ष्मण जानकी मंदिर में रुके पर वहां की व्यवस्था जमी नहीं। उसके बाद शाम सात बजे बताया कि उनको अयोध्या के किसी पल्टुआ अखाड़े के रामसुमिर दास जी ने शिवशक्ति धर्मशाला में इंतजाम कर दिया है। फिर धर्मशाला के मंजीत जी का भी फोन आया। “यहां सब व्यवस्था है”।

शिवशक्ति धर्मशाला के कमरे का चित्र भेजा प्रेमसागर ने। कल वे बारा के शिव मंदिर में फर्श पर तिरपाल बिछा कर रहे थे। मंदिर में भोजन और एक छत मिल गयी थी रात्रि विश्राम के लिये; वही बहुत आनंददायक था। यहां शिवशक्ति धर्मशाला में डबल बेड और एयरकण्डीशनर भी दिख रहा है। घुमक्कड़ी यात्रा का यही सरप्राइज एलीमेण्ट है। कभी पीपल की छाया, कभी मंदिर की छत, कभी किसी के घर का ओसारा और कभी वातानुकूलित कमरा। क्या पता कभी वह दिन भी आये जब महादेव उन्हें फाइव स्टार होटल की सुविधा भी दिखा दें! … मैं यह यात्रा विवरण लिखने के लिये मेहनत क्यों कर रहा हूं? शायद यह सरप्राइज एलीमेण्ट ही आकर्षित करता है।

प्रेमसागर के साथ शिवशक्ति धर्मशाला के मनजीत जी और प्रेमसागर को मिला कमरा।

शिवशक्ति धर्मशाला में रात गुजार कर कल सवेरे प्रेमसागर गया के लिये निकलेंगे। पचीस तीस किमी चलने का विचार है। आगे के बारे में बार बार वे कहते हैं – “भईया महादेव देखेंगे। माई देखेंगी। हमें तो बस चलना है।”

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “बारा से बक्सर

  1. Very nice work done by you Prem Sagar ji 🙏 i am proud of you,,,,,bhuli bisri jankari ko logo ke beech padyatra kr shi jankari dene ka shub kary krne ke liye bahut bahut badhai aur shubhkamnaye,,,, dhanyawad

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    1. धन्यवाद नीलेश जी इस निमंत्रण के लिए. मैंने सिवान, सारण, छपरा और गोपालगंज देखा है – मेरे रेल मंडल में था. शेष बिहार अभी प्रेम सागर जी दिखा रहे हैं. देखें कब खुद जाने का अवसर आता है.

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  2. विजय कुमार प्रजापति, फेसबुक पेज पर –
    सर हमारे यहां तो नहर में आ गयी थी ।जनवरी में।………मारे भीड़ के सगियान ,मेहरारू,लरिका,बुढ़ान सब ठेल पड़ा रहेन😳

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  3. शेखर व्यास. फेसबुक पेज पर –
    प्रेम बाबू के बहाने पर्यावरणीय चिंतन…….कुछ बरस पहले पन्ना खजुराहों भ्रमण के दौरान पेंच नदी में मगरमच्छ और घड़ियाल पालन देखा था ,मार्गदर्शक कह रहे थे कि इस हेतु अति शुद्ध जल की स्थायी आवश्यकता होती है , उस जल शुद्धता के बाद गंगा जल की शुद्धता की खबर कुछ प्रयत्नों के परिणाम के प्रति आश्वस्त करती लगती है । ये आभासी है या पर्याप्त परिणामी…समय बताएगा ।

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