वाराही, विशालाक्षी, विश्वनाथ और वाराणसी


किसी ने उन्हें सूचना दी कि वाराही माता का मंदिर सवेरे तीन से पांच बजे ही खुलता है। सो प्रेमसागर लगता है सोये ही नहीं। दो बजे रात में उठ कर जब मंदिर पर पंहुचे तो पता चला कि मंदिर सवेरे साढ़े सात से साढ़े नौ बजे तक खुलता है।

शक्तिपीठ पदयात्रा में प्रयाग-विंध्याचल-वाराणसी


पीछे कांधे पर लेने वाला यह पिट्ठू बैग और एक दहिमन की लकड़ी की डण्डी – यही उनका सामान है। कपड़े न्यूनतम हैं। अपनी पोटली में उन्होने सोठउरा, तिल, गुड़ और गोंद का लड्डू और कुछ सूखे मेवे रखे थे। वह मुझे दिखाये भी और चखाये भी।

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