दक्षिणेश्वर से भ्रामरी मेलाई चण्डी शक्तिपीठ

01 अप्रेल 23

जहां पूछो, वहीं बारिश हो रही है। बे मौसम की बारिश है। कहीं यह स्वागत योग्य होगी, पर ज्यादातर यह खेती किसानी पर तनाव का कारण है। प्रेमसागर की यात्रा के लिये यह स्वागत योग्य भी है और कठिनाई भी उपजा रही है।

सवेरे उन्होने बताया – बारिश है, मौसम ठण्डा है तो सड़क तप नहीं रही। उमस भी नहीं है। कभी कभी बारिश से रुकना पड़ रहा है।

मौसम ठण्डा होने से तेज तेज चल ले रहे हैं प्रेमसागर। आज अपना सामान रमाशंकर जी के यहां ही रख छोड़ा है। थोड़े सामान के साथ चलना हो रहा है। सात घण्टे में वे पैंतालीस किलोमीटर चल कर आम्टा/भ्रामरी शक्तिपीठ पंहुच गये।

दोपहर एक बजे के पहले उन्होने भ्रामरी शक्तिपीठ के दर्शन कर लिये। इस स्थान को मेलाई चण्डी शक्तिपीठ भी कहा जाता है। मांं महाकाली के वपु को समर्पित शक्तिपीठ। हावड़ा जिले के उलुबेरिया तहसील में आम्टा जगह है। वहां है यह मंदिर। वैसे भ्रामरी देवी के नाम से एक अन्य शक्तिपीठ जलपाईगुड़ी में भी है। गीताप्रेस की शक्तिपीठ दर्शन पुस्तक में इस स्थान का नहीं, जलपाईगुड़ी के त्रिस्त्रोता का जिक्र है।

भ्रामरी देवी के नाम से एक अन्य शक्तिपीठ जलपाईगुड़ी में भी है। गीताप्रेस की शक्तिपीठ दर्शन पुस्तक में इस स्थान का नहीं, जलपाईगुड़ी के त्रिस्त्रोता का जिक्र है।

प्रेमसागर तो मगन हो कर चल रहे हैं। उनके शक्तिपीठ दर्शन के प्रेरक विद्वत गण भी पूछ खबर नहीं रखते प्रतीत होते। प्रेमसागर मुझसे पूछते हैं शक्तिपीठों की भौगोलिक स्थिति। और मुझे उनकी इस पदयात्रा के पहले शक्तिपीठों से कुछ खास लेना देना नहीं था। मैं इन जगहों को पशु बलि से जोड़ कर देखता था। माता का केवल महासरस्वती वाला वपु ही मुझे लुभाता रहा है। पर अब प्रेमसागर के चक्कर में मैं पुस्तकों और वेबसाइटों को छान रहा हूं।

गांवदेहात में एक कहावत है – तेली क बरदा कोहांइन लई क सती होइ। तेली गांव के बाहर गया तो अपने बैल की देखभाल के लिये पड़ोसी कुम्हार को सहेज गया। बैल बीमार पड़ा तो उसकी देख रेख, दवा दारू का जिम्मा कुम्हार की पत्नी के जिम्मे आया। मेरी पत्नीजी कहती हैं कि मेरी दशा कुछ कुछ उस कुम्हार की पत्नी की तरह है! :lol:

एक एक शक्तिपीठ दो दो स्थानों पर होने के कई उदाहरण हैं। पड़ोस के रत्नावली शक्तिपीठ जो हुगली जिला में है और जिसके प्रेमसागर कल दर्शन करेंगे, वह इस जगह की बजाय चेन्नै में बताया जाता है। वह स्थान जहां माई का हार गिरा था, वह मैहर में भी है और सईंथिया के नंदिकेश्वरी में भी। शक्तिपीठों का कोई मानक नहीं है। अष्टादस शक्तिपीठों की चर्चा भी की जाये तो उसमें से एक शक्तिपीठ – शृन्खला देवी – अब है ही नहीं। वहां बेचारे प्रेमसागर गये तो उग्र विधर्मी भीड़ ने उन्हें लखेद लिया। उस शक्तिपीठ की जगह अब एक मीनार है।

ज्योतिर्लिंगों के पुनरुद्धार के लिये तो अहिल्याबाई होलकर (और अब नरेंद्र दामोदरदास मोदी) आगे आये। पर शक्तिपीठों की सुध लेने वाले कोई नहीं हैं। जनता अपने स्तर पर जो कर रही है, वही भर है।

मेलाई चण्डी मंदिर बड़े परिसर में है पर वहां पंहुचने का रास्ता संकरा है।

शक्तिपीठों की पदयात्रा की भी कोई परम्परा नहीं है। प्रेमसागर अपनी तरफ से एक कोशिश कर रहे हैं। वह साधन विपन्नता की दशा में कब तक कितनी चलेगी; माई ही जानें।

अरिमित्र बसु

मेलाई चण्डी मंदिर बड़े परिसर में है पर वहां पंहुचने का रास्ता संकरा है। चार चक्का गाड़ी वहां तक नहीं जा सकती। मंदिर के परिसर में बैठने, घूमने की अच्छी व्यवस्था है। सब कुछ बढ़िया है। रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद और मां शारदा की वहां प्रतिमायें स्थापित हैं और उनके चित्र भी प्रेमसागर ने भेजे हैं।

पर इस मंदिर के आसपास रुकने की व्यवस्था प्रेमसागर को नहीं मिली। नेट पर मिली जानकारी के अनुसार सन 2011 में आम्टा की आबादी 16 हजार से अधिक थी। अब यह पच्चीस हजार से ज्यादा होगी। धार्मिक महत्व की जगह है पर कोई धर्मशाला, लॉज या होटल नहीं है।

एक स्थानीय युवक – अरिमित्र बसु ने रुकने की जगह तलाशने में प्रेमसागर की बहुत सहायता की। पर कहीं बात बनी नहीं। एक सज्जन तो किराये पर देने को तैयार भी हुये तो बोले कि एक महीने भर के लिये कमरा देते हैं। उससे कम पर दिया और कोई और ग्राहक आया तो वे क्या करेंगे?

भ्रामरी मेलाई चण्डी शक्तिपीठ


हार कर प्रेमसागर आम्टा से वापस दक्षिणेश्वर लौट आये। शाम लगभग चार बजे उनकी लोकेशन मुझे हुगली नदी के तट पर नजर आई। उन्हें रत्नावली और विभाष की यात्रा सम्पन्न कर लौटना था। यह लौटना जमा नहीं। लगता है कि बारिश के मौसम, कमरा देने के बारे में हुई हील-हुज्जत से उनका मन खट्टा हुआ होगा। उनके पास विकल्प था आगे बढ़ने और किसी और जगह रुकने की सम्भावना तलाशने का। पर दक्षिणेश्वर लौटना ही उन्हें ज्यादा सुविधाजनक लगा होगा।

रमाशंकर जी के यहां वे तीन दिन रुक चुके हैं। तीन दिन और रुकना उनको और उनके परिवार को कैसा लगेगा? मेरे विचार से, किसी के आतिथ्य को ज्यादा दिन खींचना ठीक नहीं है। लेकिन, शायद प्रेमसागर के पास विकल्प नहीं हैं। या शायद मैं किसी के घर रुकने में मेजबान को होने वाली असुविधाओं को ले कर ज्यादा ही सेंसिटिव हूं। यही हाइपर सेंसिटिविटी जिम्मेदार है कि मैं यात्रा पर निकलता नहीं!

बंगाल के मंदिर आगंतुक पदयात्री को रात बिताने को जगह नहीं देते; यह जानना अच्छा नहीं लगा। बंगाल में लोग किसी पदयात्री को अपने ओसारे में एक रात गुजारने को आमंत्रित नहीं करते, यह भी अजीब बात है। बंगला संस्कृति की उदात्तता की खूब बात होती है। पर वह शायद मात्र बांगला भाषियों के लिये ही है। बंगाल को भारत के सभी हिस्सों के लिये खुलना चाहिये।

अब कल प्रेमसागर कैसे यात्रा करते हैं और कहां जाते हैं, वह मुझे भी जानना है।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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