02 अप्रेल 2023
हुगली जिले में है रत्नावली शक्तिपीठ। गीताप्रेस वाली शक्तिपीठ दर्शन पुस्तक में यह शक्तिपीठ मद्रास के पास बताया गया है। स्थान अज्ञात। लिखा है कि यहां सती की देह का दक्षिण स्कंध गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी हैं और भैरव शिव।
अब, यहां, हुगली जिले के उबेदपुर-खानाकुल ब्लॉक में रत्नाकर नदी (जो अब प्राय नहीं ही है) तट पर इस स्थान को कई भक्त सही जगह मानते हैं। यहां एक नहीं, दो रत्नावली शक्तिपीठ मंदिर मिले प्रेमसागर को। एक पुराना और एक नया। एक ही देवी के दो मंदिर और दो विग्रह। बंगाल में बहुत खींचतान है माता के ऊपर अपना कब्जा करने की। 😆
खैर, रत्नावली शक्तिपीठ के पहले रास्ते की चर्चा कर ली जाये। पिछले दिन प्रेमसागर हावड़ा के आम्टा तहसील में मेलाई चण्डी भ्रामरी शक्तिपीठ तक पैदल आये थे। सो आज वहां तक बस से पंहुचे और आगे की पदयात्रा प्रारम्भ की। करीब घण्टा भर बाद उन्होने दामोदर पार की। वह नदी जिसे बंगाल का काल कहा जाता था; अब मंझले आकार की प्रतीत होती है। पानी है उनमें पर वैसा ही जितना कर्मनासा जैसी नदी में होता है।



दामोदर नदी
दामोदर का किनारा सुंदर था। पुल से पार किया प्रेमसागर ने। नदी में कुछ लोग नहाते दीख रहे थे। उससे ज्यादा कुछ नहीं। दामोदर के नाम से कुछ भय सा लगे – वैसा नहीं था।
दामोदर से ज्यादा रोचक था वह लकड़ी का पुल जिसे प्रेमसागर ने शॉर्टकट के चक्कर में पार किया। इसके पहले केतुग्राम में लकड़ी का पुल पार करते समय प्रेमसागर दोनो टखनों में मोच खा चुके हैं। उस कारण एक दिन सईंथिया मे मौचक लॉज में आराम करना पड़ा है और कमर में बांधने के लिये एक वेस्ट-बैण्ड खरीदना पड़ा है। पर सीखे नहीं उस एडवेंचर से। यह पुल तो और खड़खडिया था। लोगों ने खुद पानी के पतली सी धारा को पार करने के लिये बनाया था। “भईया डगमगा तो रहा था, पर किसी तरह पार हो लिये।”

रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं था। तीस किलोमीटर के आसपास। हरा भरा भी था। पानी भी और पगडण्डी भी। आनंद आया होगा प्रेमसागर को चलते हुये। शायद रुकते रुकते गये होंगे। वैसे यह नहीं बताया कि कितनी जगह रुक कर चाय पी। वैसे लगता है प्रेमसागर का चाय अनुष्ठान कुछ कम हो रहा है। शायद चाय की दुकानें कम मिल रही हैं रास्ते में।



रास्ता ज्यादा लम्बा नहीं था। तीस किलोमीटर के आसपास। हरा भरा भी था। पानी भी और पगडण्डी भी। आनंद आया होगा प्रेमसागर को चलते हुये।
रत्नावली मंदिर का स्थान घण्टेश्वर शिव मंदिर के नाम से दिखता है विकिपेडिया पर। यहां सती का नाम है कुमारी और भैरव हैं (बकौल प्रेमसागर, घण्टेश्वर)। दो मंदिर हैं यहां रत्नावली शक्तिपीठ के। नया मंदिर ज्यादा आकर्षक है और ज्यादा भक्तगण भी दिखे वहां। पुराना मंदिर जीर्णोद्धार के बावजूद पुराना है। उसपर एक पट्टिका भी लगी है जीर्णोद्धार कराने वालों की। दोनो मंदिरों के दर्शन करने के बाद प्रेमसागर दक्षिणेश्वर वापस लौटने के प्रबंधन में जुट गये। रात पौने नौ बजे वापस आये।
यात्रा के चित्रों का सौंदर्य खूब है। पर उस सौंदर्य को बुनने के लिये कथानक नहीं बनता। डियाकी – डिजिटल यात्रा कथानक लेखन – में लालित्य का अभाव मैं महसूस करता हूं। इस डियाक में चित्र हैं, पर पात्र, उनसे बातचीत, उनके सुख दुख, यात्रा के अनुभव के खट्टे-मीठे-तिक्त स्वाद उभर कर नहीं आ रहे।
रत्नावली शक्तिपीठ के चित्रों का स्लाइड शो।
किसका दोष है? प्रेमसागर तो रोज उठ कर चलने की धुन में चल ही दे रहे हैं। शायद कमी मेरी ओर से है। पहले की यात्राओं में मेरा खुद का भी उन इलाकों का अनुभव था। मैं यात्रा को सूंघ सकता था। बंगाल मेरे लिये अपरिचित है। जरूरत है किसी बंगाल में रहते व्यक्ति की जो अपने इनपुट्स दे सके। देखें, आगे कुछ होता है क्या। अभी करीब दो सप्ताह प्रेमसागर को बंगाल में गुजारने हैं। वह भी उत्तर बंगाल में जहां हरियाली है और सौंदर्य भरपूर है।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
