महराजगंज में सब्जी वाली दुकान की बगल में वह हंसमुख व्यक्ति दिखता है। कभी सब्जीवाला विकास सोनकर इधर उधर हो तो आवाज लगा कर बुला भी देता है। कुरता पायजामा पहने वह गुलाब है। गुलाब शर्मा।
एक दिन उसे दीवार को फेस करती कुर्सी पर बैठे किसी की हजामत बनाते देखा तो चित्र खींच लिया। ईंटालियन सैलून से एक स्टेप आगे की नाऊ की दुकान है वह। दीवार पर लगा एक मिरर और कुर्सी। साइड में चबूतरे जैसे टिन के संदूक पर रखे हजामत के सामान। बस। खुले आसमान तले सैलून।

गुलाब मेरे गांव का ही है। उसका लड़का हाईटेक सोलर पैनल लगाये दुकान में हेयर कटिंग करता है। उसपर मैंने सितम्बर 2021 में एक पोस्ट भी लिखी थी – प्रमोद सोलर नाऊ। एक पीढ़ी का अंतर है। प्रमोद हाईटेक है और गुलाब तकनीकी निरक्षर! काम दोनो का एक ही है। शायद गुलाब बेहतर नाऊ हो।
गुलाब ने बताया उसकी उम्र 60-62-64 कुछ भी हो सकती है। चौंसठ से ज्यादा नहीं होगी। पांच लड़के हैं। तीन यहीं आसपास काम करते हैं और दो दहिसर में हैं। काम पांचों नाई का ही करते हैं। दहिसर वाले किसी के सैलून में कारीगर हैं। “सब अलग अलग हैं। अपना अपना खा-कमा रहे हैं। मैं एक लड़के के साथ रहता हूं। उसकी पत्नी कुछ हाफ है और उसकी माली हालत कमजोर है। मेरे साथ रहने से उसको कुछ मदद हो जाती है।” – गुलाब ने बताया।
महराजगंज बाजार में उसकी दीवार-सैलून हाल ही की नहीं तीस साल से है। दो तीन जगहें बदली हैं अपनी दुकान लगाने के लिये। पर रहा यहीं पर ही है। दो लड़के बम्बई चले गये हैं पर जुड़े गांव से ही हैं। पुश्तैनी पेशा और गांव – दोनो उसकी पीढ़ी में चले और अगली पीढ़ी भी उसी पर चल रही है। कभी फिर बातचीत होगी तो पूछूंगा कि उनकी सोच और आर्थिक दशा में क्या अंतर आया है।

जातियां, काम धंधे, गांव की हाईरार्की – इन सब से मेरा पाला रोज रोज पड़ता है। कभी लगता है कि समाजशास्त्र का विधिवत अध्ययन कर लूं। एक दो साल उन्हीं पर पुस्तकें पढूं। शायद मेरी समझ और नजरिया सुधरे। शायद मेरे सोशल मीडिया कण्टेण्ट में निखार आये। … एक नया विषय पढ़ने के लिये मेरी उम्र अभी आड़े नहीं आयेगी, यह तो पक्का है।