आज सवेरे मड़ैयाँ डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर मूरत यादव और मिश्री पाल पहले से मौजूद थे। बेंच पर बैठे थे। मुझे देख कर मिश्री पाल ने पीछे से कुर्सी निकाली और रखने के लिये जगह बनाई।
मैं बैठा तो मूरत यादव ने कहा – “आज बीस भेड़ी बियानी हईं मिस्री पाल के।”

गड़रिये की बीस भेडों ने बच्चे जने हों, यह बड़ी खबर है। उतनी बड़ी कि टीसीएस अपने शेयर पर मोटा डिविडेण्ड एनाउंस करे! मैंने मिश्री पाल को बधाई दी और मिठाई की मांग की। बधाई उन्होने सहर्ष स्वीकार की और मिठाई की बात पर अपने को डक किया – आपको मिठाई की क्या कमी है? इसी डेयरी से तो ले ही जाते हैं मलाई पेड़ा!
साधारण और सरल ग्रामीण। घुमा फिरा कर मुझसे पूछते हैं – कितने लोगों को नौकरी दिया होगा अपनी रेल सेवा के दौरान?
बताने पर कि तीन चार को बंगलो पीयून रखा था पूरी नौकरी भर में; वे कहते हैं कि आपसे पहले मिले होते तो जिनगी तर गयी होती! तब भेंड़ी-गाय-भैस थोड़े पालनी पड़ती।
मिश्री पाल मुझे गाय पालने की सलाह देते हैं। मूरत यादव कहते हैं – इस खटरम में मत पड़ियेगा। आपके पास पैसा है। यहीं से दूध लेते जाइये और आराम से रहिये।

मैं – “और पैसा जब खतम हो जायेगा तब?”
मिश्री पाल – “कभी नहीं होगा। आपकी जिनगी भी लम्बी चलेगी। साइकिल चला कर रियाज करते हैं आप। जिनगी भी लम्बी होगी और पईसा भी रहेगा।”
मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया – “ज्योतिषी लगते हो पाल! हांथ देखना आता है?”
मिश्री पाल संकुचित हो गये। “कहां, हम अपनी गाय-भेड़ पाल लेंं, वही बहुत है।” एक गाय है और दो सौ भेड़ें। गाय का चार सेर दूध ले कर आये हैं वे कलेक्शन सेण्टर पर। मैंने पूछा – कभी भेड़ का दूध तो नहीं ले आते यहां देने को?
भेड़ का दूध नाम आने पर मिश्री पाल एक कथा सुनाने लगे। “हम अपनी भेड़ेंं बैठाये थे फलाने जी के खेत में। एस्सो साहब (एस.ओ. – थानेदार) गुजर रहे थे। अपनी गाड़ी रोक कर मेरे पास आये और अलग ले जा कर बोले – मेरा काम है जो तुम ही कर सकते हो। … हम तो सकते में आ गये साहब कि एस्सो साहब के साथ कौन गुस्ताखी हो गयी।”

थानेदार जी ने मिश्री पाल से भेड़ के दूध का मट्ठा पिलाने की फरमाइश की। “जब मैंने उनसे पूछा कि आप कौन यादव हैं तो वे बोले कि सोनभद्र के ठाकुर हैं और वहां गड़रियों से बहुत बार भेड़ के दूध का मट्ठा पिया है। उनका फोन नम्बर मैंने लिया। अगले दिन माठा तैयार होने पर उन्हें फोन किया – आपके लिये माठा तैयार है साहब। और आधे घंटे में वे मेरे पास आ गये। भेड़ी का माठा पी कर बहुत खुश हुये मुझ पर!”
मैंने जोड़ा – “अब देख लो! आपकी तो थानेदार साहब से यारी दोस्ती हो गयी है! बड़े मनई आप हैं कि मैं?”
तब तक पिण्टू ने मुझसे कहा – आज यह भैंस का दूध 8.9% फैट का है। लेंगे आप?
सेण्टर पर अब तक का अधिकतम फैट कण्टेण्ट मुझे 8% मिला है। आज उससे भी बेहतर है। मैं बढ़े दाम पर दूध खरीद कर घर को निकल लेता हूं। … वहां पांच सात मिनट बैठना और ग्रामीण लोगों से बतकही, गपशप सवेरे के लिये री-फ्रेशिंग होती है। गांव में न रहता तो ऐसे लोगों से मिलना बोलना बैठना होता ही नहीं। यहां भी अभिजात्य लोग कहां साइकिल चलाते और भैंस-गाय-भेड़ पालने वालों से बोलते बतियाते हैं? वे यहां रह कर भी बहुत कुछ मिस करते हैं। जिंदगी भर वे जो न जान पाये वह मुझे साइकिल चलाने और किसी भी व्यक्ति से मिल-बैठ बात करने से मिल जा रहा है।
सौभाग्य है न यह?! और यह जीवन मैने अपनी च्वाइस से चुना है!
इस गपशप के लिये कल मैंने एक शब्द सुना – बतौलेबाजी। उक्त पोस्ट में जो बातचीत है वह क्या कहा जायेगी – गपशप या बतौलेबाजी?! 😆