आज सवेरे साइकिल चलाते देखा। वह लाश की तरह सड़क किनारे सो रहा था। एक चादर या चारखाने वाली लुंगी ओढ़े। उसके सिर के बाल भर दिख रहे थे। लगा कि शायद बीमार हो। एक आशंका यह भी हुई कि कोई लाश न हो।
बगल में नीचे एक बोतल दिखी। उससे मुझे निर्णय लेने में और सहायता मिली। बंदा या तो बीमार है या टुन्न। साइकिल से उतर कर मैंने दो तीन चित्र लिये। फिर झुक कर उस बोतल का चित्र लिया। उसे जूम कर मोबाइल में देखा तो सब स्पष्ट हो गया।
उसने मदिरा सेवन किया था। दो सौ मिली की देसी मदिरा में से अभी आधी बची थी। “विण्डीज लाइम ब्राण्ड की देसी शराब (मसाला) थी वह। सत्तर रुपये की दो सौ मिली। अर्थात 350 रुपये लीटर। मैं साठ रुपये लीटर के भाव से 7.5 प्रतिशत फैट और 9 प्रतिशत एसएनएफ का दूध ले कर घर लौट रहा था। मुझे साठ रुपये में यह पौव्वा (पौव्वा तो 250मिली का होना चाहिये, यह तो पौव्वे से कम थी) भी न मिले! भला हो कि इस तरह की मंहगी वस्तु मैंने न कभी छुई न आचमन की।

वैसे मैंने ध्यान से फोटो जूम कर पढ़ा। मदिरा किसी ‘रेडिको खेतान’ नामक कम्पनी ने बनाई, रामपुर में। एफएसएसएआई का मार्क भी लगा है उसपर। देसी है पर हूच नहीं है! अल्कोहल 36 प्रतिशत है।

भला हो उस सोते व्यक्ति का। उसके कारण मुझे यह ज्ञान मिला कि देसी शराब के इनग्रेडियेण्ट्स, भाव और उत्पादक कहां/कौन हैं! और यह कि अच्छा दूध देसी दारू के मुकाबले छ गुना सस्ता है!
यह भी पता चला कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था कितनी अच्छी है। किसी राह चलते ने आधी भरी मदिरा की बोतल उठाने की कोशिश नहीं की। मैंने भी नहीं की। 😆
उस भले आदमी के कारण एक 300 शब्दों की पोस्ट बन गयी। जय हो!