निरजिया का सामुहिक विवाह का पैसा

सरकारी रेवड़ी की एक नयी काट की पेशकश है सामुहिक विवाह। लड़का-लड़की का आधार कार्ड, और अन्य आंचा-पांचा कागज चेक कर उनके विवाह का पंजीकरण होता है। नीरजा (आजकाल गांवदेहात में भी नाम बड़े नये स्टाइल के रखे जाते हैं। सुरसती, गंगाजली, रामपियारी छाप नहीं) की सामुहिक शादी के रजिस्ट्रेशन में झाम फंसा।

सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिये उसके मां-बाप ने उसका आधार कार्ड कम उम्र बता कर बनवाया था, पर शादी के समय तो लड़की अठारह पार की होनी चाहिये। तो उसके बड़े भाई ने दौड़-धूप कर रजिस्ट्रेशन की डेडलाइन से पहले आधार कार्ड ‘सही’ करवाया। उसमें मोटर साइकिल का पेट्रोल, और “खर्चा-बर्चा” लगा।

खैर, नियत तारीख को होने वाले सामुहिक विवाह समारोह में उसका विवाह हो गया।

भाई की चार पांच दिन की दिहाड़ी मारी गयी सो अलग।

खैर, नियत तारीख को होने वाले सामुहिक विवाह समारोह में उसका विवाह हो गया। लड़का बम्बई में काम करता है। शादी के लिये गांव आया था तो यहीं पसर गया है। लड़की की बिदाई का इंतजार कर रहा है। बिदाई में अलाग झाम है।

लड़की के खाते में पैंतीस हजार रुपया सरकारी अनुदान आना है। जिससे वैवाहिक जीवन की “अच्छी” शुरुआत हो सके।

जब वह पैसा खाते में आयेगा, तभी बिदाई हो पायेगी। और उस पैसे पर बहुत से लोगों की बहुत सी आशायें लटक रही हैं। भाई, जिसने दौड़ धूप कर आधार कार्ड सही कराया, वह अपने खर्चे की भरपाई चाहता है।

मां उसी पैसे से बिदाई देने के लिये एक अंगूठी खरीदेगी, सोने की। लड़की का पिता बिरादरी को भोज देगा उसी में से।

भोज देने का अपना तर्क है। बाप चाहता है कि लोग आयें और उपहार में गहना-गुरिया-बर्तन आदि दें। आखिर औरों की शादी में उसने भी तो दिया है।

लड़के का पिता तुरंत पांच हजार मांग रहा है। लड़का लड़की को रहने के लिये कमरे की छत का टीना खरीदना है। बिना अलग कमरे के बहू रहेगी कहां?

इसके अलावा और भी जरूरतें हैं जो सरकारी पैंतीस हजार से पूरी होनी हैं –

दामाद को एक साइकिल तो दी ही जानी चाहिये। लड़की के माता-पिता चाहते हैं दो-पांच हजार उनके पास भी बचना चाहिये। लड़की के खाते में पांच हजार तो शुरुआती खर्चे के लिये होना ही चाहिये।

सरकार पैसे कम दे रही है। “सत्तर हजार मिलना था; आधा पैसा बीच वाले खा गये हैं!” – ऐसा कहने वाले भी कई हैं।

निरजिया (नीरजा – नाम ऐसे ही बिगाड़ दिये जाते हैं गांव देहात में) तीन महीने से इंतजार कर रही है। रात दिन अपने मरसेधू से बात करती रहती है फोन पर। उसका बस चले तो बिना किसी भोज-समारोह, गहना गुरिया या सामान-असबाब के लड़के के साथ चली जाये।

निरजिया (नीरजा – नाम ऐसे ही बिगाड़ दिये जाते हैं गांव देहात में) तीन महीने से इंतजार कर रही है। रात दिन अपने मरसेधू से बात करती रहती है फोन पर।

पर ‘जमाना’ है, जो सरकारी अनुदान पर आंख गड़ाये उसका दुश्मन बना हुआ है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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