कांग्रेस घास का उन्मूलन कैसे हो?

मेरे परिसर में पौधों को पानी देने में मशक्कत करनी पड़ रही है। जेठ की गर्मी आज ज्यादा ही लग रही है। क्यारियों और गमलों को पानी दिया गया है। बाहर, खेतों में फसल कटने के बाद हरियाली बहुत कम हो गयी है।

मेरे परिसर में पौधों को पानी देने में मशक्कत करनी पड़ रही है।

तीन तरह के पौधे पानी की कमी के बावजूद हरे भरे हैं। बगीचे में कोचिया, गंगा किनारे हिंगुआ और इधर उधर फैली कांग्रेस (गाजर) घास। मेरे परिसर के आगे कांग्रेस घास तो लहलहा रही है। वह जगह टुन्नू पण्डित (शैलेंद्र कुमार दुबे, मेरे साले साहब) और मेरे घर के सामने की है। टुन्नू पण्डित भाजपा के नेता हैं और उनके यहां कांग्रेस घास लहलहा रही है! :lol:

कांग्रेस घास, गाजर घास या पार्थेनियम (Parthenium) बड़ा जिद्दी पौधा है। गाजर की तरह इसकी पत्तियां होने के कारण इसे गाजर घास कहा जाता है। मेरे बचपन में यह था ही नहीं। फिर अकाल पड़ता रहा। सरकार ने अमरीका को गुहार लगाई और उन्होने पीएल 480 समझौते के तहद घटिया गेंहू – जो उनके यहां पशु खाते – भारत को दिया। उससे अन्न संकट तो खत्म हुआ, पर गेंहू के साथ पार्थेनियम के बीज भी भारत आ गये और आने के बाद यहीं पसर गये।

कांग्रेस के जमाने में आये थे तो इनका नाम पड़ गया कांग्रेस घास। केरल में इन्हें कम्यूनिस्ट घास कहते हैं। जब ये आये थे तो वहां साम्यवादी सरकार थी।

बहरहाल घर के आगे पार्थेनियम लहलहा रही है। मेरे घर कोई आये तो पहले पहल उन्हें इस गाजार घास के दर्शन होंगे। इसका रंग देखने में आंखों को सुखदायक लगता है, पर कोई बकरी या अन्य पशु इनकी ओर मुंह नहीं करता।

मेरे घर के आगे, टुन्नू पण्डित के अहाते में कांग्रेस घास लहलहा रही है।

इसके उन्मूलन का तरीका है कि इसके फूल लगें, उसके पहले ही इसे जड़ से उखाड़ कर एक कोने में सुखाया जाये और जला दिया जाये। अपने परिसर में तो साल दर साल हमने यही किया। अत: घर में तो पार्थेनियम का आतंक बहुत कम हो गया है। पर बाहर तो इसका साम्राज्य है! इतना बड़ा है कि पौधों को जड़ से उखाड़ना बहुत श्रम का काम है और उखाड़ने वाले को एलर्जी भी हो जाती है। अब तो इनमें फूल भी लग गए हैं।

इन्हें खत्म करने के लिये पास के कस्बे से घास जलाने वाली दवाई लेने गया था आज। एक पांड़े जी की दुकान है। पर आज बंद मिली। लगता है घर पटिदारी में लगन बरात होगी, अन्यथा बंद नहीं होती। वैसे भी उनकी बीज, खाद और पेस्टिसाइड का यह ऑफ सीजन है। इसलिये दुकान बंद करने में उन्हें ज्यादा कठिनाई नहीं हुई होगी।

चाणक्य को पैर में कुशा गड़ गयी थी तो उन्होने कुशा की जड़ को मठ्ठा पिला कर उसका नाश किया था। चाणक्य ने नंद वंश को भी मठ्ठा पिलाया था। मेरी तो उतनी क्षमता नहीं है। उतनी जिद भी नहीं है। पर अपने घर के सामने की इस गाजर घास का इस सीजन में उन्मूलन तो करना ही है। टुन्नू पण्डित तो करने से रहे; भले ही वे भाजपाई हों और यह घास कांग्रेसी हो। :lol:

[बाई द वे; टुन्नू पण्डित का आज परतंत्रता दिवस है। आज के दिन उनका विवाह हुआ था। उनकी पत्नी, जया, आज हवाई जहाज से प्रयाग पंहुच रही हैं। आज उन्हें बरामदे में बैठे डबल शेव खींचते देखा। पत्नी को रिसीव करने जो जाना है! :lol: ]


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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