मैं उन सज्जन को जानता नहीं। लेकिन उन्होने मुझे घर आ कर “अखण्ड श्री मानस पाठ” का निमंत्रण दिया। मानस पाठ का निमंत्रण भी बाकायदा तीन रंग में छपा हुआ कार्ड और उसी तरह छपे लिफाले में डाल कर भेजा जाता है। चौबीस घण्टे के इस कार्यक्रम में टेण्ट-कनात, फूल माला, कीर्तन करने की मण्डली, लाउडस्पीकर की व्यवस्था और चौबीस घण्टे चाय-पान-मुलेठी आदि का इंतजाम खर्चीला आयोजन होता होगा। कार्यक्रम के बाद हवन, प्रसाद और कुछ अंतरंग लोगों के लिये भोजन भी होता ही होगा।
खर्चा पचीस तीस हजार से क्या कम आता होगा?
मेरे पास इतने पैसे हों तो मैं ढेरों किताबें खरीद लूं। मेरी पत्नीजी पौधे और गमले खरीद लायें। लोगों को धर्म में आनंद आता है, हमें किताबों और गमलों पौधों में। यो यत श्रद्ध स एव स:। जिसकी जैसी श्रद्धा है, वह वैसा ही होता है।
सड़क किनारे वह मानस पाठ कार्यक्रम था तो मैं सवेरे साइकिल सैर के दौरान चला गया। बाद में लगा कि गया तो अच्छा ही किया।

जिनके यहां कार्यक्रम था, वे सज्जन व्यक्ति थे। उन्होने आगे बढ़ कर मुझे रिसीव किया और मेरी साइकिल खुद ठीक से खड़ी की। साइकिल को भी कार जैसी इज्जत दी। वर्ना साइकिलहे को कौन पूछता है?!
एक कमरे-कम-दुकान में मानस पाठ चल रहा था। पाठ करने वालों की मण्डली के बैग आदि बाहर रखे थे। एक ओर लाउड स्पीकर रखे थे। चौकी पर राम दरबार की फोटो थी। अन्य देवी-देवताओं के भी चित्र थे। फूलों- मुख्यत: गेंदे के फूलों की मालाओं से सजे।
मैंने भगवान को प्रणाम किया और एक कुर्सी पर बैठ गया। सोचा कि दस मिनट वहां बैठ कर राम चंद्र जी को नमन कर वापस आ जाऊंगा। पर वे सज्जन चाय ले आये। सवेरे चाय की तलब थी। तुलसी बाबा की कृपा से मिल गयी। अच्छा लगा।
लाउड स्पीकर पर्याप्त लाउड था। किसी की बात सुनने के लिये अपना मुंह/कान उनके मुंह के पास ले जाना होता था। गांवदेहात में कोई शोर को बुरा नहीं मानता पर जितने मानस पाठ देश भर में होते हैं, इन सब का शोर जोड़ लिया जाये तो (अगर तुलसी बाबा जिंदा होते) तुलसी बाबा पर साउण्ड पॉल्यूशन का एक मुकदमा तो बन ही जाता। बाबा देश भर में मुकदमा-यात्रा करते करते थक जाते! आज यहां कोर्ट की तारीख, कल वहां।

पास में एक सज्जन बैठे थे – छविनाथ पांड़े। इसी गांव – पठखौली – के ही हैं। लगता है काफी देर से बैठे थे। एक चाय पी चुके थे। एक बार मेरे साथ और हुई। परिचय हो गया तो उनके गांव चक्कर लगाते हुये जै राम जी की हो जाया करेगी।
एक रिटायर्ड मास्साब मिले। गांव के ही प्राइमरी और मिड़िल स्कूल में नौकरी कर अपनी वर्किंग लाइफ गुजार ली। सड़क किनारे पठखौली/बारीपुर में उनका घर है। मेरे श्वसुर जी की प्रशंसा कर रहे थे। मास्साब का नाम नहीं पूछ पाया। लाउड स्पीकर तेज था तो बातचीत कठिनाई से हो रही थी।

फिर भी, इतना तो लगा कि अपने आसपास के गांवों में यूंही गुजरते हुये, यूं ही उन लोगों के पास रुका, बैठा, बतियाया जा सकता है। हर एक के पास कहने को बहुत कुछ है और मुझ जैसे अपरिचित से भी परिचय बनाना तथा आगे बढ़ कार बात करना उन्हें आता है। शहराती लोगों वाली स्नॉबरी नहीं है उनमें।
मानस पाठ गायन-लय के साथ चल रहा था। बार बार सम्पुट भी आ रहा था – गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउं दीनबंधु दिन दानी॥ मैं वहां पांच दस मिनट बैठने वाला था, ज्यादा ही बैठ गया।
मानस पाठ अभी भी जवान-बूढ़े सभी को अपने साथ जोड़े हुये है। भदेस भोजपुरी श्लीलाश्लील गायन के बीच तुलसीदास जी की इस कालजयी कृति की महिमा कम नहीं हुई है। धर्म, आस्था, सम्बल, मानता-मनौती और अभीष्ट पूरा होने पर ईश्वर स्मरण – सब के लिये रामचरित मानस का सहारा है। कई कई लोग तो नियमित रूप से वार्षिक मानस पाठ कराते ही हैं।
कभी कभी लगता है कि मानस पाठ अशुद्ध है या उसकी स्पीड ज्यादा कर दी जाती है समय से पूरा करने के लिये। देर रात में अनाड़ी पाठ करने वाले कभी कभी पानी मिला देते हैं अनुष्ठान में। अगर गेय मानस श्रवण ध्येय हो तो मेरे हिसाब से स्वामी तेजोमयानंद का यूएसबी स्टिक पर उपलब्ध रामचरित मानस का सम्पूर्ण गायन सुनना और साथ में दोहराना बहुत बढ़िया है। उसका प्रचलन नहीं हुआ है। शायद आगे होने लगे।
सवेरे सवेरे “राजेश्वरी प्रसाद पाण्डेय” के सिरिनामें से मिले निमंत्रण पर पंद्रह बीस मिनट वहां बैठना और परिवेश देखना अच्छा लगा।
तुलसी बाबा की जय हो! जै श्री राम!
Sunder alekh.
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