रमाशंकर जी अपनी बहन, बिटिया और अपने जीजा जी से परिचय कराते हैं। बिटिया मेरा लिखा नियमित पढ़ती हैं।
बिटिया की मेरे लिखे की प्रशंसा मुझे वैसे ही अच्छी लगती है जैसे लिप्टन की हरी चाय।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
रमाशंकर जी अपनी बहन, बिटिया और अपने जीजा जी से परिचय कराते हैं। बिटिया मेरा लिखा नियमित पढ़ती हैं।
बिटिया की मेरे लिखे की प्रशंसा मुझे वैसे ही अच्छी लगती है जैसे लिप्टन की हरी चाय।