कोरोमण्डल एक्स्प्रेस की भीषण दुर्घटना से मेरी दिनचर्या में खलल पड़ा है। रिटायरमेण्ट के बाद गांव में अपने घर के बगल के रेलवे क्रॉसिंग के अलावा मैं रेलवे के बारे में सोचता नहीं था। यूं मैं कई ह्वाट्सएप्प के रेल अधिकारी समूहों का सदस्य हूं जिनपर दिन भर में हजार दो हजार अपडेट्स रहते हैं। पर मैं उनमें निष्कृय सदस्य हूं। उनका नोटीफिकेशन भी मैंने म्यूट कर रखा है।
इनमें सबसे सक्रिय ग्रुप आईआरटीएस वेटरन्स का है। इसमें रिटायर्ड वरिष्टतम अधिकारी हैं जो तरह तरह के विषयों पर अपने विचार देते रहते हैं। पिछले पांच छ साल में शायद ही कभी मैंने इसे खंगाला हो या टिप्पणी की हो। वे सब प्रबुद्ध जन हैं और उनमें अलग तरह का, गांव में बैठा और साइकिल पर घूमता मैं हूं। सो मेरे पास उनके लायक कहने को कुछ होता नहीं है। :-)
पर दुर्घटना के बाद पिछले एक दो दिनों से मैं वहां लोगों के स्टेटस पढ़ रहा हूं। मैं जानना चाहता हूं कि बालासोर के पास कोरोमण्डल एक्स्प्रेस की दुर्घटना के बारे में उनके पास क्या जानकारी है। और वहां जानकारी बहुत ही अद्यतन है। उनके पास बहनागा बाजार दुघटना का स्केच है, दुर्घटना के बाद का गतिविधि लॉग है, सीनियर सबॉर्डिनेट्स की प्राथमिक रिपोर्ट है। बहुत कुछ है। निश्चय ही वे लोग कार्यरत अधिकारियों के भी सम्पर्क में हैं और लगभग हर एक के पास अपनी थ्योरी है कि वास्तव में क्या हुआ होगा। उनके पास अपने अनुभव भी हैं, जिनमें इसी तरह की अनेकानेक दुर्घटनाओं का इतिहास है। कमिश्नर रेलवे स्टेफ्टी की जांचों की गाथायें हैं और रेल मंत्रियों के बारे में अपने अपने विचार हैं।
निष्पक्ष हो, वह सब पढ़ना बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक है। उनको पढ़ कर यह भी लगता है कि उस दुनियां से असम्पृक्त रह कर मैं कितना अजनबी सा बनता जा रहा हूं। वे 160-170 लोग हैं जो रेलवे के शीर्षथ पदों पर रह चुके हैं। उनकी भाषा परिष्कृत है। उनके स्टेटस “सुप्रभात, गुड नाइट, जै श्री राम” छाप टिल्ल सी बातों के नहीं होते। वे अगर कोई अन्य ग्रुप या व्यक्ति का संदेश शेयर भी करते हैं तो शेयर करने का अपना कारण भी बताते हैं। भारत की राजनीति अर्थशास्त्र पर वे अलहदा विचारों वाले लोग हैं – धुर वामपंथी से ले कर धुर दक्षिणपंथी तक। कोई सज्जन नॉस्टाल्जिया में जी रहे हैं, कोई संगीत में अपने प्रयोग कर रहे हैं, कोई खबरों से अपडेट हैं और कोई अपनी कार में निकले हैं भारत भ्रमण पर। बुद्धिजीवियों की क्रीम है वहां।

मुझे लगता है कि मैं भले ही ग्रुप में कोई विचार व्यक्त न करूं, वहां मुझे जानकारी बहुत मिल सकती है। जानकारी भी और विचार भी।
इस बालासोर के समीप की तीन गाड़ियों की दुर्घटना पर काफी जानकारी मुझे मिलती है उस ग्रुप में। मेरे पास इस बारे में बातचीत करने को कोई नहीं है। मैं चैटजीपीटी को पकड़ता हूं। वह भी हाथ खड़े कर देता है। कहता है कि उसके पास 2021 के बाद का खबर, राजनीति या अर्थशास्त्र का डाटा नहीं है। वह यह भी नहीं जानता कि उसके पास 2023 तक की जानकारी कब तक आ जायेगी। वह कहता है –
OpenAI, जो मेरे पीछे स्थित है, नियमित रूप से अपडेट और नई जानकारी प्रदान करता है। तारीखों और जानकारी की अद्यतनता के बारे में सटीक जानकारी के लिए, आपको OpenAI या मेरे उपयोगकर्ता इंटरफेस से सीधे जाँच करना चाहिए।
शरीफ है वह। मैं उससे घुमाफिरा कर जानकारी लेने की कोशिश करता हूं, पर जानकारी उसके पास है नहीं। रक्षा कवच या एण्टी कोलीजन डिवाइस के बारे में वह गोलमोल बोलता है –
एंटी-कोलीशन डिवाइस भारतीय रेलवे द्वारा विकसित और लगाया जाता है ताकि ट्रेनों के बीच टक्करों की संभावना को कम किया जा सके। यह डिवाइस गति, पथ और अन्य मापदंडों को ध्यान में रखते हुए रेलवे ट्रैक पर चलने वाली ट्रेनों को संचालित करता है। इसके उपयोग से ट्रेनों के बीच की दूरी को समायोजित करके, गति नियंत्रण करके और रेलवे सिग्नलिंग सिस्टम के साथ इंटीग्रेट करके आपत्तिजनक स्थितियों को रोका जा सकता है।
[…] भारतीय रेलवे नियमित रूप से नवीनतम सुरक्षा तकनीकों का अध्ययन करती है और इन्हें अपने रेलवे नेटवर्क में शामिल करने की कोशिश करती है, ताकि दुर्घटनाएं और ट्रेन संघर्ष की संभावना को कम से कम रखा जा सके।
अखबार, ह्वाट्सएप्प के लिये वेटरन्स ग्रुप के स्टेटस और चैटजीपीटी से नोकझोंक – इन सब से मैं रेल की दुनिया में, अस्थाई तौर पर ही सही, एकबार लौटता हूं।
दुर्घटना के बारे में कोई विचार व्यक्त करना जल्दबाजी होगी। किसी एक पर – ट्रेक वालों पर, सिगनल मेण्टेनर्स पर या यातायात कर्मियों पर तरफदारी दिखाना सही नहीं होगा। पर मुझे यह तो लगता है रेलवे को एक अलग मंत्री चाहिये जो सिस्टम समझता हो, बुली न हो और रेल यातायात से आमदनी और सुरक्षा पर खर्चे में सही तालमेल बिठाने वाला हो। झकाझक रेलवे स्टेशनों पर खर्च करने – जो एयरपोर्ट से कम्पीट करते होंं – की बजाय यातायात इंफ्रा पर खर्च होना चाहिये।
रेल दुर्घटना स्थल पर गुमसुम प्रधानमंत्री की फोटो से कुछ अंदाज लगाया जाये तो शायद कुछ अलग होना भी चाहिये। आखिर चुनाव भी तो साल भर में होने हैं।

Sir, fir higher management group level-12 aur upar ke logo ki sankhya kam honi chahiye ya badhni chahiye.. wo bhi ifrat me.. aakhir logon ka hi to supervision hota hai na ki machine ka .. computer ka..
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is par veterans kya kahte hain.. kya ye koi mudda hai ya nahi..
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बहुत बड़ा मुद्दा है और लोगों के विचार अलग अलग हैं. कुछ लोग ज्यादा स्टाफ और उनकी ट्रेनिंग की बात करते हैं और कुछ बेहतर टेक्नोलॉजी की.
जब जान बूझ कर कोई शॉर्टकट अपनाने लगे तो कोई कवच काम नहीं आएगा – ऐसा विचार बहुत लोगों का है.
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adhikariyon dwara apne promotion ke aspects barkarar rakhne ke liye naye pad badhana aur group B aur C ke pado ko khali chhod kar, usse bache paise se apne liye vyavastha kar lena.. jisse ki neeche pad khali rah jaate hain.. jo kaam karne wale hote hain.. upar to sabhi nirdesh dene aur meeting lene wale hote hain.. post khali hone se over workload ka asar nahi padta vyavstha par?? kamobesh har mahkame ka yahi haal hai..
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यह अंश में सच है. तकनीकी विकास से स्टाफ की जरूरत कम हुई है, उसका भी सही आकलन जरूरी है. वह नहीं किया जाता या बेमन से किया जाता है.
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