आज का आत्मबोध

सवेरे गुन्नीलाल पांड़े और राजन भाई दुबे आये। चाय पिलाई गयी। साथ में दो वेराईटी की नमकीन और बिस्कुट। मिठाई एक दिन पहले खतम हो गयी थी तो उसका मलाल रहा मेम साहब को। उनके भाई लोग आयें और सत्कार में मिठाई न हो – कितनी खराब बात है।

ससुरारी में घर बनाया है तो बनाते समय यह ख्याल था कि मेम साहब के आधा दर्जन सगे या चचेरे भाईयों का सपोर्ट सिस्टम रहेगा। रिटायर्ड जिंदगी में सपोर्ट सिस्टम बहुत जरूरी है। पर यह नहीं मालुम था कि मेम साहब, उनके भाई भौजाई, मायका एक तरफ और निरीह हम एक तरफ होंगे। वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ जीजा और फूफा निहायत दोयम दर्जे के नागरिक माने जाने लगे हैं भारतवर्ष में। और उस जगह रहना जहां अस्सी फीसदी आबादी जीजा-फूफा बुलाती हो – वहां तो हम पर्सोना-नॉन-ग्राटा (persona non grata, हिंदी तर्जुमा – अस्वीकार्य व्यक्ति) से थोड़े ही बेहतर बचे हैं। :lol:

सवेरे गुन्नीलाल पांड़े और राजन भाई दुबे आये। चाय पिलाई गयी।

लोग ससुरारी में घर बना कर रहने से यह कयास लगाते हैं कि नेवासा पर जमीन पाये होंगे। नेवासा का जमीन यानी मुफ्त का माल। सब लोगों को धीरे से मुझे बताना होता है – भईया, अपने पैसे से जमीन खरीदी और मकान बनाया है। कहीं से किसी भी प्रकार का दान-दहेज-दक्षिणा नहीं लिया है। पर जैसे किसी थानेदार को कभी कोई ईमानदार आदमी नहीं मानता, किसी का ससुरारी में मकान बना कर रहने को कोई फ्री-फण्ड की जायजाद पर काबिज होना ही मानता है।

मेरे ससुराल वाले रसूखदार लोग हैं। जमींदार रहे हैं। मेरे श्वसुर जी ब्लॉक प्रमुख थे। साले साहब भाजपा के दम खम वाले नेता हैं। ऐसे में मुझ जैसे नेकर पहन कर साइकिल से चलते रिटायर्ड नौकरशाह को देख लोग यह कहते पाये गये हैं कि मैं अपने श्वसुर जी के नाम पर धब्बा लगा रहा हूं।… यहां हर व्यक्ति मुझे तोलता और उम्मीद से कमतर पाया समझता है।

वह तो भला हो कि ब्लॉग और सोशल मीडिया पर; आप कितना भी साधारण लिखें, लोग प्रशंसा कर देते हैं। थोड़ी बहुत ईगो मसाज हो जाता है। अन्यथा, गांवदेहात में, ससुराल में घर बना कर रहना वैसा ही है मानो बत्तीस दांतों के बीच फंसी निरीह जीभ होना।

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी। :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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