घर में पेड़ों पर आम इस बार पर्याप्त लगा। उन्हें तोड़ने के लिये हमें खोंचा की जरूरत नहीं पड़ी। हमारे आम के पेड़ बहुत ऊंचे नहीं हैं। कलमी हैं और उनकी उम्र भी सात साल से ज्यादा नहीं। यहां गांव में बसने पर ही रोपे थे। उन पेड़ों पर आम हाथ बढ़ा कर या लग्गी से तोड़ा जा सकता है। तोड़ने के लिये भी किसी प्रोफेशनल आम-तोड़क को नहीं बुलाना पड़ा। हमारे ड्राइवर अशोक ने ही वह काम कर दिया। अशोक दुबला और लम्बा है। उसकी जद में, जब वह अपने हाथ ऊंचे करता है, कई आम वैसे ही आ जाते हैं। बाकी तोड़ने के लिये उसने छोटी बड़ी लग्गियाँ बनाई थीं। घर भर में देखता हूं तो चार लग्गियां दिख रही हैं।
अब आम तोड़ने का अनुष्ठान सम्पन्न हो गया। आम टोकरों में गांजे गये थे। वे भी लगभग खत्म हो रहे हैं। अंतिम खेप अब खाई जानी है। बांटने के बाद भी काफी आम खाने को मिले। हमने डाईबिटीज के विद्वानों की हॉरर स्टोरीज पर बिल्कुल भी कान नहीं दिया। आम खाये, फिर शुगर चेक किया। शुगर चेक किया और फिर आम खाये। आम तो फ्री के थे, पर शूगर चेक करने का खर्चा कम नहीं हुआ होगा। चूंकि हमारा ब्लड-शुगर नियंत्रण में रहा – बावजूद इसके कि मैंने और पत्नीजी ने 8-10 आम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खाये या चूसे होंगे। सो, हम कह सकते हैं कि हमारे घर के आम मीठे भी हैं, रसीले भी और शुगर-फ्री भी!

आम ओरा गये हैंं तो मैं लग्गियों की बात की जाये। पानी के कण्डाल पर अटकाई आम के पेड़ के नीचे उपेक्षित पड़ी लग्गी का हुक बड़े मनोयोग से अशोक ने बांधा था। इतने आम तोड़े गये कि वह खींचने वाला कोना ही टूट गया है। लग्गी दिव्यांग हो गयी है। अगले सीजन तक तो रहेगी नहीं नयी बनानी होगी।
इसके अलावा एक लग्गी तो समूची पड़ी है। उसकी ऊंचाई बढ़ाने के लिये एक और बांस या लकड़ी को बीच में लोहे के तार से बांधा गया है। दुगनी ऊंचाई की लग्गी! अब एक साल भर तक इसका कोई उपयोग ही नहीं है। कोई उपयोग नहीं है तो कोई उठा कर भी नहीं ले जायेगा। हो सकता है सर्दियों में इसे तोड़ कर कऊड़ा जलाने में इस्तेमाल कर लिया जाये। अगले साल नये आम होंगे, अशोक नई लग्गियां बनायेगा। अभी तो ये सभी उपेक्षित हो गयी हैं। गौतमस्थान की अहिल्या की तरह। प्रतीक्षा करतीं कि कोई आम आयेंगे और उनका उद्धार करेंगे!

आम की खेप खत्म होने का अहसास डिप्रेस कर रहा है। आमेनिया हो रहा है हमें। और घर परिसर में घूम कर उपेक्षित हो चुकी लग्गियों को देख जीवन की अप्रासंगिकता-नश्वरता पर दार्शनिक विचार मन में आ रहे हैं। मैं यह तय नहीं कर पा रहा कि इस छोटी ब्लॉग पोस्ट को हास्य की श्रेणी में रखूं या जीवन दर्शन की श्रेणी में।
खैर, आशावादी हुआ जाये। युग बदलेगा। आम आयेंगे। लग्गी रूपी अहिल्या का उद्धार करेंगे। लग्गी खत्म भी हुई तो उसका पुनर्जन्म होगा। लग्गी हिंदू है – उसका पुनर्जन्म तय है। कयामत तक उसे आम की प्रतीक्षा थोड़े ही करनी है। बस साल भर की बात है!


Sir lagta h apke bagiche k chiku & aam dibeties friendly ho gaye . Koi n sir akhir he tho organic
LikeLiked by 1 person
Haha 😂
LikeLike