हजामत

हजामत क्या होती है? दाढ़ी बनाना या सिर के बाल काटना। शायद दोनो। पर जिस चित्र के निमित्त यह पोस्ट लिखी जा रही है, उसमें यहां गांव की सड़क किनारे एक आदमी सिर के बाल नहीं काट रहा था, दूसरे की दाढ़ी बना रहा था। इसलिये यहां हजामत से अभिप्राय शेविंग ही है।

चूंकि सड़क के किनारे ही यह अनुष्ठान हो रहा था, साइकिल चलाते चलाते फीचर फोन से मैं चित्र ले पाया। खांटी देहाती दृश्य था। हजामत बनवाने वाला ईंट पर भी नहीं बैठा था। ईंटालियन सैलून से भी एक पायदान नीचे का सीन! चित्र साफ नहीं आया था तो मैने उसे और बिगाड़ कर उसको पेंटिंग सरीखा बना लिया। लेकिन मुद्दा बना रहा – इस तरह की हजामत की जरूरत क्यों होती है?

सेफ्टी-रेजर का ईजाद हुये शायद एक शताब्दी गुजर गई होगी। भारत में भी सेवन ओ क्लॉक या जिलेट का बड़ा व्यापार है। यहां कटका स्टेशन की बजरिया और कस्बे के बाजार में भी किसिम किसिम के शेविंग रेजर और क्रीम मिल जायेंगे। तब भी गांवदेहात में लोग हजामत बनाते नहीं, बनवाते हैं। नाऊ सेफ्टी रेजर से नहीं, उस्तरे से हजामत बनाता है। नई काट का उस्तरा होता है जिसमें तोड़ कर आधा ब्लेड लगाता है।

शहर में भी शायद बाल कटाने वाले और शेविंग कराने वाले करीब बराबर में हों नाई के सैलूनों में। या हो सकता है दाढ़ी बनवाने वाले ज्यादा हों। आखिर बाल महीने भर में कटते हैं पर शेविंग तो नित्य का कर्मकाण्ड है।

मुझे अमृतलाल वेगड़ जी का ट्रेवलॉग याद हो आया – सौंदर्य की नदी नर्मदा। उसमें एक प्रसंग है। नर्मदा किनारे एक व्यक्ति दूसरे की हजामत बना रहा है। वेगड़ जी की नर्मदा परिक्रमा टीम का एक सदस्य वहां खड़ा हो कर कहता है – भईया, मेरी भी दाढ़ी बना दें।

उत्तर मिलता है – हम दोनों में से कोई नाई नहीं है जो किसी की हजामत बनाये। हम तो विश्वविद्यालय के छात्र हैं। मजे मजे में एक दूसरे की हजामत बना रहे हैं। आपको हजामत की दरकार है तो खुद बनानी होगी। शेविंग का सामान हम आपको दे सकते हैं।

यात्रा में भी शेविंग का सामान ले चलना ज्यादा जगह नहीं घेरता। एक उंगली के आकार की शेविंग क्रीम की छोटी ट्यूब (आजकल तो उसका पाउच भी मिलता है), एक रेजर और शेविंग ब्रश। बस यही चाहिये। ऑफ्टर शेव लोशन तो लग्जरी है। हां, कुछ लोग छोटा, चार इंच का आईना भी साथ लिये चलते हैं। आईना वैसे भी जरूरी है। अपनी औकात जानने के लिये उससे सस्ता गैजेट और क्या होगा?!

पर मेन बात; लोग हजामत खुद बनाते क्यों नहीं, बनवाते क्यों हैं? मेरे पास इसका माकूल जवाब नहीं है।

मैने चित्र दिखा कर रामसेवक जी से पूछा – “चित्र में कौन कौन है? इनमें से शेव बनाने वाला शौकिया बनाने वाला है या नाऊ है?”

गांव के ही पात्र हैं चित्र में। भले ही चित्र धुंधला आया है, रामसेवक को पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। “जो हजामत बना रहा है वह सुंदर का चाचा है। उसका पेशा ही नाई का है। कटका स्टेशन पर इसकी गुमटी भी है। वहां ज्यादातर इसके लड़के बैठते हैं। और हजामत बनवाने वाला बगल का ही है।”

“लोग हजामत बनाने में आलसी हैं। दाढ़ी बढ़ती रहती है। पंद्रह बीस दिन तक बढ़ती है। खुद बनाने की बजाय नाई की तलाश करते रहते हैं। नाई, खुद वे, सही स्थान और सही समय – इन चारों का योग कम ही बैठता है। इस लिये पखवाड़ा गुजर जाता है हजामत के इंतजार में।”

हजामत को झंझट माना जाता है। हाईजीन से नहीं जोड़ा जाता। दाढ़ी रखने वाले भी उसका कर्मकाण्ड नहीं निबाहते। वह भी कंघी-पट्टी और ट्रिमिंग मांगती है। एक अच्छी दाढ़ी रखना दाढ़ी न रखने से ज्यादा खर्चीला होता है।

रिटायरमेण्ट के पहले नित्य शेविंग करना मेरी दिनचर्या का अंग था। शायद किसी रविवार या छुट्टी के दिन या अस्पताल में भर्ती होने पर शेविंग छूट जाती हो। अन्यथा रोज होती रही। रिटायर होने पर शुरू में मुझे लगा कि शेविंग से मुक्ति पाई जा सकती है। पर दो दिन की खरखराती दाढ़ी से खीझ हो गयी। बार बार हाथ दाढ़ी पर ही जाता था। इसलिये हजामत से लिबर्टी लेने का विचार त्याग दिया।

अब देखता हूं कि बढ़ती उम्र के असर से दाढ़ी कम बढ़ती है। एक दिन का अंतराल दे कर भी दाढ़ी बनाने पर काम चल जाता है। इसलिये नियम बना लिया है कि सभी विषम तारीख – महीने की 1, 3, 5, 7… 31 को दाढ़ी बनाया करूंगा। यह विषम-शेविंग का नियम दो साल से चल रहा है।

और शेविंग ब्लेड? एक ब्लेड तीस शेविंग बना देता है। दो महीना चलता है। … आप किफायत से रहना चाहें तो एक ब्लेड से कई बार हजामत खींची जा सकती है। किफायत के बहुत से प्रयोग किये जा सकते हैं। पर उनमें हजामत को तिलांजलि देना कत्तई जायज प्रयोग नहीं है। :lol:


आज तीस तारीख है। सवेरे बाथरूम के आईने में निहार लेता हूं। कल शेविंग की थी। आज करने की जरूरत नहीं है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “हजामत

  1. ऐसे हजामत बनवाने का अपना अलग ही मजा होता होगा, हम सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को ही दाढ़ी बनाते हैं, जिससे ऑफिस में क्लीन शेव ही दिखें, बस रविवार वाले वक्त में भी दिन दाढ़ी का ज्यादा हो जाता है।

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  2. सर, शनिवार व गुरुवार को लोग हजामत नहीं करवाते उसके बारे में क्या विचार है।

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    1. यहांंभी यह रिवाज देखा है मैने। उसके अलावा नवरात्र में या शुद्धक होने पर बाल और नाखून न कटवाने की प्रथा भी है। मेरे ख्याल से आदमी को कर्मकाण्ड की कम, हाईजीन की ज्यादा सुननी चाहिये! :-)

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  3. सर, शनिवार व गुरुवार को लोग हजामत नहीं करवाते उसके बारे में क्या विचार है।

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