जुगेश

सवेरे मैं अपने और अपने पड़ोसी के घर के सामने साइकिल चला रहा होता हूं। वह बच्चा करीब सात सवा सात बजे दूध ले कर आता है। एक दो बार हल्के से आवाज लगाता है। फिर लगभग झिझकते हुये पड़ोसी टुन्नू पण्डित का सामने का दरवाजा सरकाता है। दरवाजे के पल्ले नहीं खुलते, स्लाइडिंग डोर है। हल्का सा खोल कर वह अंदर जाता है। एक मिनट में मैं एक चक्कर पूरा करता हूं। अगले चक्कर तक उसे निकल कर जाते देखता हूं।

कई बार मन हुआ कि उसे रोक कर उससे बात करूं। कुछ भी बात। क्या वह स्कूल जाता है? घर में कितना काम करता है? गोरू कितने हैं उसके घर में? कितने बजे उठता है? क्या बनना चाहता है वह?

उस दिन आखिर दूध दे कर जाते उसे रोक ही लिया।

उसके घर दो भैसें हैं। एक अभी दूध दे रही है। “एक हमारी है, एक मौसी की है। उन्होने पालने के लिये दे दी है। अभी मौसी वाली दूध दे रही है। उसी का दूध ले कर आता हूं।”

वह बच्चा बोला कि सवेरे जल्दी उठ जाता है। पांच बजे। आज सवेरे उठ तो गया था पर सर्दी लग रही थी। कऊड़ा के सामने बैठा ऊंघने लगा। पिताजी से डांट पड़ी।

टुन्नु पण्डित जी का घर

स्कूल जाता है। पास वाले प्राइमरी स्कूल में नहीं, सड़क वाले मिडिल स्कूल में। पहले इसी स्कूल में जाता था, पर इस साल जब छठी क्लास में गया तो स्कूल बदल गया।

“पढ़ाई में ठीक ठीक हूं। न अच्छा, न खराब। मन लगता है पढ़ाई में पर अंग्रेजी और गणित कमजोर है। इतनी भी कमजोर नहीं। ठीक हो जायेगी।”

“बड़े हो कर क्या बनना चाहते हो?” – पूछने पर वह उत्तर देने की एक दो कोशिश करता है। उसके पास कोई बताने लायक स्वप्न अभी तक बना नहीं है। मैं सोचता हूं कि कितना अंतर है। यही सवाल मैं चिन्ना पाण्डेय (मेरी पोती) से करूं तो वह चहकने लगती है। “बाबा, मैं फ्लोरिडा जाऊंगी। मैं सोचती हूं कि एस्ट्रोनॉट बनूं, या फिर बायो साइण्टिस्ट। अच्छा बाबा, मैं चैट जीपीटी से पूछ कर देखूं?”

चिन्ना और यह बच्चा लगभग एक ही उम्र के हैं। पर दोनो के स्वप्न देखने में कितना अंतर है!

इस बच्चे से नाम पूछने पर बताता हौ – जुगेश। मैं उससे सही करने के लिये बोलता हूं – योगेश? उसका फिर उत्तर होता हौ – जुगेश। और फिर अलग अलग हिज्जे बताता है जू गे श!

वह बिना चप्पल के है। नंगे पांव। मैं पूछता हूं कि चप्पल नहीं है क्या? तब उसने बताया कि चप्पल तो है पर पहन कर नहीं आया। फिर उसने जोड़ा – “घर से चला तो बहन चप्पल पहन कर बर्तन मांज रही थी, इसलिये ऐसे ही चला आया।”

आगे भी कई दिन उसे देखा बिना चप्पल। निश्चय ही घर में चप्प्ल होगा। पर साझे का चप्पल। बहन भी वह पहनती है।

छोटी सी मुलकात के बाद मुझे दो चीजें समझ आईं। उसे एक जोड़ी चप्पल चाहिये। केवल उसकी चप्पल, साझे की नहीं। वह शायद मिलना आसान है। कठिन चीज है कि उसे जिंदगी में कुछ बनने के सपने चाहियें। पर सपने बोना शायद उतना आसान नहीं है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “जुगेश

    1. जी बहुत कुछ दिखता है जो बदला जाना चाहिये। बहुत कुछ दीखता है जो बदलने नहीं देता।

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