जोखन की साइकिल दुकान-कम-घर पर गया था साइकिल में हवा भरवाने। जोखन की मेहरारू बाहर बैठी थीं। बताया कि जोखन भोजन कर रहे हैं। खत्म करते ही आते हैं। “थोड़ा देर बईठि जा जीजा।” उन्होने कुर्सी दिखाई। मैं पास की पटिया पर ही बैठने जा रहा था पर कहने पर कुर्सी पर आसीन हो गया। इतने में एक सज्जन आये और जोखन की मेहरारू से बोले – आजुऔ मोदी हयेन। (आज भी मोदी हैं)।
बहुत से देशों में प्रधानमंत्री साइकिल चलाते हैं और बस की लाइन में भी लगे मिलते हैं। यहां मोदी के लिये इतना तामझाम काहे होता है? काहे लोगों के काम का अकाज होने की नौबत आती है। और; मोदी बनारस आते भी हैं तो काहे तीन दिन पसरे रहतें हैं?
मुझे उनका कहना समझ नहीं आया। उनका वेश कुछ अलग सा था। पैंट कमीज पहन रखा था पर माथे पर लाल-पीला-काला त्रिपुण्ड था। ऐसा त्रिपुण्ड शैव नहीं लगाते। दांये हाथ में एक दो नहीं करीब दो दर्जन मालायें थीं। गले में भी काला धागा। उनकी बात भी मुझे अटपटी लगी। कौन मोदी? कहां हैं?

धीरे धीरे बात साफ हुई। वे सज्जन बनारस में प्रधानमंत्री जी के आज भी होने की बात कर रहे थे। उनके अनुसार मोदी जब भी आते हैं, तीन दिन रुक जाते हैं। उनके चक्कर में शहर का कामधाम बंद हो जाता है। बाजार के सेठ भी कहते हैं कि बिक्री कम होती है। लोग बाजार में आते ही कम हैं।
इन सज्जन का नाम पता चला जीतेंद्र। यहीं गांव में किराये का कमरा ले कर रहते हैं। रोज बनारस अप-डाउन कर वहां मिस्त्री-लेबराना करते हैं। प्रधानमंत्री जी के बनारस में होने से उस दिन काम धाम ठप रहता है, सो बनारस नहीं जाना होता। आज भी मोदी बनारस में हैं इसलिये मायूस हो कर बोल रहे थे – आजुऔ मोदी हयेन। मोदी के बनारस होने के कारण दिहाडी मारी गई आज की भी। बहुत से लोगों का काम का अकाज होता है।
मुझे लगा कि बहुत से देशों में प्रधानमंत्री साइकिल चलाते हैं और बस की लाइन में भी लगे मिलते हैं। यहां मोदी के लिये इतना तामझाम काहे होता है? काहे लोगों के काम का अकाज होने की नौबत आती है। और; मोदी बनारस आते भी हैं तो काहे तीन दिन पसरे रहतें हैं?
जीतेंद्र के हाथ की मालाओं के सूत्र से बातचीत होने लगी उनके साथ। उन्होने बताया कि वे बाबा के भक्त हैं। बाबा यानी बाबा विश्वनाथ? मेरे पूछने पर बोले – बाबा काल भैरव।
तब तक जोखन भोजन कर आ चुके थे। उन्होने पूछा – ई काल भैरो कहां हैं? बिसुनाथ मंदिर में?
“नहीं मैदागिन में। काशी के कोतवाल हैं वे।”
जीतेंद्र बीस साल से हर सप्ताह बाबा कोतवाल के दरबार में जाते रहे हैं। बताया कि काम करते हुये पाइप जिसपर वे बैठे थे वह टूट गया था और चौथी मंजिल से नीचे गिरे। कोई चोट नहीं आई। हाथ गोड़ सब सलामत रहे। “अब आपई बतायें वह बाबा की किरपा नहीं थी तो क्या था?”
मैने जोखन को कहा कि साइकिल में हवा भरनी है। दोनो चक्कों में। जवाब जीतेंद्र ने दिया – “यही काम था तो पहिले बताये होते। यह तो मैं ही कर देता। बेकार आपने इनका इंतजार किया।”

और पम्प उठा कर हवा जीतेंद्र ने ही भरी। मैं जोखन को पैसे देने लगा तो जीतेंद्र ने मना कर दिया। आज रहने दीजिये। वैसे भी हवा मैने भरी है। जोखन ने मुझसे हवा भराई ली नहीं।
जीतेंद्र के हाथ की मालाओं पर चर्चा में आधा घूंघट किये देहरी पर बैठी जोखन की मेहरारू ने कहा कि यह तो कुछ नहीं है। गले में ये खूब सारी करिया माला पहने रहते थे। मारे गर्मी के वे अभी उतार दी हैं। गर्मी भी इस साल गजब पड़ रही है।
जोखन की मेहरारू ने दोनो हथेलियों को पास ला कर मालाओं के गुच्छे की मोटाई का अंदाज बयान किया। जीतेंद्र ने भी कहा कि कमरे पर रखी हैं मालायें। मौसम ठीक होने पर वे धारण करेंगे। अभी तो हाथ में बंधे बाबा के रक्षा कवच से ही काम चला रहे हैं।

महीना भर लू की तेज गर्मी के बाद आज कुछ राहत थी। इसी लिये साइकिल ले कर बाहर निकला और हवा भराने के लिये जोखन के यहां जाना हुआ। गर्मी कम होने से ही जीतेंद्र मुझे मिले। गर्मी कम होने से ही कुछ लिखने का मन बना। आगे मानसून आये और दिमाग चलने लगे; यही मनौती है बाबा से। … अब आप बाबा विश्वनाथ समझें या बाबा कालभैरव; आपकी श्रद्धा पर है।
इस ब्लॉग पोस्ट में चार हजार से कुछ कम अक्षर हैं। इतनी बड़ी पोस्ट ट्विटर को ढाई सौ रुपया महीना देने पर सीधे ठेली जा सकती है। उहापोह है कि दे दिया जाये या नहीं। दूसरे, एक मन यह भी है कि पढवैय्ये ब्लॉग पर आयें तो! ब्लॉग घर की दालान लगता है और ट्विटर फेसबुक किसी नुमाइश में अपना छोटा स्टाल। लोग अब किसी के दरवाजे-दालान पर नहीं जाना चाहते। युग बदल रहा है जीडी!

जितेंद्र जी से मिलना अच्छा लगा। नेताओं के साथ तामझाम तो होता ही है। यह बात वो नहीं सोच पाते हैं। बाकी ब्लॉग पर भी डलते रहिए। इधर भी लोग आते हैं। ट्विटर इत्यादि के पाठक अलग हैं।
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धन्यवाद विकास जी। ब्लॉग तो मूलाधार है ही!
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