<<< बेलपत्र वाले विजयशंकर >>>
मेरे घर के बगल में ही रहता है बेलपत्र और दूब का कार्य करने वाला परिवार। आज सवेरे देखा विजयशंकर अपनी मॉपेड पर पानी से भीगे गट्ठर लाद रहा था। कुल आधा दर्जन गठरियां होंगी। काफी बड़े आकार की गठरियां। दो घर की लड़कियां उसके साथ लगी थीं गट्ठर मॉपेड पर साधने के लिये। एक दो गट्ठर और निकाले घर से लादने के लिये।
लदान चाहे मॉपेड का हो या रेलवे वैगनों का, देखने लायक गतिविधि होती है। मैं देखने के लिये अपनी साइकिल रोक कर वहां पंहुच गया।
परिवार के जवान लोग मिर्जापुर-मड़िहान के आगे जंगलों से बेलपत्र तोड़ने जाते हैं। वह कठिन काम है। बेल में कांटे तेज होते हैं। उनसे हाथ और चेहरे छिल जाते हैं। भोर में ही जाना होता है और लौटते हुये देर रात हो जाती है। घर पर रात में महिलायें बेलपत्र की छंटाई करती हैं। बनारस में उनकी मांग तभी है जब तीन पत्तियों का साफ सुथरा बेलपत्र हो। वही बाबा विश्वनाथ और अनेकानेक मंदिरों में चढ़ता है। छंटाई के बाद गठरी बनाई जाती है और उसे ताजा रखने के लिये पानी में डुबोया जाता है। पानी से बेलपत्र साफ भी हो जाता है और लम्बे समय तक सूखता भी नहीं।
बेलपत्र के अलावा बनारस में दूब की भी मांग है। दूब आसपास व्यापक तौर पर उपलब्ध है। उसको तोड़ने-खोंटने और उनके गट्ठर बनाने का काम ज्यादातर महिलायें करती हैं। वह भी श्रमसाध्य है। दूब के गट्ठरों को भी पानी में डुबो कर ताजा रखने का उपक्रम किया जाता है।
सड़क किनारे खड़ी मॉपेड पर साध कर लादने के बाद विजयशंकर तैयार था प्रस्थान के लिये। मैने पूछा – यहां से ले जा कर हाईवे पर टेम्पो या बस में चढ़ाओगे या सीधे बनारस ले कर जाओगे?
“सीधे बनारस। बेच कर शाम तक वापस लौटना होगा।”
विजयशंकर ने बताया कि काम से कम कुल दो हजार का माल होगा मॉपेड पर। इस पर घर की महिला ने अपनी बात रखी कि ‘दो हजार तो हमारे लिये है, वैसे तो यह बेलपत्र और दूब अनमोल है – ऐसा वहां के पण्डित जी बताया करते थे’।
“एक बेरियां बिसुनाथ मंदिल के पण्डा जी कह रहे थे कि तुम लोग बहुत बड़ी सेवा करते हो धरम की।” – महिला ने जोड़ा।
विजयशंकर ने बताया कि पंद्रह लोग गांव से रोज जाते हैं बेलपत्र ले कर वाराणसी। पंद्रह (या उससे ज्यादा) परिवारों की रोजीरोटी बेलपत्र और दूब के इस उपक्रम पर चलती है। करीब पचास-साठ-सौ लोग इस काम – बेलपत्र लाना, चुनना, गठ्ठर बनाना और दूर्वा का इंतजाम करना – में लगे हैं।
मैं जब गांव में रहने आया था तब भी ये परिवार इस काम में लग चुके थे। उस समय इनकी माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी। अब तो इसी काम से विजयशंकर ने मॉपेड खरीदी है और स्मार्टफोन लिया है। बाबा विश्वनाथ ने बहुत से परिवारों को समृद्धि की राह दिखाई है। विजयशंकर का परिवार भी उनमें है।
मन होता है कभी मड़िहान के जंगलों और बनारस की बेलपत्र की सट्टी पर विजयशंकर के साथ हो कर आऊं। पर मन तो बहुत चीजों को ले कर ललकता है। शायद लेखन कार्य पर मेरी आर्थिक स्थिति निर्भर होती, मैं लेखक या स्क्राइब होता तो जंगल और बनारस जाने और शोधकार्य करने के लिये यत्न या टिटिम्मा करता। अभी तो जो है, वह मनमौजियत भर है!
#गांवदेहात


