आर्मचेयर नर्मदा परिक्रमा की प्रस्तावना

नीलकंठ और सुदामा पांडे

नीलकंठ और सुदामा की पहली बैठक

(डिंडौरी से बरगी तक की यात्रा की भूमिका)

प्रेमसागर ने डिंडौरी से पैदल चलकर चाबी गाँव में जब नर्मदा परिक्रमा को खंड-विराम दिया, तब वे सड़क मार्ग से ही चल रहे थे। डिंडौरी और जबलपुर के बीच, नर्मदा के उत्तर या दक्षिण तट की पदयात्रा अधिकांश यात्री सड़क के किनारे ही करते हैं। लगभग 90 प्रतिशत परिक्रमावासी यही मार्ग चुनते हैं।

क्योंकि नर्मदा किनारे चलना दुरुह है —
अनेक स्थानों पर सड़कें नहीं हैं। जंगल घने हैं, ट्रेल्स खो जाते हैं।
रुकने और भोजन के साधन-स्थान भी सीमित हैं। तीर्थयात्री की अपेक्षित मूलभूत सुविधाएं वहाँ नहीं हैं। जो पदयात्रा करते हैं, वे भी किसी झुंड या टोली में चलते हैं — एकाकी यात्रा कम ही संभव होती है।

स्मरण आता है — अस्सी के दशक में जब अमृतलाल वेगड़ जी ने यात्रा की थी, तो उनके साथ भी तीन-चार लोग थे।

फिर भी, नर्मदा के किनारे गाँव हैं, बस्तियाँ हैं।
जीवन है, संवाद है।
गूगल मैप पर कई स्थानों के चित्र उपलब्ध हैं। स्थानों के बारे में लिखा भी मिल जाता है।
जितना दिखता है, उतना पर्याप्त है एक आर्मचेयर ट्रेवलॉग के लिये। पर आर्मचेयर ट्रेवलॉग ही क्यों? लोग तो बहुत यात्रायें कर ही रहे हैं?

लेकिन यह कदम और किलोमीटर गिनने की पदयात्रा नहीं है, बल्कि इस आर्मचेयर यात्रा के माध्यम से भारत के भीतर झाँकने का उपक्रम है। मुझ जैसे आदमी का कथ्य है यह; वह आदमी, जो जाता नहीं पर देखता सब कुछ है।

इस पोस्ट को बनाने में चैट जीपीटी से संवाद का योगदान रहा है।

कभी-कभी चलना नहीं, केवल देखना भी यात्रा होता है… या यूं कहें कि असल यात्रा तो देखना है। चलना तो उसका औजार मात्र है। औजार तो मनमुताबिक बदले भी जा सकते हैं।

शेष तो —
नर्मदा मैया की कृपा है।
कल्पना है, कथा है, और सानिध्य है।

नीलकंठ ने नक्शा देखते हुए कहा –

“इस जगह तो साइकिल चल नहीं सकती, जीडी! साइकिल साथ ली तो उसपर चढ़ना कम होगा, उसे ढोना ज्यादा होगा।
उसकी बजाय पिट्ठू में सामान पीठ पर लाद कर चलना सही रहेगा।
और मुझे गाकड़ (बाटी) बनाना नहीं आता।
कुछ भी खाने को नहीं मिला तो कौन बनाएगा?

एक चेला तो चाहिए ही —
लम्बी यात्रा बिना साथी के करने की मैं सोच भी नहीं सकता।”

यहीं से रचा गया ‘सुदामा पांडे’।
बाईस वर्ष का युवक।
गरीब, पर मेधावी।
BA में कॉलेज टॉपर था, लेकिन कम्पीटीटिव परीक्षा की कोचिंग के पैसे नहीं थे।

किसी गुजराती सेठानी को उसकी कहानी पता चली।
उन्होंने निश्चय किया —
छह महीने तक यह लड़का उनकी ओर से नर्मदा परिक्रमा करेगा।

रोज़ दो हज़ार रुपये मिलेंगे।
उसी में रहना, खाना, चलना —
बचत उसका अपना होगा।

एक शर्त रखी थी सेठानी ने —
रोज शाम को पाँच-दस मिनट का ऑडियो संदेश भेजना होगा गुजराती बेन को।

सेठानी की आँखों की रोशनी कमजोर है।
उन्हें यात्रा के फोटो या वीडियो नहीं चाहिए — गुजराती बेन कहती हैं, मुझे दृश्य नहीं चाहिए, सिर्फ अनुभूति चाहिए। शब्द सुनूँ, दृश्य मन में बनाऊँ। शब्द ऐसे हों कि दृश्य की कमी पूरी कर दें।

सुदामा का चयन आसान नहीं था।
बेन ने सख्त इंटरव्यू लिया था —
पर सुदामा उनकी अपेक्षा से अधिक खरा निकला। उसके बोलने में कुछ बिहारी टोन था, पर अभिव्यक्ति वजनदार थी। बोलता ऐसा था, मानो सामने सब घटित हो रहा हो।
बेन के हावभाव से लगा कि अगर सब कुछ ठीक रहा,
तो यात्रा के अंत में सुदामा को बोनस भी मिल सकता है!

सुदामा ने नीलकंठ से कहा –

“सर, मैं यात्रा के साथ-साथ सिविल सर्विसेज की तैयारी भी कर रहा हूँ।
दो किताबें और कुछ PDF ले आया हूँ।
पिछले साल प्रिलिम्स निकाला था।
इस बार चयन की पूरी तैयारी है।

आपके साथ रहूँगा तो कुछ संगत का असर जरूर होगा।
मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, सर —
बस आपका साथ चाहिए।”

अब सब तय था।

नर्मदा दक्षिण तट का परिक्रमा पथ, नर्मदा और बरगी किनारे से
नर्मदा दक्षिण तट का परिक्रमा पथ, नर्मदा और बरगी किनारे से

नक्शे पर देखा गया –
डिंडौरी से मंडला होते हुए बरगी बाँध के किनारे तक,
करीब 266 किलोमीटर की यात्रा बनती है।
तीन सप्ताह का पथ।

नीलकंठ ने मन बना लिया —
अब यह आर्मचेयर नर्मदा-बांध परिक्रमा होगी।

सर्दी की आहट है।
शरद ऋतु प्रारंभ हो चुकी है।
नीलकंठ ने योजना की बारीकियाँ रचनी शुरू की हैं।
सप्ताह भर बाद यात्रा का आरंभ होगा।

तब तक सुदामा अमरकंटक से डिंडौरी की ओर बढ़ता रहेगा।

डिंडोरी में मिलेंगे दोनो। फिर दो यात्री — एक सत्तर वर्ष का, दूसरा बाईस का।
साथ चलेंगे नर्मदा तीरे।

देखें क्या निकलता है — नर्मदा माई की कृपा और इस बेमेल जोड़ी के जरीये!

नर्मदे हर!

#नीलकंठ_नर्मदा

नीलकंठ और सुदामा पांडे
नीलकंठ और सुदामा पांडे

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “आर्मचेयर नर्मदा परिक्रमा की प्रस्तावना

    1. जी बिल्कुल. मैं सशंकित था इस विधा की सफ़लता पर. इसलिए तीन पोस्ट बफर में रख कर ही पोस्ट करने का साहस किया… 😊

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  1. नीलकंठ की यात्रा मानसिक है, केवल आर्मचेयर की नहीं। कल्पना की उड़ान के आगे आर्मचेयर के बंधन अनायास ही तिरोहित हो जाते हैं। सुदामा पंडित के साथ नीलकंठ की खूब जमेगी। क्या संयोग है, एक OPM के पाश से छूटा है और दूसरा फंसने के लिए प्रयासरत है। सुभान तेरी कुदरत!!

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